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महाकूटा देवालय का प्रवेश द्वार। |
महाकूटा
बादामी के पास के एक छोटा सा गांव है। यह अत्यंत सुरम्य पहाड़ियों के बीच में बसा
हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार अगस्त्य मुनि ने दो असुर भाइयों वातापि और इल्वाल
का यहीं पर संहार किया था। कहा जाता है कि मृत्यु के उपरांत दोनों असुर दो पहाड़ बन गए। महाकूटा
मंदिर परिसर के बाहर कुछ दुकानें बनाई गई हैं। यहां मंदिर ट्रस्ट का दफ्तर भी है।
मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार का निर्माण किया गया है।
देवालय के अंदर, अर्ध मंडप, मुख मंडप और गर्भगृह बना हुआ है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनो तफ द्वारपाल की मूर्तियां बनी हैं। मंदिर परिसर में कई और मूर्तियां दिखाई देती हैं। यहां सालों भर नियमित उपासना होती है। हर रोज यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाकूटा मंदिर समूह का निर्माण बादामी चालुक्य राजाओं द्वारा छठी-सातवीं सदी में कराया गया। महाकूटा मंदिरों की संरचना एहोल से मिलती जुलती है।
देवालय के अंदर, अर्ध मंडप, मुख मंडप और गर्भगृह बना हुआ है। गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनो तफ द्वारपाल की मूर्तियां बनी हैं। मंदिर परिसर में कई और मूर्तियां दिखाई देती हैं। यहां सालों भर नियमित उपासना होती है। हर रोज यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाकूटा मंदिर समूह का निर्माण बादामी चालुक्य राजाओं द्वारा छठी-सातवीं सदी में कराया गया। महाकूटा मंदिरों की संरचना एहोल से मिलती जुलती है।
विष्णु पुष्करिणी - महाकूटा मंदिर परिसर में एक विशाल सरोवर भी है। इसका नाम विष्णु पुष्करिणी है। इस सरोवर में पहाड़ों से निर्मल जल सालों भर आता रहता है। इसके निर्मल जल में श्रद्धालु स्नान करते हैं। कई लोग स्नान के बाद मंदिर में पूजन के लिए जाते हैं। दोपहर की गर्मी के बीच काफी लोग मंदिर के इस सरोवर के शीतल जल में स्नान करते दिखाई देते हैं।
मंदिर
परिसर में एक कुआं भी है जिसे लोग पाप विनाशन तीर्थ कहते हैं। विष्णु पुष्करिणी के
पास ही एक अनूठा शिवलिंगम है जिसमें पांच अलग आकृतियां बनी हुई हैं। इसे पंचलिंगम
कहते हैं।
पत्र
लिखकर आशीर्वाद भेजा जाता है -
महाकूटा मंदिर में एक अनूठी परंपरा नजर आती है। मंदिर के कार्यालय में हजारों की
संख्या में पत्र लिखे हुए दिखाई देते हैं। इन पत्रों पर कर्नाटक के अलग अगल जिलों
के श्रद्धालुओं के पते लिखे हुए हैं। दरअसल ये सभी पत्र मंदिर में दान करने वाले
श्रद्धालुओं के परिवार को सालों भर भेजे जाते हैं। इन पत्रों पर श्रद्धालुओं के
लिए महाकुंटेश्वर महादेव का आशीर्वाद भेजा जाता है।
महाकूटा
शिलालेख - महाकूटा
में एक शिलालेख भी है। यह 595 से 602 ई के बीच का है। इस स्तंभ पर संस्कृत और
कन्नड़ में लिखा गया है। इस शिलालेख में चालुक्य राजा पुलकेशिन प्रथम की पत्नी
दुर्लभदेवी द्वारा दान दिए जाने का उल्लेख है। इसमें पट्टडकल, एहोल समेत दस गांवों
को दान दिए जाने का उल्लेख है। यह शिलालेख अब बीजापुर संग्राहलय में देखा जा सकता है।
यहां
एक और शिलालेख है जो वीनापोति द्वारा लिखवाया गया है। यह चालुक्य राजा विजयादित्य
की एक रानी थी। कन्नड़ में लिखा यह शिलालेख 693-733 ई के बीच का है। इस शिलालेख
में रानी द्वारा महाकूटा मंदिर को दान दिए जाने का उल्लेख है।
कैसे
पहुंचे –
बादामी बाजार से महाकूटा मंदिर की दूरी 14 किलोमीटर है। पर यहां जाने के लिए आमतौर
पर आपको निजी वाहन का सहारा लेना होगा। यह पट्टडकल मार्ग से थोड़ा सा अलग रास्ते
पर है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(MAHAKUTA SHIV TEMPLE, BADAMI )
दिनांक 24/05/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...