माजुली द्वीप के दक्षिणापथ सत्र के
नाम घर के बाईं तरफ स्थित है भाराल घर यानी संग्रहालय। हमलोग पूरा सत्र परिसर घूम
चुके थे। पर हमें संग्रहालय नजर नहीं आया था।
दरअसल संग्रहालय जिस भवन में स्थित है वह बड़ा ही पुराना अत्यंत खंडहरनुमा भवन है। बाद में हमें पता चला कि यह माजुली का सबसे पुराना भवन है जो अभी भी खड़ा है। इस भवन के बाहर हमें बुजुर्ग भगत नारायण काकोती मिले। वे बैठे हुए तांबुल छील रहे थे। बातों से उच्चशिक्षित लगने वाले नारायण काकोती दिल्ली समेत देश के कई शहरों घूम चुके हैं। दक्षिण पथ के इस नायाब संग्रहालय के बाहर भले ही कोई बोर्ड नहीं लगा हो पर अंदर जो वस्तुएं हैं उनको देखकर आंखे चौंधिया जाती हैं।
नारायण जी ने हमारा परिचय पूछा। हमने बताया दिल्ली से आए हैं। उन्होने डोनेशन बाक्स में 20 रुपये डालने को कहा। इसके बाद वे हमें अंदर ले गए। उनके हाथों में एक विशाल चाबियों का गुच्छा था। इसमें बड़े बड़े तालों की कई चाबियां थीं। सबसे पहले उन्होंने हमें अंधेरे कमरे में जलती हुई एक ज्योत दिखाई बताया कि यह 350 सालों से अनवरत जल रही है।
दरअसल संग्रहालय जिस भवन में स्थित है वह बड़ा ही पुराना अत्यंत खंडहरनुमा भवन है। बाद में हमें पता चला कि यह माजुली का सबसे पुराना भवन है जो अभी भी खड़ा है। इस भवन के बाहर हमें बुजुर्ग भगत नारायण काकोती मिले। वे बैठे हुए तांबुल छील रहे थे। बातों से उच्चशिक्षित लगने वाले नारायण काकोती दिल्ली समेत देश के कई शहरों घूम चुके हैं। दक्षिण पथ के इस नायाब संग्रहालय के बाहर भले ही कोई बोर्ड नहीं लगा हो पर अंदर जो वस्तुएं हैं उनको देखकर आंखे चौंधिया जाती हैं।
नारायण जी ने हमारा परिचय पूछा। हमने बताया दिल्ली से आए हैं। उन्होने डोनेशन बाक्स में 20 रुपये डालने को कहा। इसके बाद वे हमें अंदर ले गए। उनके हाथों में एक विशाल चाबियों का गुच्छा था। इसमें बड़े बड़े तालों की कई चाबियां थीं। सबसे पहले उन्होंने हमें अंधेरे कमरे में जलती हुई एक ज्योत दिखाई बताया कि यह 350 सालों से अनवरत जल रही है।
वे हमें विशाल चांदी की छड़ी दिखाते हैं। इस छड़ी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा उकेरी गई है। इसे पहले सत्राधिकार बनमाली देव इस्तेमाल करते थे। एक विशाल तलवार भी वह हमें दिखाते हैं। यह राजा के द्वारा दान में दी गई थी। इस संग्रह की ज्यादातर अनमोल वस्तुएं राजा के द्वारा दान में दी गई हैं। इसके साथ ही एक गुप्ती भी है। यह छड़ी के जैसी होती है पर इसको खींचने पर अंदर विशाल तलवार नुमा हथियार होता है।
इस संग्रह में राजा
द्वारा दिए गए कई राजकीय वस्त्र भी हैं। इन सारे सामानों को बड़े बड़े लकड़ी के
बक्से में ताले में बंद करके रखा गया है। जब कोई सैलानी पहुंचता है तो इन्हें खोल कर दिखाया जाता है। इन
वस्तुओं की कीमत हो सकता है आज करोड़ों में हो पर इसको लेकर यहां कोई विशेष
सुरक्षा का इंतजाम नहीं है।
यहां आप सोने और
चांदी से जड़ी हुई साड़ियां देख सकते हैं। हमने खाने के लिए चांदी की थाली और
चांदी का ग्लास यहां पर देखा। इस संग्रहालय
में अंधेरा है। शायद रात को भी बिजली नहीं रहती। हमें दो लालटेन टंगे हुए
दिखाई देते हैं। नारायण काकोती के पास एक बड़ा सा टार्च है जिसकी रोशनी में वे हमें कई नायाब संग्रहों को दिखाते हैं। वे हमें सोने की बेशकीमती चीजें भी दिखाते हैं पर उनका फोटो खींचने
से मना कर देते हैं।
वे हमें एक सुंदर
नक्काशीदार दीपक भी दिखाते हैं। यहां एक एंटीक घड़ी भी हमें दिखाई देती है। इसे जल
घंटा कहते हैं। घड़ी के नीचे उसके पेंडुलम के साथ एक लोटा लगा हुआ जिसमें जल भरा
जाता था।
दक्षिणापथ सत्र - ये राजा की दी हुई तलवार.... |
इतना सारा संग्रह
देखकर किसी की भी आंखे चौंधिया जाती हैं। पर कई लोग इस संग्रहालय को देख नहीं पाते
हैं। क्योंकि यहां कोई मार्ग संकेतक या साइन बोर्ड नहीं लगा हुआ है। अगर दक्षिणापथ
घुमाने वाला कोई गाइड आता है तो वह इन नायाब संग्रह तक आपको ले जा सकता है। नारायण
काकोती बताते हैं कि जिस भवन में यह संग्रहालय स्थित है यह माजुली का सबसे पुराना भवन है। हमारे लिए यह सब कुछ कौतूहल भरा था। शाम होने वाली थी तो हम चल पड़े अपने
अगले पड़ाव की ओर...
( DAKHINPAT
SATRA, MAJULI, ASSAM, BANMALI DEV, MUSEUM, JALGHNATA )
दक्षिणापथ सत्र में ज्योति जो 350 सालों से लगातार जल रही है..... |
और ये रही सैकड़ो साल पुरानी गुप्ती....माजुली की यात्रा को शुरुआत से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें... |
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