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सारस क्रेन ( फोटो सौ - यूनेस्को ) |

साइबेरियन क्रेन को प्रेम और
समर्पण का प्रतीक माना जाता है। क्रेन के नर और मादा युगल एक दूसरे के प्रति पूरी
तरह समर्पित होते हैं। एक बार जोड़ा बनाने के बाद ये जीवन भर साथ निभाते हैं। अगर
किसी दुर्घटना में किसी एक साथी की मृत्यु हो जाए तो दूसरा अकेले ही रहता है। या
कहा जाता है कि दूसरा जोड़ा भी अपनी जान दे देता है। आम तौर पर बारिश के दिनों में
इनका प्रजनन काल होता है। इनके प्रणय का आरंभ सुंदर नृत्य से होता है। नृत्य के
आरंभ से पहले ये पक्षी अपनी चोंच को आसमान की ओर कर के विशेष प्रकार की तेज आवाज
निकालते हुए सुने जाते हैं।
पर्यावरणविद मानते हैं कि सिमटते जंगल, कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग और आसपास में मानव की बढ़ती आबादी के कारण साइबेरियन क्रेन ने यहां आना छोड़ दिया। गाइड सरदार राजू सिंह बड़ी ही गूढ बात कहते हैं। पूछते हैं आपको अगर एक रेस्टोरेंट का खाना अच्छा नहीं लगता तो आप किसी दूसरे का रूख कर लेते हैं ना। ठीक ऐसा ही साइबेरियन क्रेन के साथ हुआ। जब उसे केवलादेव की आबोहवा रास नहीं आई तो उसने आना छोड़ दिया। आजकल केवलादेव उद्यान के ठीक बाहर से आगरा भरतपुर हाईवे गुजरता है। उस पर दिन रात वाहनों की चिल्लपों रहती है। हाईवे के दूसरी तरफ शहर की कालोनियां बन गई हैं। हालांकि केवलादेव के 500 मीटर के दायरे में आबादी का निषेध होना चाहिए पर इस नियम का पालन कड़ाई से नहीं हुआ।
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साइबेरियन क्रेन ( फोटो - नेशनल ज्योग्राफिक) |
पर्यावरणविद मानते हैं कि सिमटते जंगल, कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग और आसपास में मानव की बढ़ती आबादी के कारण साइबेरियन क्रेन ने यहां आना छोड़ दिया। गाइड सरदार राजू सिंह बड़ी ही गूढ बात कहते हैं। पूछते हैं आपको अगर एक रेस्टोरेंट का खाना अच्छा नहीं लगता तो आप किसी दूसरे का रूख कर लेते हैं ना। ठीक ऐसा ही साइबेरियन क्रेन के साथ हुआ। जब उसे केवलादेव की आबोहवा रास नहीं आई तो उसने आना छोड़ दिया। आजकल केवलादेव उद्यान के ठीक बाहर से आगरा भरतपुर हाईवे गुजरता है। उस पर दिन रात वाहनों की चिल्लपों रहती है। हाईवे के दूसरी तरफ शहर की कालोनियां बन गई हैं। हालांकि केवलादेव के 500 मीटर के दायरे में आबादी का निषेध होना चाहिए पर इस नियम का पालन कड़ाई से नहीं हुआ।

पर साल 2011
में मध्य प्रदेश के देवास में एक बार फिर भारत में प्रवासी
साइबेरियन क्रेन के जोड़े नजर आए। कई हजार किलोमीटर का सफर तय करके अनुकूल हालात की
तलाश में साइबेरियन क्रेन देवास जिले के टोंक खुर्द ब्लॉक स्थित निपानिया में डेरा
डालने पहुंचे।
साल 2012 में राजस्थान वन विभाग,
वर्ल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया व बोम्बे नेच्यूरल हिस्ट्री
सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के सौजन्य से आयोजित
वर्कशॉप में साइबेरियन क्रेन संबंधित एक रिपोर्ट तैयार करके एक बार फिर से घना में
साइबेरियन क्रेन लाने की कवायद शुरू की गई। भरतपुर के सालिम अली व्याख्यान केंद्र
में विशेषज्ञों ने साइबेरियन सारसों को
घना से जोडने की योजना पर विचार किया। इस बीच तय किया गया कि घना में साइबेरियन
क्रेन रिसर्च एवं ब्रीडिंग सेंटर की स्थापना बहुत जरूरी है।
- vidyutp@gmail.com
- vidyutp@gmail.com
( SIBERIAN CRANE, BIRD, KEOLADEV, BHARATPUR, WETLAND )
( केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान - 5)
( केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान - 5)
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