पुण्य सलिला मां गंगा राजस्थान में नहीं बहतीं, पर उनका एक मंदिर राजस्थान में है। गंगा महारानी का मंदिर राजस्थान के भरतपुर शहर का बहुत ही सुंदर मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके बनने में 90 साल
का समय लगा था। ये मंदिर भरतपुर किले के मुख्य द्वार के
सामने स्थित है। मंदिर की वास्तुकला देखते ही बनती है। मंदिर के अंदर मगरमच्छ पर
सवार मां गंगा की प्रतिमा है।
इस मंदिर का निर्माण 1845 में
भरतपुर के जाट राजा महाराजा बलवंत सिंह ने प्रारंभ करवाया। पांच राजाओं के शासन
काल तक इस मंदिर का निर्माण चलता रहा। महाराजा ब्रजेंद्र सिंह के शासन काल में
इसका निर्माण पूरा हुआ। मंदिर में पुण्य सलिला गंगा नदी की विशाल प्रतिमा है। यहां
गंगा मगरमच्छ पर सवार दिखाई गई हैं।
मंदिर में गंगा मां की प्रतिमा संगमरमर की बनी है। उनके बगल में चार फीट ऊंची राजा भगीरथ की प्रतिमा है जो मां गंगा को प्रणाम कर रहे हैं। गंगा मां की मूर्ति का निर्माण एक मुस्लिम मूर्तिकार ने किया था। गंगा मां मंदिर का भवन दो मंजिला है। दीवारों पर शानदार नक्काशी की गई है। बादामी रंग के इस मंदिर के निर्माण के लिए भरतपुर जिले के बंशी पहाड़पुर से पत्थर लाए गए थे। वास्तु के लिहाज से मुगल, राजपूत और दक्षिण भारतीय शैली का मेल दिखाई देता है। मंदिर करीब डेढ़ एकड़ क्षेत्र में फैला है।
मंदिर में गंगा मां की प्रतिमा संगमरमर की बनी है। उनके बगल में चार फीट ऊंची राजा भगीरथ की प्रतिमा है जो मां गंगा को प्रणाम कर रहे हैं। गंगा मां की मूर्ति का निर्माण एक मुस्लिम मूर्तिकार ने किया था। गंगा मां मंदिर का भवन दो मंजिला है। दीवारों पर शानदार नक्काशी की गई है। बादामी रंग के इस मंदिर के निर्माण के लिए भरतपुर जिले के बंशी पहाड़पुर से पत्थर लाए गए थे। वास्तु के लिहाज से मुगल, राजपूत और दक्षिण भारतीय शैली का मेल दिखाई देता है। मंदिर करीब डेढ़ एकड़ क्षेत्र में फैला है।
प्रसाद में मिलता है गंगा जल - यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को प्रसाद में गंगा जल वितरित किया जाता है। मंदिर के दो प्रवेश द्वार है। एक प्रवेश द्वार पर भगवान कृष्ण खड़े हैं जबकि दूसरे प्रवेश द्वार में शिव पार्वती और लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा है। मंदिर में दूर दूर से श्रद्धालु मां गंगा का आशीर्वाद लेने आते हैं।
निर्माण की कहानी - कहा जाता है कि भरतपुर के महाराजा बलवंत सिंह को लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई। जब उन्हें संतान रत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने अपने पुरोहित की सलाह पर गंगा महारानी का मंदिर बनवाने का निश्चय किया। इस मंदिर के निर्माण में कोई चंदा नहीं लिया गया, पर राज घराने से जुड़े कर्मचारियों के वेतन से मामूली राशि की कटौती की गई। मंदिर की खास बात ये है कि राजमहल के एक झरोखे से हमेशा सीधे गंगा महारानी मंदिर के दर्शन होते हैं।
खुलने का समय – मंदिर सुबह 5
बजे खुल जाता है। दोपहर 12 बजे बंद हो
जाता है। फिर शाम 5 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक खुला रहता है। गंगा सप्तमी और गंगा
दशहरा मंदिर के प्रसिद्ध त्योहार हैं, जब यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
कैसे पहुंचे – भरतपुर के मुख्य बस
स्टैंड या फिर रेलवे स्टेशन से साइकिल रिक्शा या फिर आटो रिक्शा से पहुंचा जा सकता
है। बस स्टैंड से मंदिर की दूरी 4 किलोमीटर के करीब है। रेलवे स्टेशन से भी इसकी
दूरी 5 किलोमीटर के आसपास है। मंदिर के आसपास घना बाजार है।
मां गंगा के दर्शन के बाद भरतपुर शहर के बाजारो को घूमता हुआ मैं लोगों से बस स्टैंड का रास्ता पूछकर आगे बढ़ता जा रहा हूं। पैदल पैदल भरतपुर शहर की गलियां नाप रहा हूं। रास्ते में कई सरसों तेल की मिलें दिखाई दे रही हैं। भरतपुर सरसों तेल का बड़ा उत्पादक इलाका है। आजकल सावन का महीना चल रहा है तो बाजार मौसमी मिठाई घेवर से पटा पड़ा है। बस स्टैंड पहुंच कर दोपहर में हल्का सा भोजन लेने के बाद दिल्ली जाने वाली बस में बैठ गया।
---vidyutp@gmail.com
( GANGA MAHARANI TEMPLE, BHARATPUR, RAJSTHAN ) मां गंगा के दर्शन के बाद भरतपुर शहर के बाजारो को घूमता हुआ मैं लोगों से बस स्टैंड का रास्ता पूछकर आगे बढ़ता जा रहा हूं। पैदल पैदल भरतपुर शहर की गलियां नाप रहा हूं। रास्ते में कई सरसों तेल की मिलें दिखाई दे रही हैं। भरतपुर सरसों तेल का बड़ा उत्पादक इलाका है। आजकल सावन का महीना चल रहा है तो बाजार मौसमी मिठाई घेवर से पटा पड़ा है। बस स्टैंड पहुंच कर दोपहर में हल्का सा भोजन लेने के बाद दिल्ली जाने वाली बस में बैठ गया।
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