आज 31 दिसंबर की शाम है। सिक्किम से लौटने के बाद एक बार फिर असम की राह पर हूं। इस बार मैं कंचनजंगा एक्सप्रेस में हूं। कोलकाता से चलने वाली 13171 कंचनजंगा एक्सप्रेस हालांकि लंबी दूरी की ट्रेन है पर इसमें सिटिंग क्लास भी है। संयोग से मुझे सिटिंग क्लास में ही आरक्षण मिल पाया है। न्यू जलपाईगुड़ी गुवाहाटी कोई आठ घंटे का सफर है। यहां से ट्रेन शाम को सात बजे चली है। न्यू जलपाईगुड़ी से गुवाहाटी के मार्ग में पहले पश्चिम बंगाल का दुआर्स इलाका आता है। इस रास्ते में सुंदर चाय के बगान नजर आते हैं। फकीराग्राम से पहले श्रीरामपुर असम नामक स्टेशन पर ट्रेन असम में प्रवेश कर जाती है। यहां असम के बोडोलैंड वाला इलाका शुरू हो जाता है।
मेरे सामने की सीट पर अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट में बागवानी एवं
वानिकी कॉलेज (http://www.chfcau.org.in/) के
छात्र –छात्राओं की टोली है। उनका कालेज सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी, इंफाल के
तहत आता है। छात्रों से उनकी पढ़ाई के बारे में थोड़ी बातें करता हूं। किसी कार्यक्रम से लौटते हुए सभी मस्ती
भरे मूड में हैं। मेरे सामने की सीट पर लक्ष्मी है जो इंफाल (मणिपुर) की है।
मैं
उसे देखकर कहता हूं कि तुम मणिपुरी तो कहीं से नहीं लगती हो, तुम तो हमारे यूपी की लड़कियों
जैसी ही दिखती हो। बैठे बैठे ही मुझे नींद आ जाती है, तभी छात्रों की टोली मुझे जगाकर हैप्पी
न्यू ईयर कहती है। रात के 12 बज गए हैं और हम साल 2016 में प्रवेश कर चुके हैं। इस वक्त हम असम के न्यू बंगाईगांव रेलवे स्टेशन के आसपास से गुजर रहे हैं।
कंचनजंगा एक्सप्रेस ने सुबह सुबह गुवाहाटी जंक्शन पर पहुंचा दिया है। मैं दूसरी बार इस शहर में पहुंचा हूं। पीछे पलटन बाजार की तरफ बाहर निकलता हूं। बायीं ओर सी सड़क पर होटल इंदिरा में एक सिंगल रूम बुक कर लेता हूं। गर्म पानी से स्नान करने के बाद बाहर निकल पड़ा थोड़ी सी पेट पूजा के लिए।
दुआर्स में तोरसा नदी का पुल - न्यू जलपाईगुड़ी से न्यू कूचबिहार
जाने के रास्ते में फालाकाटा रेलवे स्टेशन बाद आता है तोरसा नदी पर बना तोरसा
ब्रिज। फालाकाटा रेलवे स्टेशन से आप चाहें तो भूटान जाने के लिए जयगांव की बस ले सकते हैं। तोरसा नदी पर ये पुल संख्या 227 है और तकरीबन आधा किलोमीटर (417 मीटर ) लंबा है।
बात तोरसा नदी की करें तो यह रिश्ते में तीस्ता की बहन लगती है। तोरसा
नदी तिब्बत से निकलती है और भूटान होते हुए बंगाल में प्रवेश करती है। तिब्बत में इसका नाम माचू नदी है तो भूटान में इसे अमो चू कहते हैं। भूटान के फुटंशोलिंग, बंगाल के जयगांव, कूचबिहार जैसे शहर तोरसा नदी के किनारे पड़ते हैं। आगे तोरसा नदी ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है।
सिंगल रेलवे लाइन - गुवाहाटी जाने वाले रेल मार्ग पर ये महत्वपूर्ण रेल पुल है। ये
पुल सिंगल लाइन का है। इस क्षेत्र में अभी तक रेलमार्ग का दोहरीकरण नहीं हुआ है। न्यू जलपाईगुड़ी
के बाद रानीनगर से लेकर न्यू कूच बिहार तक की रेलवे लाइन अभी तक सिंगल ही है। हालांकि न्यू
जलपाईगुड़ी सिलिगुड़ी होकर से न्यू अलीपुर दुआर जाने के लिए सेवक होकर दूसरे मार्ग का विकल्प भी
उपलब्ध है। महानंदा एक्सप्रेस जैसी कुछ रेलगाड़ियां इस पुराने रेल मार्ग से जाती हैं।
जब असम रेल संपर्क से टूट गया - 1947 में आजादी और देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान ( अब बांग्लादेश) बनने के बाद पूर्वोत्तर के सभी राज्य रेल लिंक से कट गए क्योंकि तब न्यू जलपाईगुड़ी होकर गुवाहाटी जाने के लिए रेलवे लाइन नहीं थी। यह देश के लिए बड़े संकट की घड़ी थी क्योंकि पूर्वोत्तर के राज्यों में रसद पहुंचाना मुश्किल काम हो गया। तब भारत सरकार ने आनन फानन में बिहार के किशनगंज ( अवध तिरहुत रेलवे का स्टेशन) और असम के आरनीगांव के बीच रेलवे मार्ग बनाने की योजना बनाई। इस योजना पर बहुत तेजी से काम हुआ। आजकल योजना का डीपीआर तैयार करने में ही कई साल लग जाते हैं। पर तब महज दो सालों में कुल 142 मील ( 210 किलोमीटर) की रेलवे लाइन की विपरीत हालात में निर्माण कर लिया गया। यह आजाद भारत में सबसे तेजी से पूरा होने वाला प्रोजेक्ट था।
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न्यू बंगाई गांव जंक्शन में प्रवेश करती पूर्वोत्तर संपर्क क्रांति एक्सप्रेस। |
नौ दिसंबर 1949 को इस मार्ग पर रेल परिवहन चालू हो गया। इस मार्ग पर किशनगंज से सिलिगुड़ी के बीच 66 मील की दो फीट चौड़ाई वाली नैरो गेज लाइन पहले से मौजूद थी जिसे मीटर गेज में बदला गया। सिलिगुडी से बागरकोट के 22 मील की लाइन पर बीच में सेवक में तीस्ता नदी पर पुल बनाना भी चुनौतीपूर्ण कार्य था।
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सेवक के पास तीस्ता नदी पर पुल। |
वहीं मदारीहाट और हासीमारा के बीच 9 मील के मार्ग पर तोरसा नदी पर दूसरे रेल पुल का निर्माण किया गया। चौथा खंड था अलीपुर दुआर से फकीराग्राम का, इसका निर्माण बिना मुश्किल के हुआ। तीस्ता और तोरसा नदी पर पुल बनाने के लिए पहली बार प्री स्ट्रेस्ड कंक्रीट गार्डर का इस्तेमाल किया गया।
तब कुल असम रेल लिंक प्रोजोक्ट पर 9.3 करोड़ का खर्च आया था, यानी 6.5 लाख प्रति मील का खर्च आया। इस मार्ग में किशनगंज (बिहार), दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार ( बंगाल) और गोलापाड़ा (असम) के जिले आते हैं। ( The Economic weekly – 18 Apr 1953 )
कई दशक बाद इस लाइन को ब्राडगेज में बदला गया। वहीं सत्तर के दशक में न्यू जलपाईगुड़ी, न्यू कूचबिहार, न्यू अलीपुर दुआर से न्यू बंगाई गांव के बीच दूसरी वैकल्पिक ब्राडगेज लाइन बिछाई गई। यह लाइन 1966 में संचालन में आई। साल 1964 में न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन अस्तित्व में आया। जो अब इस मार्ग का अति व्यस्त और विशाल स्टेशन बन चुका है। ( The Economic weekly – 18 Apr 1953 )
एनजेपी से गुवाहाटी जाने के दो रास्ते - न्यू बंगाई गांव से गुवाहाटी के
बीच सफर के लिए दो रास्ते हैं एक वाया रंगिया होकर और दूसरा गोलापाड़ा होकर। वाया रंगिया
मार्ग पर बारपेटा रोड, नलबड़ी, रंगिया, चांगसारी और कामाख्या जैसे स्टेशन आते हैं।
इस मार्ग पर कामाख्या से पहले ब्रह्मपुत्र नदी पर सरायघाट पुल आता है। जबकि दूसरे मार्ग पर न्यू बंगाई गांव के बाद
जोगीगुफा, गोआलपाड़ा टाउन, दूधनोई, धूपधारा, कामाख्या जंक्शन जैसे स्टेशन आते हैं। दोनों रेल मार्ग कामाख्या जंक्शन में जाकर मिलते हैं। जोगीगुफा और गोलपाड़ा के बीच ब्रह्मपुत्र
नदी पर विशाल पुल आता है। जबकि दूधनोई नामक छोटे से स्टेशन से मेघालय के मेंदीपाठर
के लिए रेलवे लाइन निकली है।
देखिए एक पुल ऐसा भी....
ये है जीव दया का अदभुत नमूना –
रेलवे जंगल के जानवरों का कितना ख्याल रखता है ये इस पुल को देखकर पता चलता है। इस
कैनोपी ब्रिज का निर्माण इसलिए किया गया है कि ट्रेन आती जाती रहे तो भी लंगूर आदि
हल्के फुल्के जानवार पटरी के इस पार से उस पार जा सके।
भारतीय रेलवे पर ये पुल बना है असम के जोरहट जिले में होलोंगपार अभ्यारण्य के बीच।
( Holongpar Reserve Forest) तो देखिए इस हर भरे पुल को और जानवरों पर दया करने का विचार मन मे ं हमेशा बनाए रखिए।
भारतीय रेलवे पर ये पुल बना है असम के जोरहट जिले में होलोंगपार अभ्यारण्य के बीच।
( Holongpar Reserve Forest) तो देखिए इस हर भरे पुल को और जानवरों पर दया करने का विचार मन मे ं हमेशा बनाए रखिए।
( ASSAM RAIL LINK, TISTA, TORSA RIVER, NEW JALPAIGURI )
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