अंदमान के द्वीपों पर वैसे तो
लंबे समय से आदिवासी लोगों के निवास रहा है। इसमें जारवा, निकोबारी, शैंपेन, ओंगी
जैसे लोग प्रमुख हैं। पर साल 1858 से यहां भारत के मुख्य हिस्सों से लोगों के बसने
का सिलसिला शुरू हो गया। 10 मार्च 1858 को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से
जुड़े 200 सेनानियों को समुद्री जहाज से अंदमान लाया गया। तब उन्हे सजा-ए-कालापानी
के तौर पर यहां लाया गया था। चाथम में उन सबसे पहले आने वाले सेनानियों की याद में
स्मारक का निर्माण कराया गया है। भले ही वे कैदी के तौर पर इस द्वीप पर आए थे पर
इस द्वीप के निर्माण, यहां की खेती बाड़ी और यहां की संस्कृति को भारतीय संस्कृति
के तौर पर स्थापित करने में उनकी बड़ी भूमिका है। 1857 की क्रांति में विद्रोह का
बिगुल बजाने वाले 200 सिपाहियों को लेकर एस एस सिमेरामी नामक जहाज 10 मार्च 1858 को अंदमान पहुंचा था।
1883 में जब चाथम शॉ मिल की
शुरुआत हुई तो इनमें से कई कैदियों को इसमे काम पर लगाया गया। इसलिए शॉ मिल के
परिसर में उनकी यादगारी में स्मारक बनाया गया है। वैसे अंडमान के बारे में तथ्य है कि चीन के लोगों को इस द्वीप के
बारे में एक हजार साल पहले से मालूम था। वे इसे येंग टी ओमाग के नाम से जानते थे।
रोमन भूगोलवेत्ता टोलेमी ने दूसरी शताब्दी में इसे अंगदमान आईलैंड ( अच्छे भविष्य
का द्वीप) नाम दिया था। बौद्ध तीर्थ यात्री इत्सिंग ने 672 ई में यहां जहाज से
यात्रा की थी। उसने इसे लो जेन कूओ ( नग्न लोगों का देश) नाम दिया था।
पंद्रहवीं
सदी में महानयात्री मार्कोपोलो ने इसे अंगमानियन नाम दिया था। इटली के घुमक्कड़
निकोलो कौंट्री से ने इसे आईलैंड ऑफ गॉड कहा। वर्तमान नाम अंदमान कहा जाता है कि
हनुमान जी के नाम पर पड़ा, क्योंकि श्रीलंका जाते समय हनुमान जी ने इस द्वीप की
पहचान की थी। निकोबार शब्द तमिल के नक्कावरम से बिगड़ा है जिसका मतलब है नग्न लोगों
का देश।

बहरहाल ब्रिटिश शासन को इस
क्षेत्र से गुजरने वालों जहाजों की रक्षा के लिए यहां पर स्थायी बस्ती बसाने की
जरूरत महसूस हुई। इसलिए यहां पर उनकी नजर में खूंखार कैदियों को यहां भेजने का
विचार आया। इससे उनकी दोनों तरह की जरूरते पूरी हो रही थीं।
आर्चिबिल्ड ब्लेयर के नाम पर पोर्ट ब्लेयर - 14 अप्रैल 1788 को ब्रिटिश
अधिकारी ले. आर्चिबिल्ड ब्लेयर को यहां
आबादी बसाने के लिए लगाया गया। 25 अक्तूबर 1789 को पहले कैदियों का एक दल यहां आया। इन 820 कैदियों को वाइपर द्वीप पर खुला छोड़ दिया गया। चारों ओर गहरा समुद्र के कारण भागने का कोई खतरा नहीं था।
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पोर्ट ब्लेयर - लकड़ी का जहाज ( ड्रीम पैलेस ) |
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(ANDAMAN, PORT BLAIR, CHATHAM MEMORIAL, 1857 REVOLT )
अंदमान की यात्रा को पहली कड़ी से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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