देहरादून शहर के बाहरी हिस्सों को पार करते हुए हमारी बस मसूरी की
ओर बढ़ रही है। हमलोग राजापुर रोड से गुजर रहे हैं। कई सालों बाद मसूरी की ऊंचाई
पर चढ़ने का एहसास खुशनुमा है। हालांकि 1993 की मसूरी यात्रा अब स्मृतियों में
धूमिल हो गई है। बस लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकादमी की शाम की कुछ यादें हैं।
देहरादून से मसूरी की दूरी कोई 40 किलोमीटर ही है। पर इस छोटी सी यात्रा में काफी
कुछ बदल जाता है। छुट्टी का दिन होने के
कारण वाहनों की भारी भीड़ है। मसूरी शहर से 10 किलोमीटर पहले एक चेकपोस्ट आता है। यहां सभी गाड़ियों को मसूरी में प्रवेश का
टोल चुका कर आगे बढ़ना होता है। हमारी बस यहां रुकी। आप बाइक से जा रहे हैं तो भी
टोल देना पड़ता है।
मसूरी की औसत ऊंचाई 1880 मीटर यानी 6170 फीट है। पर मसूरी की सबसे
ऊंची चोटी लाल टिब्बा है जिसकी ऊंचाई 2255 मीटर यानी 7464 फीट है।
मसूरी में क्या देखें - मसूरी में देखने घूमने
वाले स्थलों की बात करें तो मसूरी लेक,
मसूरी की मॉल रोड, कैंप्टी फॉल,
धनोल्टी और लाल टिब्बा प्रमुख स्थलों में शामिल किए जा सकते हैं। मसूरी कई सारे
प्रसिद्ध स्कूलों के लिए जाना जाता है। रेलवे का ओक ग्रोव स्कूल यहां स्थित है। आईएएस
का प्रशिक्षण पाने वालों की अकादमी लाल बहादुर शास्त्री नेशनल प्रशासनिक अकादमी भी
यहीं मनोरम वातावरण में स्थित है।
जैसा कि आपको मालूम है कि देश के सारे प्रमुख हिल स्टेशन की खोज
ब्रिटिश अधिकारियों ने की थी तो मसूरी की खोज भी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी ले.
फ्रेडरिक यंग ने की थी। तब से अब तक विदेशी सैलानियों को मसूरी काफी लुभाता है।
अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक रस्किन बांड तो मसूरी के होकर ही रह गए। दशकों पहले
उन्होंने अपना घर मसूरी में बना लिया। उनके लेखन में भी बार बार मसूरी नजर आता है।
वे आज भी हर शनिवार को मसूरी की एक पुस्तक दुकान पर अपने पाठकों से मिलते हैं।
तो हमारी बस भारी जाम के बीच धीरे धीरे सरकती हुई मसूरी में प्रवेश
कर रही थी। मसूरी शहर में हमारा पहला पड़ाव था मसूरी लेक। बस वाले ने बहुत मुश्किल
से पार्किंग तलाश कर बस को पार्क किया। लेक के नाम पर कुछ खास नहीं है। छोटा सा
पोखर है। किसी गांव के पोखर जैसा। पर यहां पर बोटिंग रंग बिरंगे कपड़ो में फोटो
खिंचवाना और खाने पीने के कुछ होटल हैं। हां यहां क्रॉस द वैली का भी आनंद लिया जा
सकता है। टिकट 300 से 500 रुपये का है। बोटिंग
की इच्छा नहीं थी, पर पेट में चूहे तो कूदने लगे थे, सो हमने बोट के पास एक होटल
में पेट पूजा की। सौ रुपये की शाकाहारी थाली। हमलोग मसूरी लेक के बाद आगे बढ़े। बस
स्टैंड नजर आया मसूरी का। यहीं पर एक मंदिर और एक गुरुद्वारा भी नजर आया। हां
गुरुद्वारा में ठहरने का भी इंतजाम है। आप अगर सस्ते में ठहरना चाहते हैं तो मसूरी
के इस गुरुद्वार में जाकर एकोमोडेशन के लिए आग्रह कर सकते हैं। मसूरी के चौराहे पर
भारी भीड़ है। यहां भी गांधी जी की प्रतिमा दिखाई दे रही है। सामने मसूरी की
ऐतिहासिक लाइब्रेरी बिल्डिंग है। इस पर लिखा है स्थापित 1842 , पर हमारी मंजिल तो अभी आगे है।
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विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
(MUSSOORIE, UTTRAKHAND, LAKE, HILL STATION, LBSNAA )
(MUSSOORIE, UTTRAKHAND, LAKE, HILL STATION, LBSNAA )
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