
यहां का किला भरतपुर के जाट शासकों की हिम्मत और शौर्य का प्रतीक है. मिट्टी के इस किले की यह एक विशेषता रही है कि उसे आजतक कोई भी हरा नहीं सका है। इसलिए यह किला आज भी अजेय दुर्ग लोहागढ़ के नाम से विख्यात है। भरतपुर का पुराना नाम भी लोहागढ़ रहा है। महाराजा सूरजमल ने एक अभेध्य किले की परिकल्पना की थी, जिसके अन्तर्गत शर्त यह थी कि पैसा भी कम लगे और मजबूती मे बेमिशाल हो।

गुलाबी पत्थरों से बना किला - भरतपुर का किला बांसी और पहाड़पुर से लाए गए गुलाबी पत्थरों से बना है। इसका काव्यमय वर्णन
सूरजमल के राजकवि सोमनाथ द्वारा रचित सुजान-विलास में मिलता है। बांसी पहाड़पुर से
संगमरमर और बरेठा से लाल पत्थर, भरतपुर, कुम्हेर और वैर तक पहुचाया जाना तब बड़ा दुष्कर कार्य था।
के नटवर सिंह अपनी पुस्तक – महाराजा सूरजमल में लिखते हैं- डीग से बीस मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित सोघर के जंगल काट दिए गए और दलदतें पाट ही गई और वहाँ विशाल एवं भव्य भरतपुर का किला बना । एक ओर से भरतपुर दलदली जमीन से घिरा था तो दो तरफ से वाणगंगा और रुपारेल नदियां इसकी रक्षा करती थीं। इस किले को बनाने का काम 1732 में आरंभ हुआ। जो कई राजाओं के कार्यकाल तक चलता रहा।
मुख्य किले के चारों तरफ विशाल खाई - मुख्य किले के चारों तरफ विशाल खाई बनवाई गई। इसमें पानी लाने का इंतजाम किया गया। ये खाई 40 फीट गहरी और 175 फीट चौड़ी है।
प्रवेश के लिए दो पुल - किले में प्रवेश के लिए दो पुल बनाए गए थे। पूर्वी द्वार को अष्टधातु द्वार कहते थे। मुख्य किले की दीवारें 100 फीट ऊंची और 30 फीच चौड़ी थी। किले में सुरक्षा के लिए कुल 8 बुर्ज बनाए गए थे। सबसे ऊंचे बुर्ज से फतेहपुर सीकरी तक दिखाई देता था।
के नटवर सिंह अपनी पुस्तक – महाराजा सूरजमल में लिखते हैं- डीग से बीस मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित सोघर के जंगल काट दिए गए और दलदतें पाट ही गई और वहाँ विशाल एवं भव्य भरतपुर का किला बना । एक ओर से भरतपुर दलदली जमीन से घिरा था तो दो तरफ से वाणगंगा और रुपारेल नदियां इसकी रक्षा करती थीं। इस किले को बनाने का काम 1732 में आरंभ हुआ। जो कई राजाओं के कार्यकाल तक चलता रहा।
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अनाह गेट भरतपुर। |
मुख्य किले के चारों तरफ विशाल खाई - मुख्य किले के चारों तरफ विशाल खाई बनवाई गई। इसमें पानी लाने का इंतजाम किया गया। ये खाई 40 फीट गहरी और 175 फीट चौड़ी है।
प्रवेश के लिए दो पुल - किले में प्रवेश के लिए दो पुल बनाए गए थे। पूर्वी द्वार को अष्टधातु द्वार कहते थे। मुख्य किले की दीवारें 100 फीट ऊंची और 30 फीच चौड़ी थी। किले में सुरक्षा के लिए कुल 8 बुर्ज बनाए गए थे। सबसे ऊंचे बुर्ज से फतेहपुर सीकरी तक दिखाई देता था।
भरतपुर शहर के दस दरवाजे
भरतपुर शहर के बाहरी इलाके में
भी सुरक्षा के लिए एक बाहरी खाई बनवाई गई जो 250 फीट चौड़ी और 20 फीट गहरी है। खाई
बनाने से जो मलबा निकला उससे मोटी मिट्टी की दीवार बनाई गई। किले में कुल 10 बड़े
दरवाजे थे। मथुरा पोल, वीर नारायण पोल, अटलबंद पोल, नीम पोल, अनाह पोल, कुम्हेर
पोल, चांद पोल, गोवर्धन पोल, जघीना पोल, सूरज पोल जैसे नाम थे दरवाजों के। हालांकि अब
मिट्टी की दीवारें नजर नहीं आतीं पर शहर के दरवाजे आज भी दिखाई देते हैं।
vidyutp@gmail.com
( BHARATPUR FORT, LOHAGARH, 10 GATES , ANAH GATE )
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