बिहार के
बोधगया का महाबोधि मंदिर, जहां
भगवान बुद्ध को लंबे तप के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ, उनसे मिले बुद्धत्व की ज्योति
से सारा जगत आलोकित हुआ, वह विशाल मंदिर मेरी नजरों के सामने है। सुबह-सुबह की वेला है मंदिर में जाने वाले श्रद्धालुओँ की संख्या काफी कम है।
प्रवेश द्वार से पहले जूते का स्टैंड है। पर स्टैंड वाले मेरे चप्पलों को देखकर
कहते हैं इन्हें अंदर भी रख सकते हैं। पर वहां मोबाइल फोन जमा करना पड़ा। 2013
में हुए इस मंदिर पर आतंकी हमले के बाद महाबोधि मंदिर की सुरक्षा
बढ़ा दी गई है।
महाबोधि
मंदिर परिसर में मोबाइल फोन लेकर प्रवेश करना वर्जित है। कैमरा के लिए 100 रुपये का टिकट है। मैं वापस लौटकर कैमरे के लिए टिकट ले लेता हूं। मंदिर के प्रवेश द्वार में कमल
और कुमुदनी के फूलों की सुंदर सुंदर प्लेटे लिए स्त्रियां बैठी हैं। 10 और 20 रुपये के फूलों की तस्तरियां हैं। मैं किसी भी
मंदिर में फूल नहीं चढ़ाता पर यहां न जाने क्यों फूल लेकर जाने की इच्छा हुई।
मुख्य प्रवेश द्वार से तकरीबन सौ मीटर सीधे चलने के बाद दायीं तरफ मंदिर का दूसरा प्रवेश द्वार आता है। वहां भी सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। एक गलियारे में चलने के बाद बैगेज स्कैनर और मेटल डिटेक्टर की सुरक्षा से गुजरना पड़ा। यहां पर कैमरा के पास के चेकिंग हुई। मंदिर में प्रवेश के लिए भी एक फ्री टिकट जारी होता है। इसे भी दिखाना पड़ा। इसके बाद चप्पल स्टैंड में अपनी पादुकाएं उतारीं। सामने मंदिर का विशाल स्वागत कक्ष दिखाई दे रहा है। दाहिनी तरफ एक और प्रवेश द्वार से सीढ़ियों से नीचे उतरने पर विशाल महाबोधि मंदिर नजर आने लगा। इसके गर्भ गृह में विराजमान बुद्ध प्रतिमा के भी दर्शन दूर से ही होने लगे। मंदिर का परिसर अत्यंत हरा भरा है। सुबह की वेला में साधना में लीन कई देशों के बौद्ध भिक्षु मंदिर में दिखाई दे रहे हैं।
मुख्य प्रवेश द्वार से तकरीबन सौ मीटर सीधे चलने के बाद दायीं तरफ मंदिर का दूसरा प्रवेश द्वार आता है। वहां भी सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। एक गलियारे में चलने के बाद बैगेज स्कैनर और मेटल डिटेक्टर की सुरक्षा से गुजरना पड़ा। यहां पर कैमरा के पास के चेकिंग हुई। मंदिर में प्रवेश के लिए भी एक फ्री टिकट जारी होता है। इसे भी दिखाना पड़ा। इसके बाद चप्पल स्टैंड में अपनी पादुकाएं उतारीं। सामने मंदिर का विशाल स्वागत कक्ष दिखाई दे रहा है। दाहिनी तरफ एक और प्रवेश द्वार से सीढ़ियों से नीचे उतरने पर विशाल महाबोधि मंदिर नजर आने लगा। इसके गर्भ गृह में विराजमान बुद्ध प्रतिमा के भी दर्शन दूर से ही होने लगे। मंदिर का परिसर अत्यंत हरा भरा है। सुबह की वेला में साधना में लीन कई देशों के बौद्ध भिक्षु मंदिर में दिखाई दे रहे हैं।
महाबोधि
मंदिर विहार ठीक उसी स्थान पर
निर्मित है जहां गौतम बुद्ध ने ईसा
पूर्व छठी शताब्दी में ज्ञान प्राप्त किया था। यहां पर पहला मंदिर ईसा पूर्व तीसरी
शताब्दी पूर्व में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित कराया गया था। आजकल जो मंदिर दिखाई
देता है यह सातवीं शताब्दी में गुप्त काल में बनाया गया। मंदिर की ऊंचाई 50 मीटर
है। यह ईंटों से पूरी तरह निर्मित सबसे प्रारंभिक बौद्ध मंदिरों में से एक है।
गुप्त काल में निर्मित ये मंदिर बेहतरीन हाल में अभी भी खड़ा है। महाबोधि मंदिर
परिसर में महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं और उनकी पूजा से संबंधित
साक्ष्यों को देखा जा सकता है।
मंदिर के
गर्भ गृह में भगवान बुद्ध की साधनारत प्रतिमा है। अत्यंत नयनाभिराम प्रतिमा को
देखते हुए यूं प्रतीत होता है मानो बुद्ध आपको मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दे रहे
हों। यह प्रतिमा सोने के आवरण में है। इसे बंगाल के पाल राजा ने बनवाया था।
गर्भगृह में
दुनिया भर से आए श्रद्धालु थोड़ी देर बैठकर प्रार्थना करते हुए देखे जाते हैं।
काफी लोग यहां आस्था के फूल बुद्ध प्रतिमा के चरणों में चढ़ाते हैं। महाबोधि मंदिर
की बाहरी दीवारों पर अत्यंत सुंदर शिल्पकारी और बुद्ध के जीवन से जुडी प्रतिमाएं
देखी जा सकती हैं। महाबोधि मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण में बर्मा (म्यांमार) के
बौद्ध संस्थानों ने सर्वाधिक सहयोग दिया है।
म्यांमार के राजा ने
कराया जीर्णेद्धार
महाबोधि मंदिर का पहली बार व्यापाक जीर्णोद्धार का कार्य बर्मा (वर्तमान में म्यांमार) के राजा मिंडुमिन ने 1874 में करवाया। उसके बाद सन 1880 में बंगाल के गवर्नर एंशले इडेन के आदेश पर अलेक्जेंडर कनिघंम और बेगलर ने काम आगे बढ़ाया। उत्खनन के दौरान मंदिर का तल जमीन की तत्कालीन सतह से 25 फीट नीचे मिला था।
महाबोधि मंदिर का पहली बार व्यापाक जीर्णोद्धार का कार्य बर्मा (वर्तमान में म्यांमार) के राजा मिंडुमिन ने 1874 में करवाया। उसके बाद सन 1880 में बंगाल के गवर्नर एंशले इडेन के आदेश पर अलेक्जेंडर कनिघंम और बेगलर ने काम आगे बढ़ाया। उत्खनन के दौरान मंदिर का तल जमीन की तत्कालीन सतह से 25 फीट नीचे मिला था।
खुलने का समय
- महाबोधि मंदिर सुबह 5 बजे खुल जाता है। यह रात्रि 9 बजे बंद होता है।
5.30 से 6.00 बजे पहली प्रार्थना होती है। 10 बजे सुबह खीर प्रसाद का समय होता है।
कैसे पहुंचे – महाबोधि मंदिर की
दूरी गया रेलवे स्टेशन से 14 किलोमीटर, गया
एयरपोर्ट से 5 किलोमीटर तो बिहार की राजधानी पटना से 115 किलोमीटर की दूरी पर है। आप गया से आटो रिक्शा करके यहां सुगमता से पहुंच सकते हैं। आप चाहें तो दिन भर बोध गया घूमने के लिए गाड़ी आरक्षित भी कर सकते हैं।
1883 में ए.
कनिंघम की अगुवाई मंदिर परिसर का व्यापक पुनर्विकास किया गया।
2002 में यूनेस्को
ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया
50 मीटर है
महाबोधि मंदिर के मुख्य गुंबद की ऊंचाई
1956 में
2500 वीं बुद्ध जयंती के मौके पर भी मंदिर का सौंदर्यीकरण हुआ
2013 में 7 जुलाई को मंदिर पर आतंकी हमला हुआ था।
4.86 हेक्टेयर में फैला है मंदिर का विशाल परिसर।
( आगे पढ़िए – बोधि वृक्ष और महाबोधि मंदिर के अन्य स्थलों के बारे
में )
( BODHGAYA,
BUDDHA, BODHI TREE, MAHABODHI TEMPLE, SMRAT ASHOKA )
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