पटना संग्रहालय के अलग अलग दीर्घाओं में आप गौतम बुद्ध से जुड़ी कई मूर्तियां, पेंटिंग आदि देख सकते हैं।
बुद्ध पर बेहतरीन संग्रह के कारण दुनिया भर बुद्ध के अनुयायी खास तौर पर इस
संग्रहालय में दर्शन के लिए आते हैं। हां दर्शन शब्द इसलिए कि यह आस्था का बड़ा
केंद्र है। क्योंकि पूरी दुनिया में यह एकमात्र स्थल जहां गौतम बुद्ध के अस्थि कलश
के दर्शन किए जा सकते हैं। पटना संग्रहालय
के प्रथम मंजिल पर एक विशेष गैलरी है जहां पर गौतम बुद्ध के अस्थि कलश के
दर्शन किए जा सकते हैं।
गौतम बुद्ध के अस्थि कलश के
दर्शन के लिए विशेष टिकट खरीदना पड़ता है। जिनके पास यह टिकट होता है उन्हें
संग्रहालय के स्टाफ सम्मान से इस गैलरी में ले जाते हैं। वैसे दिन भर ये गैलरी कई
तालों में बंद रहती है। जब टिकटधारी आते हैं तो गैलरी खोली जाती है।
आप पूरा समय
देकर नन्हें से डिब्बे में संजोकर रखे गए
अस्थि कलश को देख सकते हैं। यह पूर्णतया वातानुकूलित कक्ष है। बुद्ध का अस्थि कलश बिहार
के वैशाली से प्राप्त किया गया है।
पटना संग्रहालय में रखे भगवान बुद्ध के अवशेष इस संग्रहालय के सबसे बेशकीमती संपत्तियों में से एक है। जानकार बताते हैं कि ये अवशेष 1972
तक वैशाली में ही थे, मगर बाद में सुरक्षा
कारणों से इसे पटना संग्रहालय में लाकर रखा गया।
बिहार के वैशाली जिले में वैशालीगढ़
स्थित रेलिका स्तूप साइट से इस अस्थि कलश को 1958 में खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था। ये अति दुर्लभ बुद्ध के अस्थि
अवशेष वास्तव में वही अस्थि अवशेष हैं, जिन्हें बुद्ध के
अंतिम संस्कार के बाद आठ जनपदों के बीच बांटा गया था। इनमें से वैशाली भी एक था। इनमें
से कुछ ही जगहों पर ये अस्थि अवशेष सुरक्षित मिले हैं। ऐसे में इन अवशेष स्थलों का
महत्व बढ़ जाता है।
काफी इतिहास प्रेमी चाहते हैं
कि इसे इसकी मूल भूमि वैशाली में ही रखा जाए। इस मामले में वर्ष 2010
में पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार को आदेश दिया था कि वह एक साल के
अंदर वैशाली में एक संग्रहालय का निर्माण करवा कर वहां बुद्ध की उन अस्थि अवशेषों
को वापस वैशाली में ही रखे। पर ऐसा आजतक हो नहीं पाया है।
पटना संग्रहालय में आधार तल की
मूर्ति गैलरी को घूमते हुए आपको विलक्षण बुद्ध मूर्तियां नजर आती हैं। संग्रहालय
में अफगानिस्तान के बहलोल से प्राप्त बुद्ध की कई मूर्तियां हैं। इनमें से पहली
मूर्ति जो दिखाई देती है। वह बैठी हुई मुद्रा में है। यह शिष्ट पत्थर से निर्मित
है। ये पहली शताब्दी की है। इसमें बुद्ध को साधनारत दिखाया गया है। उनकी मूंछे
हैं। वे किसी राजा के सदृश लग रहे हैं।
आगे आप 11वीं सदी में ओडिशा से
प्राप्त किरिटधारी बुद्ध की प्रतिमा देख सकते हैं। रत्नगिरी से मिली इस प्रतिमा का
एक हाथ भंग हो गया है। इसमें भी बुद्ध बैठे हुए साधना की मुद्रा में हैं।

इसके आगे भी बहलोल से मिली कई
बुद्ध मूर्तियां एक साथ देखी जा सकती हैं। इनमें कुछ मूर्तियां बैठी हुई अवस्था
में ध्यान मुद्रा में भी नजर आ रही हैं। आगे कुछ मूर्तियां ऐसी दिखाई देती हैं
जिनमें सिर्फ बुद्ध का सिर नजर आता है।
प्रथम तल पर आप गौतम बुद्ध से
जुड़ी कुछ विशिष्ट पेंटिंग भी देख सकते हैं। संग्रहालय के स्टाफ बताते हैं कि यहां
खास तौर पर सर्दी कि दिनों में बौद्ध देशों के विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में
पहुंचते हैं।
(BUDDHA, PATNA MUSEUM, ASTHI KALASH, BAHLOL, AFGANISTAN )