बंगाल के हुगली जिले में हैं तारकेश्वर महादेव- महादेव शिव के देश के प्रसिद्ध
मंदिरों में से एक है बंगाल का तारकेश्वर महादेव का मंदिर। कहा जाता है शिव तारक
मंत्र देते हैं तभी मनुष्य का उद्धार होता है। न सिर्फ बंगाल में बल्कि दूर दूर तक
इस मंदिर की मान्यता है। पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के तारकेश्वर शहर में स्थित है
बाबा भोले नाथ का मंदिर तारकेश्वर धाम।
इस प्रसिद्ध तारकेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं
की गहरी आस्था है। कहा जाता है कि यहां भक्तजन जो भी मन्नत मांगते हैं उनकी मन्नत पूरी होती है। इस मंदिर का निर्माण साल 1729 में हुआ था। यह बांगला वास्तुकला का सुंदर उदाहरण है। मंदिर के गर्भ गृह
के आगे बरामदा बना हुआ है। मंदिर के बगल में एक विशाल सरोवर है। इस सरोवर को
दूधपुकुर ( दूध का पोखर) कहते हैं। पूजा के लिए आने वाले श्रद्धआलुओं में से काफी
लोग पहले मंदिर में स्नान करते हैं फिर पूजा करते हैं। इस मंदिर का पौराणिक महत्व
है इस मंदिर को एक शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान
विष्णु ने तारकेश्वर के पश्चिम दिशा की ओर एक कुंड खोदा था और भगवान शिव का
शिवलिंग की स्थापना करके उनकी आराधना की थी। ऐसी भी मान्यता है कि तारकेश्वर देवी
लक्ष्मी का मूल निवास स्थल है। देवी लक्ष्मी यहां देवी सरस्वती के साथ वैष्णवी रूप
में भी निवास करती हैं। महादेव तारकेश्वर का मंत्र - ओम स्त्रों तारकेश्वर रुद्राय ममः दारिद्रय
नाशय नाशय फट।।
मंदिर के बारे में एक कहानी है
कि शिव का एक भक्त विष्णु दास उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर से यहां पहुंचा था।
हालांकि हुगली के स्थानीय लोगों ने किसी मुद्दे पर इस सीधे सच्चे इंसान के पूरे परिवार पर शक
किया। अपने को निर्दोष साबित करने के लिए उसने अपने हाथ को गर्म लोहे के छड़ से
जला लिया।
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तारकेश्वर महादेव के पास दूधपुुकुर में स्नान करते श्रद्धालु |
कुछ दिनों बाद उसके भाई ने पास के जंगल में एक ऐसा स्थल तलाशा जहां गाय
अपने आप जाकर दूध देने लगती थी। भाई को यह पता चला कि जहां गाय दूध देती है वहां
एक शिवलिंग स्थित है। यह एक स्वंभू शिवलिंग है। इसके बाद विष्णुदास को स्वप्न में
आया कि यह स्थल तारकेश्वर (शिव) का स्थान है। विष्णुदास ने यहां शिव की पूजा की और
उसे लोगों के कोप से मुक्ति मिली। बाद में गांव के लोगों ने वहां पर एक विशाल
मंदिर का निर्माण कराया। वर्तमान मंदिर राजा भारमल्ल का 1729 का बनवाया हुआ है।
महाशिवरात्रि
और चैत्र संक्रांति के समय तारकेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती
है। इसके अलावा सावन के महीने में यहां पूरे माह कांवर लेकर आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
कैसे पहुंचे - तारकेश्वर कोलकाता शहर के पास हावडा रेलवे स्टेशन से 58 किलोमीटर की दूरी पर है। रोज सुबह 4.22 से लेकर रात्रि 11 बजे तक इस मार्ग पर लोकल ट्रेनें चलती रहती हैं। आमतौर पर हर घंटे तारकेश्वर मार्ग पर आपको लोकल ट्रेन मिल जाएगी।
मंदिर में पंडा के बिना दर्शन मुश्किल
मैं जिस दिन तारकेश्वर महादेव के दर्शन करने पहुंचा हूं संयोग से बांग्ला कैलेंडर के हिसाब से सावन का पहला दिन है। सेवड़ाफुल्ली से श्रद्धालुओं की यात्रा शुरू हो गई है। रास्ते में केसरिया वस्त्र में बाबा के भक्त दिखाई दे रहे हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर भी मेले का माहौल हैं। कांवर और पूजा के सामन के दुकाने सजी हुई हैं। तारकेश्वर रेलवे स्टेशन को भोले बाबा के आस्था के रंग में रेलवे की ओर से सजाया गया है। रेलवे स्टेशन के दीवारों पर कांवर यात्रा के म्युरल लगे हैं। रेलवे स्टेशन से ही मंदिर में दर्शन कराने के लिए पंडो की भीड़ है। न चाहते हुए भी मार्ग में एक पंडा जी मेरे पीछे पीछे हो लेते हैं। उनका नाम बापी बनर्जी है। वे मुझे एक दुकान पर ले जाते हैं। वहां मैं चप्पल, बैग, कैमरा आदि जमा करने के बाद प्रसाद लेता हूं। मिट्टी की छोटी सी मटकी में 51 रुपये का प्रसाद। सरोवर के जल से प्रतीकात्मक स्नान के बाद मंदिर में जाकर पुजारी जी से परिवार के कल्याण के लिए संकल्प कराता हूं।
मैं जिस दिन तारकेश्वर महादेव के दर्शन करने पहुंचा हूं संयोग से बांग्ला कैलेंडर के हिसाब से सावन का पहला दिन है। सेवड़ाफुल्ली से श्रद्धालुओं की यात्रा शुरू हो गई है। रास्ते में केसरिया वस्त्र में बाबा के भक्त दिखाई दे रहे हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर भी मेले का माहौल हैं। कांवर और पूजा के सामन के दुकाने सजी हुई हैं। तारकेश्वर रेलवे स्टेशन को भोले बाबा के आस्था के रंग में रेलवे की ओर से सजाया गया है। रेलवे स्टेशन के दीवारों पर कांवर यात्रा के म्युरल लगे हैं।
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मंदिर के रास्ते में सजी प्रसाद की दुकानें |
मंदिर के आसपास छोटा सा बाजार है। यहां पूजन सामग्री की दुकानें, प्रसाद की दुकानें, शाकाहारी भोजनालय और रहने के लिए आवासीय धर्मशालाएं भी हैं। चलने लगता हूं तो पंडा बापी बनर्जी से एक बार फिर मुलाकात हो जाती है। वे किसी दूसरे श्रद्धालु की तलाश में हैं। वे मुझे चलते हुए अपना विजटिंग कार्ड भी सौंपते हैं। फोटोग्राफी प्रिंटिंग से छपे उनके कार्ड पर भी तारकेश्वर महादेव का फोटो अंकित है।
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ये रहा पंडा जी का कार्ड... |
पक्षी उडा़ने की मनौती मानते हैं लोग -
तारकेश्वर मंदिर में अलग अलग तरह के संस्कार करने के लिए दरें मंदिर के बोर्ड पर अंकित की गई हैं। लाउड स्पीकर से श्रद्धालुओं के लिए लगातार घोषणा भी की जा रही है। मंदिर के बोर्ड पर मुझे दिखाई देता है कबूतर उड़ाने की रस्म के बारे मेंती.। पंडा जी बताते हैं कि कई लोग किसी तरह की मनौती पूरी हो जाने के बाद मंदिर में आकर पक्षी उड़ाने की भी मनौती मानते हैं। इसके अलावा भी कई तरह की रोचक मनौतियां मानी जाती हैं। इनमें से एक है ढोलक बजवाने की मनौती। यह भी किसी तरह की मन में मानी हुई बात पूरी होने पर संपन्न कराया जाता है। ये है देश में आस्था के अनूठे रंग। मंदिर परिसर में काफी बोर्ड हिंदी में लगे हुए दिखाई देते हैं, क्योंकि यहां हिंदी प्रदेशों से भी काफी श्रद्धालु आते हैं।
(TARKESHWAR MAHADEV TEMPLE, SHIVA, HOOGLY, WEST BENGAL, KOLKATA )
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