पोर्ट ब्लेयर स्थित एंथ्रोपोलाजिकल म्युजिम। प्रवेश टिकट 20 रुपये है... |
आपको पता है दुनिया में आज भी
125 घुमक्कड़ जातियां हैं। इनमें 5 जातियां अंडमान में हैं जो आज भी अपना भोजन
संग्रह करते पेट भरती हैं। इन्हें नेटिग्रो वर्ग में रखा गया है। अंदमान के ग्रेट
अंडमान और लिट्टल अंडमान में ऐसे लोग रहते हैं। जारवा, ओंगी, शैंपेन जैसे लोग आज
भी आदिम जीवन जीते हैं। ओंगी मधु निकालते हैं तो जारवा लोग तीर धनुष से मछली
पकड़ते हैं। जारवा लोग बॉडी पेंटिंग के भी शौकीन होते हैं। इस तरह की तमाम रोचक
जानकारियों के लिए आपको पहुंचना होगा पोर्ट ब्लेयर के एंथ्रोपोलाजिकल म्युजियम
में। ये म्युजियम अबरडीन बाजार से मिड्ल प्वाइंट की ओर आगे बढ़ने पर पोर्ट ब्लेयर
के मुख्य डाकघर के पास स्थित है। प्रवेश के लिए टिकट 20 रुपये का है। संग्रहालय
में एक बिक्रय काउंटर भी है जहां आप किताबें और अन्य सामग्री खरीद सकते हैं।
संग्रहालय का भवन तीन मंजिला है। इसमें काफी जानकारियां समेटी गई हैं। अंदर
फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी पर निषेध है।
शोंपेन जनजाति के लोग |
शर्मीले शोंपेन की अलग दुनिया -
शोंपेन लोग मोंगोलाएड नस्ल के हैं। ये ग्रेट निकोबार में रहते हैं। ये लोग आज भी
फायर ड्रिल करके आग जलाते हैं। यानी लकड़ी में छेद करके आग जलाने की तकनीक का
इस्तेमाल करते हैं। इनके चमड़े का रंग पीला भूरा और बाल लंबे होते हैं। इनकी पलकें
छोटी, नाक चपटी और होंठ मोटे होते हैं। निकोबार में रहने वाले शोंपेन लोग मलेशियाई
और इंडोनेशियाई लोगों से मेल खाते हैं। निकोबार में कुल 22 द्वीप हैं जिनपर इनका
निवास है। शोंपेन लोग ग्रेट निकोबार के मुख्यालय में कभी कभी सरकारी मदद प्राप्त
करने के लिए आते हैं। वे लोग आम तौर पर शर्मीले स्वभाव के होते हैं। शोंपेन लोग
अक्सर नदी या झरनों के पास छोटी छोटी झोपड़ियां बनाकर रहते हैं। सबसे बुजुर्ग आदमी
इनके समाज का मुखिया होता है। इनमें एक विवाह और बहु विवाह प्रथा कायम है। शोंपन
लोगों की कुल संख्या 400 के करीब रह गई है।
मुश्किल है सेंटिनिलीज को समझाना
- सेंटिनिलीज लोग दक्षिण अंडमान के नार्थ
सेंटीननल द्वीप पर निवास करते हैं। ये जारवा लोगों की तरह खूंखार होते हैं। सभ्य
समाज के लोगों को देखकर ये कई बार तीर कमान तान देते हैं। भारत सरकार ने उनके
सुरक्षित क्षेत्र को संरक्षित रखा है। उनके साथ मित्रतापूर्ण संपर्क करने की कोशिश
की जा रही है। पर इसमें ज्यादा सफलता नहीं मिली है। इनकी कुल संख्या 40 के करीब रह
गई है।
खुली हवा में रहना चाहते हैं ओंगी – ओंगी
लोग पोर्ट ब्लेयर से 130 किलोमीटर दूर लिटल अंदमान में रहते हैं। नाटे और गठीले
शरीर वाले ओंगी लोग खाने की चीजों को कच्चा या भूनकर खाते हैं। खाने के लिए ये लोग
जंगलों में शिकार करते हैं। पुरुष मात्र कौपीन धारण करते हैं तो महिलाएं अपने छातियों
को सूखे पत्तों से ढककर रखती हैं। ये खुली हवा में रहना पसंद करते हैं। शादी मे
युवक युवती एक दूसरे शरीर पर मिट्टी का लेप लगाते हैं बस हो गई शादी। कोई जलसा
नहीं। इनके यहां एक विवाह की प्रथा कायम है। ओंगी लोगों की आबादी 100 से भी कम रह
गई है। ओंगी लोग पेड़ों को काटकर नावों का निर्माण करते हैं।
ग्रेट अंडमानी – ये
एक लुप्त होती जनजाति है जो पोर्ट ब्लेयर से 46 किलोमीटर दूर स्ट्रेट द्वीप पर
रहती है। ये लोग अब बहुत कम संख्या में बचे हैं। कभी ये फलती फूलती जनजाति थी
लेकिन सभ्य समाज से मेल मिलाप के बाद इनकी मृत्यु दर में इजाफा हुआ है। ये अब
अंदमान के कमजोर जानजाति के तौर पर आंके जाते हैं।

झारखंड के आदिवासियों ने बसाई
रांची बस्ती - अंदमान में स्थानीय लोगों के
अलावा केरल से आए मोपला लोगों का भी निवास है। भातू बस्ती में ज्यादातर यूपी से
लाए गए लोग रहते हैं। कुछ बर्मीज मूल के लोगों का भी निवास है, ये लोग करेन कहलाते
हैं। केरेन मायबंदर इलाके में बसे हैं। इन्हें अंग्रेज बर्मा से बीहड़ जंगलों की
कटाई के लिए लेकर आए थे। पोर्ट ब्लेयर में एक रांची बस्ती भी है। यहां झारखंड से
आदिवासियों को काम करने के लिए लाया गया था। इसके अलावा द्वीप पर बड़ी संख्या में
बंगाली लोग भी हैं। भूतपूर्व सैनिकों के तमिल और तेलगू परिवार भी यहां रहते हैं।
जनजातियों पर मुकदमा नहीं
भारतीय कानून सेंटिनेलीज लोगों की रक्षा करता है। इन लोगों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। उनके साथ कोई संपर्क या उनके निवास क्षेत्रों में प्रवेश अवैध घोषित है।
कम होती संख्या
जारवा, सेंटिनेलीज, ओंगी, शोंपेन आदि अंडमान की संरक्षित जानजातियां हैं। इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। ये लोग आज भी आदिम जीवन जीते हैं। आमतौर पर बाहरी लोगों के साथ उनका व्यवहार शत्रुतापूर्ण रहता है।
39 संख्या है सेंटिनेलीज की। ये उत्तरी सेंटिनेल द्वीप पर रहते हैं।
400 के आसपास है शोंपेन जनजाति की संख्या। ग्रेट निकोबार के जंगल में रहते हैं।
240 के आसपास जारवा लोग बचे हैं। वे दक्षिण और मध्य अंडमान में रहते हैं।
98 संख्या रह गई है रहने वाले ओंगी जनजाति की। लिटिल अंडमान में रहते हैं।
43 संख्या है रहने वाले ग्रेट अंडमानी जनजाति की। स्ट्रेट आइलैंड पर रहते हैं।
फोटो वीडियो पर रोक
2012 के अंडमान रेगुलेशन एक्ट के तहत प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश पर मुकदमा दर्ज होता है।
2017 में सरकार ने स्पष्ट किया था कि सेंटिनेलीज के वीडियो सोशल मीडिया या इंटरनेट पर अपलोड नहीं किए जा सकते।
जनजातियों पर मुकदमा नहीं
भारतीय कानून सेंटिनेलीज लोगों की रक्षा करता है। इन लोगों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। उनके साथ कोई संपर्क या उनके निवास क्षेत्रों में प्रवेश अवैध घोषित है।
कम होती संख्या
जारवा, सेंटिनेलीज, ओंगी, शोंपेन आदि अंडमान की संरक्षित जानजातियां हैं। इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। ये लोग आज भी आदिम जीवन जीते हैं। आमतौर पर बाहरी लोगों के साथ उनका व्यवहार शत्रुतापूर्ण रहता है।
39 संख्या है सेंटिनेलीज की। ये उत्तरी सेंटिनेल द्वीप पर रहते हैं।
400 के आसपास है शोंपेन जनजाति की संख्या। ग्रेट निकोबार के जंगल में रहते हैं।
240 के आसपास जारवा लोग बचे हैं। वे दक्षिण और मध्य अंडमान में रहते हैं।
98 संख्या रह गई है रहने वाले ओंगी जनजाति की। लिटिल अंडमान में रहते हैं।
43 संख्या है रहने वाले ग्रेट अंडमानी जनजाति की। स्ट्रेट आइलैंड पर रहते हैं।
फोटो वीडियो पर रोक
2012 के अंडमान रेगुलेशन एक्ट के तहत प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश पर मुकदमा दर्ज होता है।
2017 में सरकार ने स्पष्ट किया था कि सेंटिनेलीज के वीडियो सोशल मीडिया या इंटरनेट पर अपलोड नहीं किए जा सकते।
( जानकारियां और चित्र
समुद्रिका संग्रहलाय पोर्ट ब्लेयर के सौजन्य से )
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विद्युत
प्रकाश मौर्य – vidyutp@gmail.com
अंदमान की यात्रा को पहली कड़ी से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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( ANDAMAN NICOBAR, PORT BLAIR, TRIBE, SHOMPEN, ONGE,
SENTINELESE )
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