लैंसडाउन की सुरम्य वादियों में
स्थित है शिव का अदभुत कालेश्वर मंदिर। यह लैंसडाउन का सबसे पुराना मंदिर है। कभी
इस मंदिर के आसपास घने जंगल हुआ करते थे। मंदिर के बारे में बताया जाता है कि कोई 5000 साल पहले यहां कालुन ऋषि तपस्या करते थे। उन्ही के नाम पर इस मंदिर का
नाम कालेश्वर मंदिर पड़ा। 5 मई 1887 को यहां गढ़वाल रेजिमेंट की स्थापना होने से
पहले यह बिल्कुल वीरान जगह हुआ करता था। 4 नवंबर 1887 को जब रेजिमेंट की पहली
बटालियन यहां पहुंची तो यहां घने जंगल थे। पर यहां गुफा में एक शिवलिंग स्थापित थी
जिसे कालेश्वर के नाम से जाना जाता था। उन्हें आसपास के गांव के लोग ग्राम देवता
के तौर पर पूजा करते थे। ये आपरूपि प्रकट हुए शिव हैं यानी इनकी स्थापना नहीं की
गई है। गांव वालों का मानना था कि गांव की गायें इधर चरने आती थीं तो शिवलिंग के
पास गुजरने पर वे स्वतः दूध देने लगती थीं।

साल 1901 में पहले गढ़वाल रेजिमेंट ने यहां एक छोटा
सा मंदिर को धर्मशाला का निर्माण कराया। साल 1926 में लोगों के सहयोग से यहां
विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर में पूजा अर्चना साधु महात्मा करते थे।
मंदिर का इंतजाम गढ़वाल रेजिमेंट देखता था। 1995 में मंदिर का पुनर्निमाण गढ़वाल
रेजिमेंट ने करवाया। इसमें भी स्थनीय लोगों का सहयोग मिला।
बाबा कालेश्वर का मंदिर सुरम्य घाटी के बीच स्थित
है। मंदिर परिसर में हरे भरे पेड़ हैं। मंदिर में अखंड धूनी भी जलती रहती है।
परिसर में एक छोटी सी कैंटीन भी है, जहां से आप खाने पीने की वस्तुएं खरीद सकते
हैं।
कैसे पहुंचे -
लैंसडाउन के मुख्य बाजार से मंदिर तक पहुंचने के लिए सदर बाजार होकर रास्ता है।
मंदिर में पहुंचने के लिए तकरीबन 100 सीढियां उतरनी पड़ती है। लैंसडाउन कोटद्वार
शहर से 41 किलोमीटर की दूरी पर है। कोटद्वार से यहां टैक्सी से पहुंचा जा सकता है।
लैंसडाउन स्थित शिव के कालेश्वर मंदिर के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
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