दक्षिणापथ सत्र की स्थापना 1584
में बनमाली देव ने की थी। उन्हें अहोम राजा जयध्वजा सिंघ का संरक्षण प्राप्त था।
यह ब्रह्मपुत्र के दक्षिण तट पर स्थित है इसलिए इसका नाम दक्षिणापत पड़ा। यहां पत
से अभिप्राय पोर्ट यानी बंदरगाह से है। अभी भी जोरहाट के निमाती घाट से दक्षिणापत
के लिए भी सीधी फेरी सेवा चलती है।

दक्षिणापथ सत्र के पहले सत्राधिकार श्री श्री बनमाली देव थे। उनके बाद
श्री रामदेव गोस्वामी, श्रीकृष्णदेव गोस्वामी, श्री आत्मारामदेव गोस्वामी,
श्रीकामदेव गोस्वामी, श्रीसुहादेव गोस्वामी, श्रीबंती देव गोस्वामी, श्रीविष्णुदेव
गोस्वामी, श्रीशुभदेव गोस्वामी, श्री
नरदेव गोस्वामी, श्री नारायणदेव गोस्वामी, श्रीहरिदेव गोस्वामी और श्री रामानंददेव
गोस्वामी सत्राधिकार रह चुके हैं। वर्तमान
में 16वें सत्राधिकार श्री नैनी गोपाल गोस्वामी हैं। वे जोरहाट शहर में रहते हैं।
दक्षिणापथ सत्र ब्रह्मपुत्र नदी
की धारा के किनारे स्थित है। हर साल बाढ़ आने पर यहां पानी पहले पहुंचता है। सत्र
और उसके आसपास के गांव को बचाने के लिए मिट्टी के ऊंचे बांध का निर्माण किया गया है।
इस बांध के साथ सड़क भी निर्मित की गई है। यह बांध पर बनी सड़क ही सत्र तक पहुंचने
का रास्ता भी बनाती है।
कैसे पहुंचे -
कमलाबाड़ी बाजार से कोई 12 किलोमीटर सीधे दक्षिणापथ के मार्ग पर चलने के बाद एक
नहर पर पुल आता है। इस पुल से दाहिनी तरफ खेतों के बीच जाने वाली सड़क पर चलते हुए
5 किलोमीटर जाने के बाद बांध वाली सड़क आती है। इस सड़क पर दाहिने मुड़ने के बाद
एक किलोमीटर चलने पर दक्षिणा पथ सत्र का प्रवेश द्वार दिखाई देता है।
दक्षिणापथ सत्र के अंदर बने नाम
घर के बाहर कृष्णलीला की सुंदर पेंटिंग लगी है। नामघर के दीवारों पर भी कई सुंदर
पेटिंग देखी जा सकती है। यहां पर निवास कर रहे भक्त लोगों के साथ एक परेशानी पेश
आई कि उसमें हिंदी जानने वाले लोग कम थे लिहाजा कोई भी सत्र के अंदर देखने वाली
चीजों के बारे में जानकारी नहीं दे पा रहा था। नामघर के ठीक पीछे एक अति सुंदर
लकड़ी का बना हुआ बंग्ला है। हमारे साथ घूम रहे लोगों ने बताया कि यह ब्रिटिश
कालीन है।इस बंग्ले के आसपास कई एंटिक वस्तुएं रखी थीं। सत्र के अंदर विशाल तालाब
है। इसमें नाव चलाकर भक्त लोग मछली पकड़ते हुए भी दिखाई दिए। सत्र के अंदर कई भवन
में निर्माण कार्य जारी था। इसे देखकर लगा कि इस सत्र के पास बजट की कोई कमी नहीं
है।
हमने सत्र परिसर में भगत लोगों
के निवास का भी दौरा किया। इसे हति कहते
हैं। यहां भी बाल भक्त दिखाई दिए। कुछ भगत गाय चरा कर लौट रहे थे। कई भक्त लोगों के
कमरे में टीवी भी लगे हुए थे। दूसरे सत्रों की तरह यहां भी फाल्गुनोत्सव
(होली) और कार्तिक पूर्णिमा, बिहू, रथयात्रा,
शिवरात्रि आदि उत्सवों और रासलीला का
आयोजन किया जाता है।
छोटा सा चिड़ियाघर - दक्षिणापथ सत्र में एक छोटा सा चिड़ियाघर भी है। इसमें हमें हिरण और कुछ दूसरे जानवर दिखाई दिए। यहां पर हमें सत्र वासियों का जानवरों के प्रति प्रेम दिखाई देता है। पर छोटे से चिड़िया घर से आगे सत्र का सबसे बड़ा कौतूहल हमारा इंतजार कर रहा था, जिसके बारे में हम अगली कड़ी में बात करेंगे।
छोटा सा चिड़ियाघर - दक्षिणापथ सत्र में एक छोटा सा चिड़ियाघर भी है। इसमें हमें हिरण और कुछ दूसरे जानवर दिखाई दिए। यहां पर हमें सत्र वासियों का जानवरों के प्रति प्रेम दिखाई देता है। पर छोटे से चिड़िया घर से आगे सत्र का सबसे बड़ा कौतूहल हमारा इंतजार कर रहा था, जिसके बारे में हम अगली कड़ी में बात करेंगे।
( DAKHINPAT
SATRA, MAJULI, ASSAM, BANMALI DEV )
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