देश के कुछ वे शहर जो सचमुच में
हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतिनिधि हो सकते हैं उनमें शामिल है जोधपुर। शहर का
पुराना स्वरूप, खानपान, शानदार किले और उद्यान और यहां के मस्त और दोस्ताना लोग
शहर को बाकी शहरों से अलहदा बनाते हैं। जोधपुर शहर में उतरने के बाद सबसे पहली
जरूरत ठिकाने की थी। तो हमने गोआईबीबो डाट काम से बुक किया था, पटवा हवेली।
हालांकि कई होटल रेलवे स्टेशन के आसपास हो सकते थे। पर हमने ठिकाना ढूंढा था
पुराने शहर में। जैसा की नाम से जाहिर है पटवा हवेली यानी यह कोई पुरानी हवेली
होगी। स्टैंडर्ड कमरे 700 रुपये प्रतिदिन के हैं पर मुझे ऑनलाइन डील में यह महज 38
रुपये का पड़ा था। जोधपुर पहुंची बस से रेलवे स्टेशन के पास उतर गया था।
सुबह के
पांच बजे के अंधेरा था। हमने लोगों से पूछा सराफा बाजार कहां है। और पैदल ही चल
पड़ा। वह सुबह की सैर थी, जोधपुर की खाली सड़कों पर। रेलवे स्टेशन से आधे किलोमीटर
पर साजोती गेट आया। सोजाती दरवाजा का निर्माण नगर की सुरक्षा के लिए 1724 से 1749
के बीच जोधपुर के राजा राजेश्वर महाराज ने कराया था। इस दरवाजे से सोजात शहर की ओर
जाने का मार्ग निकलता था इसलिए इसे सोजाती गेट कहा जाता है। नगर में मेड़तिया
दरवाजा और नागौरी दरवाजे का निर्माण भी इसी तरह नगर की सुरक्षा के लिए हुआ था। आप
अगर स्टेशन के आसपास रहना चाहते हैं तो सोजाती गेट के पास किसी होटल में ठिकाना
बना सकते हैं। यहां से हम शहर के संकरे रास्तों में आगे बढ़ते हैं।
काफी हद तक
बनारस की गलियों की तरह। सुबह होने के कारण बाजार बंद है। पर साइन बोर्ड देखकर लग
रहा है कि दिन में यहां भीड़ का क्या आलम रहता होगा। चलते चलते पहुंचता हूं त्रिपोलिया
बाजार। लोगों के बताने के मुताबिक रास्ता बदल कर त्रिपोलिया चौराहा से बायीं तरफ
मुड़ जाता हूं। मकानों में पुराने विशालकाय नक्काशीदार लकड़ी के गेट लगे हैं। ये
सब पुरानी हवेलियां हैं। कंदोई बाजार, तंबाकू बाजार, कतला बाजार, चूड़ी बाजार,
मिर्ची बाजार से होता हुआ आगे बढ़ रहा हूं। एक मंदिर आता है, कुंज बिहारी जी का
मंदिर। लिखा है कि इस मंदिर का निर्माण 1790 में जोधपुर के धर्मनिष्ठ महाराजा विजय
सिंह जी की उपपत्नी श्रीमती गुलाब राय ने कराया। यह मंदिर कतला बाजार में स्थित
है।

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पटवा हवेली में जाने का संकरा रास्ता, मोटा आदमी फंस जाए... |
वह
आने की बात कहता है। थोड़ी देर में एक नेपाली भाई आते हैं मेरे पास और साथ चलने को
कहते हैं।
मैं उनके पीछे पीछे चल पड़ता हूं। इसी आंगन में दाहिनी तरफ के कोने पर डेढ फीट पतला रास्ता है। यह गली नहीं है क्योंकि ऊपर छत है, मानो हम किसी सुरंग में जा रहे हों।
मैं उनके पीछे पीछे चल पड़ता हूं। इसी आंगन में दाहिनी तरफ के कोने पर डेढ फीट पतला रास्ता है। यह गली नहीं है क्योंकि ऊपर छत है, मानो हम किसी सुरंग में जा रहे हों।
मैं नेपाली भाई के पीछे पीछे चल रहा हूं। कोई 20 फीट अंदर जाने पर
वे दाहिनी तरफ के दरवाजे में अंदर ले जाते हैं। तो ये है पटवा हवेली। बाकी की
कहानी आगे....
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
( PATWA
HAWELI, JODHPUR, SAJOTI GATE, TRIPOLIA, SARAFA BAJAR, KUNJ BIHARI TEMPLE )