हमारा तांगा
बीजापुर की तंग सड़कों से होता हुआ पहुंच गया है, जामा मसजिद। बाहर कुछ फलों और शीतलपेय की दुकाने सजी
हैं। हम कुछ फल खरीदकर खाते हैं। मसजिद में प्रवेश से पहले एक जूता चप्पल स्टैंड
है। यहां एक सज्जन बैठे हैं दो रुपये प्रति चप्पल। हमलोग मसजिद के अंदर प्रवेश कर
जाते हैं। बीजापुर की जामा मसजिद यानी अल्लाह का इतना बड़ा मकान। यह दिल्ली के
जामा मसजिद से ज्यादा पुरानी है। किसी के प्रवेश पर पाबंदी नहीं है।
बीजापुर के जामा मसजिद को अली आदिल शाह प्रथम ने 1578 में बनवाया। वहीं दिल्ली की जामा मसजिद 1656 की बनी हुई है। साल 1556 में तीलाकोटी के युद्ध में जीत के बाद विजयनगर पर आदिलशाह का अधिकार हो गया। इस जीत के बाद विजयपुरा में इस विशाल जामा मसजिद का निर्माण कराया गया। इस मसजिद का गुंबज एशिया के सबसे विशालतम गुंबज में गिना जाता है। मसजिद 1,16,300 वर्ग फीट में वर्गाकार बनी है। यहां एक साथ ढाई हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं। पश्चिमी दीवारों की मेहराब पर पवित्र कुरानशरीफ की आयतें लिखी गई हैं।
बीजापुर के जामा मसजिद को अली आदिल शाह प्रथम ने 1578 में बनवाया। वहीं दिल्ली की जामा मसजिद 1656 की बनी हुई है। साल 1556 में तीलाकोटी के युद्ध में जीत के बाद विजयनगर पर आदिलशाह का अधिकार हो गया। इस जीत के बाद विजयपुरा में इस विशाल जामा मसजिद का निर्माण कराया गया। इस मसजिद का गुंबज एशिया के सबसे विशालतम गुंबज में गिना जाता है। मसजिद 1,16,300 वर्ग फीट में वर्गाकार बनी है। यहां एक साथ ढाई हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं। पश्चिमी दीवारों की मेहराब पर पवित्र कुरानशरीफ की आयतें लिखी गई हैं।
मसजिद से बाहर
निकलने के बाद मैं यहीं से बीजापुर पर एक छोटा गाइडबुक खरीदता हूं। अब हम आगे चल
पड़ते हैं। पूरा विजयपुरा शहर के विशाल बाउंड्री वाल से घिरा है। इस दीवार का
अस्तित्व अभी भी जगह जगह देखा जा सकता है।
मेहतर महल - आगे तांगे वाले हमें एक मीनार दिखाते हैं। यह काफी हद तक चारमीनार
हैदराबाद की नकल है। पर इसका गुंबद यानी प्रवेश द्वार अदभुत दिखाई देता है। इस महल
की मीनारों पर चिड़ियों का बसेरा होता है। महल का निर्माण 1620 ई का है। इसका नाम
मेहतर महल इसलिए है कि इसका निर्माण एक मेहतर ( झाड़ूकश ) ने कराया। हालांकि यह भी
कहा जाता है इस महल का निर्माण एक फकीर ने कराया। उसे निर्माण के लिए राशि इब्राहिम
आदिलशाह द्वितीय से दान में मिली थी।
हमारा तांगा आगे
बढ़ता है। बीजापुर का बस स्टैंड आ गया। यहां जाहिर है, वाहनों की भीड़भाड़ है। बीजापुर
बस स्टैंड से कर्नाटक आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों के लिए बसें
मिलती हैं।
हमलोग आगे बढ़ते
हैं। हमारी अगली मंजिल है जोड़ी गुंबद। यह सिटी बस स्टैंड के करीब ही है। यहां पर
दो गुंबद एक साथ बने हैं। यहां कुछ दुकानें सजी हैं।
पास में एक मसजिद है जहां काफी लोग मनौती मांगने वाले भी पहुंचते हैं। जोड़ी गुंबज के पास हमेशा रौनक रहती है। साल 2009 में बीजापुर शहर कई महीनों तक बाढ से घिरा रहा। जोड़ी गुंबज तो कई महीने पानी में रहा, पर बीजापुर के ज्यादातर इमारतों की नींव इतनी मजबूत है कि इन पर लंबे समय तक जल जमाव का कोई असर नहीं हुआ।
पास में एक मसजिद है जहां काफी लोग मनौती मांगने वाले भी पहुंचते हैं। जोड़ी गुंबज के पास हमेशा रौनक रहती है। साल 2009 में बीजापुर शहर कई महीनों तक बाढ से घिरा रहा। जोड़ी गुंबज तो कई महीने पानी में रहा, पर बीजापुर के ज्यादातर इमारतों की नींव इतनी मजबूत है कि इन पर लंबे समय तक जल जमाव का कोई असर नहीं हुआ।
रोचक। इधर की जामा मस्जिद में चपप्लों के लिए जगह है ये जानकर अच्छा लगा. दिल्ली की जामा मस्जिद में जब मैं गया था तब न उधर जूते रखने की जगह थी और न कैमरा. कैमरे के चार्जेज अलग से वो ले रहे थे. जब पूछा सामान छोड़कर कैसे जायेंगे तो उन्होंने कहा एक बंदा रुक जाओ. इस कारण हम अन्दर गये ही नहीं और गेट से ही वापस आ गये.
ReplyDeleteइनकी व्यवस्था देखकर अच्छा लगा.
आभार
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