भारतीय रेलवे के लोकोमोटिव (इंजन)
के इतिहास में फेयरी क्वीन का अपना अनूठा महत्व है. जब हम विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन
के बाहर निकलते हैं तो स्टेशन के लॉन में फेयरी क्वीन लोकोमोटिव खड़ी दिखाई देती
है। मानो अभी चल पड़ने को तैयार हो। वास्तव में ये मूल फेयरी क्वीन नहीं है। पर
रेलवे के इंजीनियरों ने इसका बिल्कुल वैसा ही रेप्लिका तैयार किया है। तो इस फेयरी
क्वीन को भी देर तक निहारने की जी चाहता है।
फेयरी क्वीन को विश्व का सबसे
पुराना लोकोमोटिव माना जाता है। इसका निर्माण 1855 में इंग्लैंड में हुआ था। इसे किटसन थामसन एंड हेविस्टन नामक कंपनी ने बनाया
था। यह एक ब्राडगेज पर चलने वाला लोकोमोटिव है। इसी भारत लाए जाने पर इसे इस्ट
इंडियन रेलवे कंपनी की सेवा में पश्चिम बंगाल में लगाया गया। तब इसे 22 नंबर
प्रदान किया गया था। फेयरी क्वीन की मदद से बंगाल में 1857 की क्रांति के दौरान
फौज को ढोने का काम किया गया। इसने लंबे समय तक हावड़ा से रानीगंज के बीच अपनी
सेवाएं दीं। 1909 में सेवा से बाहर होने के बाद फेयरी क्वीन लोको 1943 तक हावड़ा
में यूं ही पड़ा रहा। इसके बाद इसे यूपी के चंदौसी में रेलवे के प्रशिक्षण केंद्र
में लाकर रखा गया। साल 1972 में फेयरी क्वीन को हेरिटेज स्टेट प्रदान किया गया।
बाद में इसे दिल्ली के राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में रखा गया।
बाद में इसने नई दिल्ली से अलवर
के बीच हेरिटेज ट्रेन के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। यह एक कोयला से संचालित इंजन था।
इसमें दो सिलिंडर लगे थे। इसका पावर आउटपुट 130 हार्स पावर का था।यह अधिकतम 40
किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ता था। सुंदर से दिखने वाले इस लोकोमोटिव का
वजन 26 टन था। इसकी पानी टंकी की क्षमता 3000 लीटर थी। फेयरी क्वीन को 1909 में सेवा
से बाहर किया गया यानी यह इसके रिटायरमेंट का साल था। यानी कुल 54 साल इसने अपनी
सेवाएं दीं।
एक बार फिर फेयरी क्वीन को
रेलवे ने काफी परिश्रम से रिस्टोर किया। यह 1997 में 18 जुलाई को एक बार फिर
पटरियों पर दौड़ा। 88 साल बाद किसी
लोकोमोटिव को एक बार फिर पटरी पर दौड़ाया गया। साल 1998 में इसे गिनिज बुक ऑफ
वर्ल्ड रिकार्ड में विश्व के सबसे पुराने लोकोमोटिव के तौर पर शामिल किया गया। साल
2011 में फेयरी क्वीन के कुछ पार्ट पुर्जे चोरी चले गए।
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और ये रही असली वाली फेयरी क्वीन । |
बाद में इसे चेन्नई के
पास स्थित पेरांबुर रेल इंजन कारखाना भेजा गया जहां से दुबारा चलने योग्य बनाया
गया। एक बार फिर इसने 22 दिसंबर 2012 के पटरियों पर कुलांचे भरी। अभी भी रेलवे इसे
अक्तूबर से मार्च के बीच महीने में दो बार
दिल्ली से अलवर के बीच सैलानियों के लिए संचालित करता है। यह एक एसी कोच को खींचता
है जिसमें 60 लोगों के बैठने की क्षमता होती है।
विजयवाडा रेलवे स्टेशन के बाहर
को ऐतिहासिक फेयरी क्वीन का रेप्लिका स्थापित किया गया है, इसे साउथ सेंट्रल
रेलवे, विजयवाड़ा के मेकेनिकल ब्रांच के लोगों ने काफी परिश्रम से तैयार किया है।
ताकि आते जाते लोगों को रेलवे के इतिहास से अवगत कराया जा सके।
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( FAIRY QUEEN, RAIL, VIJAYWADA, ALWAR)