हर शहर का सुबह का नास्ते का अपना अपना मिजाज है। ये आपको उस शहर में जाने के बाद पता चलता है। अब मध्य प्रदेश की बात करें तो भोपाल में, इंदौर में आपने पोहा खाया होगा। पर अगर आप सुबह सुबह ग्वालियर शहर में हैं, तो रेलवे स्टेशन के आसपास सुबह-सुबह गर्मागर्म कचौड़ी छनती हुई दिखाई देती है। इसकी खूशबु बरबस ही लोगों को पास खींच लाती है।
रेलवे स्टेशन के पास बजरिया में कई दुकानों पर कचौड़ी और साथ
में देसी घी में बनी जलेबी लोगों का सुबह का प्रिय नास्ता है। एक प्लेट कचौड़ी
मिलती है 10 रुपये में। दो कचौड़ी सब्जी के साथ मिलेगी 20 रुपये में। नास्ता इतना
भरपूर है कि खाकर मन भर जाता है। ग्वालियर और आसपास के लोग इसे बेडुई भी कहते हैं। दुकानदार इसे हरे पत्ते के दोने में पेश करते हैं।
खाना तो खाइए या फिर पैक कराकर
घर ले जाएं। सुबह के पांच बजते ही दुकानें खुल जाती है तो नास्ते में कचौड़ी मिलने
लगती है।मानो दुकानदार इसकी तैयारी रात में ही करके रखते हैं। हरे पत्ते के दोने में ग्राहकों
को कचौड़ी परोसी जाती है। इसमें कचौड़ी के ऊपर से सब्जी डाल दी जाती है।
और ये तीखा स्वाद - ये इलाका चंबल में आता है। चंबल के परंपरा के अनुसार कचौड़ी और सब्जी थोड़ी तीखी जरूर होती है। यह सत्य है कि चंबल के लोग मिर्च ज्यादा खाते हैं।
रेलवे स्टेशन के पास कचौड़ी की कई दुकानें हैं पर इनमें
से बृजवासी कचौड़ी वाले की दुकान प्रसिद्ध है। आप कचौड़ी के साथ इमरती भी ले सकते
हैं। देसी घी में बनी इमरती के साथ कचौड़ी खाने पर नास्ते का स्वाद और भी बढ़ जाता
है। जो लोग चंबल छोड़कर किसी और शहर
में चले गए हैं वे सुबह की कचौड़ी को काफी याद करते हैं।
- विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( GWALIOR, MP, MORNING BREAKFAST, BEDUI , KACHAURI)
ग्वालियर की कचौड़ी के बारे में पढ़कर मुंह में पानी आ गया। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteग्वालियर की कचौरी वाक़ई में ज़ायक़ेदार होती है लेकिन कचौरी और बेढ़ई दोनों अलग अलग होती हैं।
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