महाबलीपुरम
शहर में आप जहां भी घूमें हर गली और नुक्कड़ पर मूर्तियों की दुकानें नजर आती है।
नन्ही मूर्तियों से लेकर विशालकाय मूर्तियां तक। ये मूर्तियां यहीं के मूर्तिकार
बनाते हैं। कई दुकानों पर तो मूर्तिकार आपको काम करते हुए दिखाई दे जाते हैं। अहले
सुबह सूरज उगने के साथ काम शुरू होता है, देर
रात तक छेनी हथौड़ी पर काम चलता रहता है।
महाबलीपुरम
के मूर्तिकारों द्वारा बनाई गई गौतम बुद्ध की एक दर्जन से ज्यादा भाव भंगिमाओं में
मूर्तियां देखने को मिलती हैं। बुद्ध के सिर्फ चेहरे वाली कई किस्म की मूर्तियां
दिखाई देती हैं। तो बैठे हुए बुद्ध की भी मूर्तियां यहां के कलाकार सृजित करते
हैं। कई जगह पर कलाकारों ने लेटे हुए बुद्ध की विशाल प्रतिमा बनाई है। बुद्ध
मूर्तियों की देश भर में मांग तो रहती है। साथ ही उनकी मूर्तियां की मांग विदेश
में भी है। यहां कलाकार 5 हजार से लेकर 30 लाख रुपये तक की बुद्ध मूर्तियां बनाते
हैं।
सिर्फ बुद्ध
ही क्यों महाबलीपुरम के कलाकारों ने माखनचोर कृष्णा और गणेश की अनगिनत भाव
भंगिमाओं में मूर्तियां बनाई हैं। लंबोदर गणेश उनका प्रिय विषय है। इसके बाद शिव
विष्णु और लक्ष्मी की भी प्रतिमाएं आपको तैयार अवस्था में यहां मिल जाएंगी।
इससे आगे स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों में गांधी सबसे लोकप्रिय चेहरा है। गांधी के बाद नेहरू, शास्त्री और बाबा साहेब अंबेडकर की भी मूर्तियां यहां दिखाई देती हैं। आप वैसे चाहें तो महाबलीपुरम के कलाकारों से किसी भी मूर्ति आर्डर देकर तैयार करा सकते हैं।
इससे आगे स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों में गांधी सबसे लोकप्रिय चेहरा है। गांधी के बाद नेहरू, शास्त्री और बाबा साहेब अंबेडकर की भी मूर्तियां यहां दिखाई देती हैं। आप वैसे चाहें तो महाबलीपुरम के कलाकारों से किसी भी मूर्ति आर्डर देकर तैयार करा सकते हैं।
हमने कुछ
छोटी मूर्तियों के दाम पूछे पांच हजार से लेकर 30 हजार तक की मूर्तियां थीं। जब
उनसे ले जाने के तरीके के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आप अपना पता दे
दीजिए मूर्तियां ट्रांसपोर्ट से सुरक्षित आपके घर तक पहुंच जाएंगी। हां
ट्रांसपोर्ट का खर्च आपको स्वंय वहन करना पड़ेगा। कलाकारों के पास मूर्तियों को
दुनिया भर में कहीं भी भेजवाने का इंतजाम है।
महाबलीपुरम के ये कलाकार किसी कला या शिल्प महाविद्यालय से पढ़ाई करके नहीं आए हैं। बल्कि ये इनका खानदारी पेशा है। संभवतः पल्लव काल से ही कलाकार यहां मूर्तियां बनाते आ रहे हैं। 1957 में यहां गवर्नमेंट कालेज ऑफ आर्किटेक्टर एंड स्कल्पचर की स्थापना की गई। यहां चार साल का स्नातक पाठ्यक्रम (बीएफए) चलाया जाता है। 2001 में यहां परंपरागत कला में बीटेक पाठ्यक्रम भी आरंभ किया गया। इस कालेज से नए जमाने के कलाकार निकल रहे हैं। पर कला तो महाबलीपुरम के लोगों के रग रग में सदियों से बसा हुआ है।
-vidyutp@gmail.com
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