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ओम प्रकाश मुंजाल ( 1928 -2015) |
( 26 .08.1928--- 13 .08.2015 )
साल 2000 की कोई तारीख थी। मैं अमर उजाला जालंधर में शिक्षा बीट पर संवाददाता हुआ करता था। जालंधर नकोदर रोड पर एक रिजार्ट में रविवार की सुनहरी दोपहर में कई स्कूलों का एक संयुक्त आयोजन था जिसका स्पांसर कंपनी हीरो साइकिल थी। सैकड़ों बच्चे हीरो की नई नई साइकिलों पर रिजार्ट के अंदर फुदक रहे थे। अंतर विद्यालीय प्रतियोगिता के लिए मंच तैयार हो रहा था।
मैं पत्रकार होने के नाते सबसे अगली पंक्ति में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग सज्जन मेरे पास आए। अपने दो तीन मेहमानो को बिठाने के लिए उन्होंने मुझे उठकर पीछे वाली सीट पर जाने को कहा। मैं पत्रकार होने की ठसक में था। मैंने कहा, मैं क्यों ये सीट छोड़ूं। आपकी तारीफ...उन्होंने कहा, मैं एक जेंटिलमैन हूं। मैने जवाब दिया- तो मैं भी जेंटिलमैन हूं। उसके बाद वे मुझसे आगे उलझे बिना चले गए। बाद में मंच पर जब सभी आयोजक और मुख्य अतिथि अवतरित हुए तो मुझे पता चला कि जिन सज्जन से मैं उलझा था वे हीरो साइकिल्स के चेयरमैन ओम प्रकाश मुंजाल ( OM PRAKASH MUNJAL) थे। आज साइकिलमैन ओपी मुंजाल इस दुनिया से जा चुके हैं तो मुझे जालंधर की वो घटना बार बार याद आती है।
साल 2000 की कोई तारीख थी। मैं अमर उजाला जालंधर में शिक्षा बीट पर संवाददाता हुआ करता था। जालंधर नकोदर रोड पर एक रिजार्ट में रविवार की सुनहरी दोपहर में कई स्कूलों का एक संयुक्त आयोजन था जिसका स्पांसर कंपनी हीरो साइकिल थी। सैकड़ों बच्चे हीरो की नई नई साइकिलों पर रिजार्ट के अंदर फुदक रहे थे। अंतर विद्यालीय प्रतियोगिता के लिए मंच तैयार हो रहा था।
मैं पत्रकार होने के नाते सबसे अगली पंक्ति में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग सज्जन मेरे पास आए। अपने दो तीन मेहमानो को बिठाने के लिए उन्होंने मुझे उठकर पीछे वाली सीट पर जाने को कहा। मैं पत्रकार होने की ठसक में था। मैंने कहा, मैं क्यों ये सीट छोड़ूं। आपकी तारीफ...उन्होंने कहा, मैं एक जेंटिलमैन हूं। मैने जवाब दिया- तो मैं भी जेंटिलमैन हूं। उसके बाद वे मुझसे आगे उलझे बिना चले गए। बाद में मंच पर जब सभी आयोजक और मुख्य अतिथि अवतरित हुए तो मुझे पता चला कि जिन सज्जन से मैं उलझा था वे हीरो साइकिल्स के चेयरमैन ओम प्रकाश मुंजाल ( OM PRAKASH MUNJAL) थे। आज साइकिलमैन ओपी मुंजाल इस दुनिया से जा चुके हैं तो मुझे जालंधर की वो घटना बार बार याद आती है।
आम आदमी की सवारी - साइकिल
रोजाना 19
हजार साइकिलें बनाने वाली कंपनी हीरो साइकिल्स के संस्थापक अध्यक्ष ओम
प्रकाश मुंजाल का 13 अगस्त 2015 को लुधियाना में निधन हो गया। 86 साल के मुंजाल को लुधियाना के दयानंद मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल के हीरो
हर्ट इंस्टीट्यूट में अंतिम सांस ली। सात भाई बहनों के परिवार में ओम प्रकाश
मुंजाल सबसे छोटे थे। इसी साल 22 फरवरी को उनकी पत्नी सुदर्शन मुंजाल का निधन हो
गया था। सुदर्शन उनकी पत्नी के साथ ही उनकी कविताओं की प्रेरणा थीं। सात भाई बहनों
में सबसे छोटे थे ओपी मुंजाल। खत्री परिवार से आने वाले मुंजाल सक्रिय आर्य समाजी
थे।
आम आदमी की सवारी क्या है।
साइकिल। देश में साइकिल को जन जन में लोकप्रिय किसने बनाया। हीरो साइकिल ने। हीरो
से पहले देश में हरक्यूलिस, रेले और फिलिप्स जैसी कंपनियों की साइकिलें विदेश से
आती थीं, जो काफी महंगी होती थीं। पर हीरो एक सस्ती और स्वदेश विकल्प बनकर लोगों
के बीच आई। ओपी मुंजाल को देश में साइकिल उद्योग का जनक के रूप में जाना जाता है।
अमृतसर में कारोबार की शुरुआत
1944 में ओपी मुंजाल ने
अमृतसर में अपने अपने तीन भाइयों-बृजमोहन लाल मुंजाल, दयानंद
मुंजाल और सत्यानंद मुंजाल के साथ एक साइकिल स्पेयर पार्ट्स का कारोबार शुरू किया।
तब ओम प्रकाश 16 साल के थे। हालांकि, भारत का बंटवारा हुआ,
जिसका बुरा असर अमृतसर में कारोबार पर पड़ा। इस कुछ सालों बाद ओपी
मुंजाल भाइयों को लेकर लुधियाना आ गए। लुधियाना का प्रसिद्ध डीएमसी हास्पीटल उनके भाई दयानंद मुंजाल के नाम पर बना है जो काफी पहले ही स्वर्ग सिधार गए थे।
हीरो का सफर
1956 में हीरो साइकिल्स का
कारखाना स्थापित हुआ था। इसके लिए बैंक से 50 हजार रुपये का कर्ज लिया गया था।
तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो ने मुंजाल परिवार को कारोबार
बढ़ाने के लिए प्ररेरणा दी थी। तब उसकी उत्पादन क्षमता रोजाना 25
साइकिलों की थी। अब इसमें रोज करीब 19 हजार
साइकिलें बनती हैं।ओम प्रकाश व्यापार में धुन के इतने पक्के थे कि एक बार उनकी
हीरो साइकिल फैक्ट्री में हड़ताल हो गई तो
वे खुद फैक्ट्री में नई साइकिलों पर पेंट करने के काम में लग गए। एक बार
ट्रक आपरेटरों ने हड़ताल कर दी तो साइकिलों को बस में बुक करके भिजवाने लगे।

हीरो साइकिल को 1980 में दुनिया की सबसे अधिक साइकिल बनाने वाली कंपनी के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल किया गया था। देश के साइकिल बाजार में हीरो कंपनी की करीब 48 फीसदी हिस्सेदारी है। ओपी मुंजाल के परिवार में एक बेटा पंकज मुंजाल और चार बेटियां हैं। बंटवारे से पहले कमालिया (अब पाकिस्तान में) में ओपी मुंजाल का जन्म हुआ था।
2010 में हीरो परिवार में बंटवारा
देश में बड़ी बिजनेस फैमिली में
बंटवारा सही तरीके से हो जाए, ऐसा होता
नहीं है। लेकिन हीरो ग्रुप ने 2010 में ये कर दिखाया। बीस से ज्यादा कंपनियां
चलानेवाले मुंजाल भाइयों ने बिजनेस को चार हिस्सों में बांट लिया और कोई हंगामा
नहीं हुआ। बंटवारे में सबसे बड़े भाई बृजमोहन
लाल मुंजाल और उनके बेटों - पवन , सुनील और स्वर्गीय रमनकांत
मुंजाल के परिवार के हिस्से में फ्लैगशिप कंपनी हीरो होंडा आई । साथ में हीरो
कॉरपोरेट सर्विसेज, हीरो। टीईएस, हीरो
माइंडमाइन और ईजीबिल पर भी उनका कंट्रोल में रहा। बीएम मुंजाल के भाई ओपी मुंजाल
के हिस्से आई बिजनेस को मजबूत बुनियाद देनेवाली हीरो साइकिल। साथ में हीरो मोटर्स।
स्व. दयानंद मुंजाल के बेटों को हीरो एक्सपोर्ट्स और सनबीम कंपनियां मिलीं।
सत्यानंद मुंजाल को मुंजाल ऑटो, मुंजाल शोवा और मैजेस्टिक
ऑटो मिली ।
- vidyutp@gmail.com
REFRENCE -
BOOK - ‘The Inspiring Journey of a Hero’
by Priya Kumar (Penguin 2014)
www.moneycontrol.com
( 2010)
( OM PRAKASH MUNJAL, HERO, CYCLE, LUDHIYANA, AMRITSAR, JALANDHAR, AMAR UJALA)
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