![]() |
कुतुबमीनार के आसपास मंडराते परिंदे। |
एक दिन बेटे अनादि ने कहा पापा कुतुब मीनार देखने चलते हैं। वह जो तीन साल के थे तब सरदियों की एक मीठी धूप में कुतुबमीनार गए थे। पर उसकी उन्हें याद नहीं। लिहाजा एक बार फिर कुतुब मीनार की सैर पर निकले अगस्त 2015 में श्रीकृष्णजन्माष्टमी के दिन। पहले इस्कान टेंपल फिर लोटस टेंपल फिर कुतुब कांप्लेक्स। तो आईए चलते हैं कुतुबमीनार की सैर पर....
दिल्ली का कुतुब मीनार दिल्ली की पहचान है। पर इसके परिसर में सिर्फ कुतुब मीनार ही नहीं बल्कि कई ऐतिहासिक स्मारक हैं। पर वास्तव में यह कभी मंदिरों का समूह था।यहां मौजूद महरौली का लौह स्तंभ तो लोगों में काफी लोकप्रिय है। इसे कई फिल्मों में भी देखा जा चुका है। आपने इसे अमिताभ बच्चन तब्बू की फिल्म चीनी कम में देखा होगा।
दिल्ली का कुतुब मीनार दिल्ली की पहचान है। पर इसके परिसर में सिर्फ कुतुब मीनार ही नहीं बल्कि कई ऐतिहासिक स्मारक हैं। पर वास्तव में यह कभी मंदिरों का समूह था।यहां मौजूद महरौली का लौह स्तंभ तो लोगों में काफी लोकप्रिय है। इसे कई फिल्मों में भी देखा जा चुका है। आपने इसे अमिताभ बच्चन तब्बू की फिल्म चीनी कम में देखा होगा।
कुतुब मीनार ईंट से बनी दुनिया
की सबसे ऊंची मीनार है। इसे
1193 में कुतुबदीन एबक ने बनवाया था। कहा जाता है कि इस
परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार
बनवाई । हालांकि एबक कुतुब मीनार को पूरा नहीं करवा सका
था। इसकी तीन मंजिलें उसके दामाद इल्तुतमीश ने पूरी करवाईं। मीनार के बीच बीच में
कुराने की आयतें लिखी गई हैं। निर्माण में लाल बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया
है। इसकी ऊंचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट)
और व्यास 14.3 मीटर है, जो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट) हो जाता है।

पूरी नहीं हो सकी अलई मीनार - पर
कुतुबमीनार से भी बड़ा मीनार इसके बगल में बनाने की कोशिश हुई थी जो कभी पूरी नहीं
हो सकी। अलई मीनार अधूरी रह गई। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने शुरू कराया था। इसे
बडा भव्य रूप देने की योजना थी। इसे कुतुब मीनार से दुगुनी ऊंची बनाने का निश्चय किया गया
था, परंतु इसका निर्माण 24.5 मीटर पर
प्रथम मंजिल पर ही आकर रूक गया। इसका निर्माण 1311 में
आरंभ हुआ था। पर 1316 में अलाउद्दीन
अल्लाह को प्यारे हो गए। अगर अलाउद्दीन खिलजी की मौत न हुई होती तो कुतुबमीनार आज
अलई मीनार कांप्लेक्स के नाम से जाना जाता। और कुतुबमीनार की ऊंचाई फीकी पड़ गई
होती। एक समय तक अलाउद्दीन खिलजी की ये कोशिश अनजान थी। 1912 में खुदाई के दौरान
अलई मीनार का खुलासा हो पाया।
कुव्वत-ए-इस्लाम मस्जिद - कुतुब परिसर के खंड़हरों में भी
कुव्वत-ए-इस्लाम (इस्लाम का नूर) मस्जिद विश्व का एक भव्य मस्जिद मानी जाती
है। कुतुबुद्दीन-ऐबक ने 1193 में इसका निर्माण शुरू कराया और
1197 में मस्जिद पूरी हो गई। आजकल यह मस्जिद खंडहर के रूप
में हैं। मस्जिद
के निर्माण हेतु मंदिरों में लूटपाट की गई थी। वास्तव में यह मस्जिद पारंपरिक रूप
से हिन्दू स्थापत्य–अवशेषों का ही रूप है।
अजूबा लौह स्तंभ जिसमें जंग
नहीं लगता – कुतुब मीनार के पास मस्जिद के
प्रांगण में एक 7 मीटर ऊंचा लौह-स्तंभ है। यह कहा
जाता है कि यदि आप इसके पीछे पीठ लगाकर इसे घेराबंद करते हो जो आपकी इच्छा होगी
पूरी हो जाएगी। राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (375 – 413 ) से निर्माण कराया गया।
ऐसा माना जाता है कि तोमर साम्राज्य के राजा विग्रह ने यह स्तंभ कुतुब परिसर में
लगवाया।
लौह स्तंभ पर लिखी
हुई एक पंक्ति में सन् 1052 के तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय का
जिक्र है। सैकडों वर्षों से अपने स्थान पर बुलंदी से
खडा यह स्तम्भ अपनी जंग प्रतिरोधक क्षमता की वजह से समस्त विश्व के धातु विज्ञानियों
के बीच अचरज का विषय है। इतिहासकारों का मानना है कि 'लौह
स्तंभ' को बनाने के लिए 'वूज स्टील'
का इस्तेमाल किया गया होगा, जो शुद्ध लोहा
नहीं है। सन् 1997 में पर्यटकों के द्वारा इस स्तंभ को
नुकसान पहुंचाने के पश्चात इसके चारों ओर लोहे का गेट लगा दिया गया है।
कैसे पहुंचे -
कुतुबमीनार
कांप्लेक्स सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। यह सातों दिन खुला रहता है। प्रवेश
टिकट 10 रुपये है। यहां क्लाक रूम, पार्किंग और शौचालय आदि की सुविधाएं उपलब्ध है।
वैसे नजदीक का मेट्रो स्टेशन कुतुबमीनार है। यहां घूमने के लिए दो घंटे का समय
जरूर निकालें।
vidyutp@gmail.com
( WORLD HERITAGE SITE LISTED IN 1993 )
( WORLD HERITAGE SITE LISTED IN 1993 )
No comments:
Post a Comment