चेरापूंजी में हमारा आखिरी
पड़ाव है सेवेन सिस्टर फाल्स। जैसा की नाम से ही लगता है कि यहां सात झरने होंगे।
हमारे यहां पहुंचने तक शाम के 5 बज गए हैं। जैसा कि आपको पहले भी बताया है कि
चेरापूंजी में मौसम तेजी से बदलता है। अभी धूप, अभी बादल, अभी बारिश। तो यहां
सड़कों पर बादलों ने अपना डेरा डाल दिया है। और हमें दूर का नजारा दिखाई देना
बिल्कुल बंद हो गया है।

टैक्सी वाले भाई वांकी बताते
हैं कि एक दिन पहले यानी 12 अक्तूबर को
जिस टूरिस्ट को लेकर वे चेरापूंजी आए थे वह तो सारा दिन टैक्सी से बाहर निकल ही
नहीं पाया। क्योंकि दिन भर बारिश होती रही। सिर्फ रामकृष्ण आश्रम में ही वह बाहर
निकल पाया। हमारी किस्मत अच्छी थी कि आज सारे विंदुओं का नजारा कर पा रहे हैं।
सेवेन सिस्टर फाल्स नहीं दिखाई
दिया पर हमें यहां पर बना सेवेन सिस्टर फाल्स गेस्ट हाउस जरूर दिखाई दे रहा है। तो
यादगारी के लिए कुछ तस्वीरें हो जाएं।
सेवेन सिस्टर फाल्स का मूल नाम
नोहसिंगथियांग फाल्स है। मावसमाई गांव से इसकी दूरी तकरीबन एक किलोमीटर है। यहां
पानी 315 मीटर (1035 फीट) की ऊंचाई से गिरता है और झरनों की औसत चौड़ाई 70 मीटर तक
है। एक हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई से पानी गिरने के कारण यह देश के सबसे लंबे झरनों
में गिना जाता है। ऊंचाई के लिहाज से यह देश का चौथा सबसे ऊंचा झरना है। अगर आप
ऐसे समय इस वाटर फाल्स देखने पहुंचे हैं जब खिली खिली धूप हो तो आपको और भी सुंदर
नजारे देखने को मिल सकते हैं।
बारिश के
दिनों में आप पहुंचे तो आपको सात धाराओं में झरना कल कल झरता हुआ आपको
दिखाई दे सकता है। कई बार तो यहां इंद्रधनुष भी बन जाता है तब सैलानियां इस नजारे
को देखकर नाच उठते हैं। पर हमारे लिए इस वक्त सौभाग्य का वक्त नहीं है। सात बहनों ने नजरें छिपा ली हैं। खैर फिर कभी सही। शायद वे भी यही चाहती हैं कि हम दुबारा चेरापूंजी पहुंचे, तो हो सकता है आना हो दुबारा।
चेरापूंजी के सारे नजारे देख लेने के बाद शाम ढलने को आ गई है और अब हमारे शिलांग वापस लौटने का समय हो चुका है। दिन भर कुदरत के नजारों का लुत्फ उठाते हुए हमें खाने का तो याद ही नहीं रहा। हम सुबह होटल से नास्ता करके ही चले थे। अब तय किया गया कि शिलांग चल कर ही पेट पूजा करेंगे। वापसी का वही रास्ता था जहां से हम नजारों का आनंद उठाते गए थे।
शिलांग में भी लगता है भारी जाम - हमलोग शाम ढलने के साथ ही शिलांग शहर में प्रवेश कर चुके हैं। पर यह क्या... शिलांग शहर में प्रवेश करने के साथ भारी ट्रैफिक जाम का सामाना करना पड़ा। जाम के कारण ही अब हमने पुलिस बाजार जाकर खाने का इरादा छोड़ दिया। वांकी भाई ने बताया कि यहां हर शाम को जाम लगता है। खैर उन्होंने हमें होटल नाइट इन तक छोड़ दिया।
दिन भर की थकान बाद बाहर जाने की इच्छा नहीं थी। तो रात का खाना हमने होटल में ही आर्डर किया। हालांकि रात का खाना आर्डर देने के काफी देर बाद आया और यह अच्छा भी नहीं था। पर इसी खाने के सिवा कोई चारा नहीं था। हालांकि अगले दिन सुबह हमें पता चला कि होटल के पास नेपाली मिठाई की दुकान है, जहां पर पूड़ी सब्जी मिल जाती है। शिलांग में भले ही दिन में चटख धूप हो रात सर्द हो जाती है। तो अब शिलांग की सर्द रात को हम महसूस कर रहे थे। दिन भर की थकान थी तो अब ब्लैंकेट में घुस जाने की बारी थी।
-vidyutp@gmail.com
सुन्दर लेख... आपके लेख के साथ हम पाठक भी उन जगहों का भ्रमण कर लेते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDelete