शिवनेरी के बाद हमलोग चल पड़े हैं लेणयाद्रि की ओर। पुणे
नासिक रोड पर जुन्नर कस्बे के पास ऐतिहासिक लेण्याद्रि की गुफाएं हैं। यहां कुल 300 से अधिक खड़ी सीढ़ियां चढ़कर गुफाओं तक
पहुंचना पड़ता है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित स्मारक है।
यहां प्रवेश के लिए 5 रुपये का टिकट खरीदना पड़ता है। काफी दूर से
ही लेण्याद्रि की गुफाएं अति सुंदर दिखाई देती हैं।
आसपास के हरे भरे खेतों में अंगूर की खेती होती दिखाई देती है। लेण्याद्रि गांव कुकड़ी नदी के किनारे स्थित है। लेण्याद्रि में कुल 28 गुफाएं हैं। कहा जाता है इन गुफाएं में बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। हालांकि इन गुफाओं में से सिर्फ दो में ही जाने का बेहतर रास्ता है। इनमें से एक एक गुफा में स्तूप बना है। जबकि दूसरी गुफा में गणेश जी का मंदिर है।
ये गुफाएं काफी हद तक देखने में एलोरा की गुफाओं जैसी ही लगती है। इन गुफाओं को निर्माण तीसरी शताब्दी ई पूर्व से लेकर 3 सदी के बीच का है। ये बौद्ध धर्म के हीनयान संप्रदाय से जुड़ी हुई गुफाएं थीं।
आसपास के हरे भरे खेतों में अंगूर की खेती होती दिखाई देती है। लेण्याद्रि गांव कुकड़ी नदी के किनारे स्थित है। लेण्याद्रि में कुल 28 गुफाएं हैं। कहा जाता है इन गुफाएं में बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। हालांकि इन गुफाओं में से सिर्फ दो में ही जाने का बेहतर रास्ता है। इनमें से एक एक गुफा में स्तूप बना है। जबकि दूसरी गुफा में गणेश जी का मंदिर है।

ये गुफाएं बौद्ध भिक्षुओं का प्रार्थना स्थल और उनका निवास हुआ करती थीं। इनमें गुफा नंबर 6 मुख्य चैत्य गृह हुआ करता था। जबकि गुफा नंबर सात इन गुफाओं में आकार में सबसे बड़ी है। इन्ही बौद्ध गुफाओं में से दो में बाद में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर दी गई और इन्हे अष्ट विनायक के तौर पर पूजा जाने लगा। यहां बौद्ध विहार को दान का उल्लेख करता हुआ दूसरी सदी का एक शिलालेख भी है। लेणयाद्रि को सुलेमान पहाड़ या गणेश पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है। तीसरी सदी ईपू में पूरा जुन्नर इलाका बौद्ध विहारों का बड़ा केंद्र था। इस इलाके में कुल 200 बौद्ध गुफाएं हैं।
अष्ट विनायक गणपति यानी गिरिजात्मज मंदिर –
अष्ट विनायक गणपति यानी गिरिजात्मज मंदिर –
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लेण्याद्रि के गिरिजित्मज गणपति। |
लेण्याद्रि के गणेश जी की गिनती महाराष्ट्र के
अष्ट विनायक गणपति में होती है। इन गणपति को गिरिजित्मज नाम से पुकारा जाता है।
गिरिजात्मज यानी गिरिजा ( पार्वती) के पुत्र। कहा जाता है इन्ही पहाड़ों पर कभी
पार्वती जी निवास करती थीं। यहीं कुंड में वे स्नान कर रही थीं। तभी शिव जी
पार्वती जी से मिलने पहुंचे। बाल गणेश ने उनका रास्ता रोका और गुस्से शिवजी ने
उनका सिर काट दिया। बाद गणेश जी की सच्चाई पता चलने पर उन्हे हाथी का सिर लगाया
गया। यहां श्रद्धालुओं को वह कुंड दिखाया जाता है जहां पार्वती जी स्नान करती थीं।
इस स्थान का नाम जीर्णपुर या लेखन पर्वत भी मिलता है। यहां गणेश का देव
स्थान गुफाओं ( लेणी) के बीच है इसलिए इसका नाम लेण्याद्रि रखा गया। कहा जाता है
गणेश जी को पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती ने 12 वर्षों तक कठोर तप
किया था। इसके बाद भाद्रपद की चतुर्थी तिथि को गणेश जी पुत्र के रूप प्रकट हुए। यह भी कहा जाता है कि लेण्याद्रि की आठवीं गुफा में जो गणेश जी
की प्रतिमा है वह स्वंभू प्रकट हुई है। ये गुफा 53 फीट लंबी और 51 फीट चौड़ी है।
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लेण्याद्रि - 321 सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते तो पालकी है ना... |
यहां गणेश
जी ने 15 साल तक बाल लीला की थी। यहां उन्होने कई दैत्यों का
संहार भी किया था। जिस गुफा में गणेश प्रतिमा है वहां कोई प्रसाद नहीं चढ़ता। यहां
पहुंच कर आप गुफा के अंदर बैठकर शांति से ध्यान कर सकते हैं। मंदिर में गणेश
प्रतिमा दक्षिण मुखी है। मंदिर की गुफा में सूर्योदय से सूर्यास्त तक उजाला रहता
है।
321 सीढ़ियों की चढ़ाई - लेण्याद्रि के गुफाओं तक पहुंचने के लिए कुल 321 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। ये चढ़ाई थोड़ी मुश्किल है। बुजुर्ग लोगों के लिए यहां भी पालकी का इंतजाम है।
321 सीढ़ियों की चढ़ाई - लेण्याद्रि के गुफाओं तक पहुंचने के लिए कुल 321 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। ये चढ़ाई थोड़ी मुश्किल है। बुजुर्ग लोगों के लिए यहां भी पालकी का इंतजाम है।
रास्ते में सीढ़ियों पर बड़ी संख्या में बंदर हैं जो आते जाते लोगों के सामान की तलाशी लेते हैं। अगर आप सावधान नहीं हैं तो आपका पर्स लेकर फरार हो सकते हैं। अगर आपके पास खाने का कोई सामान है तो बिना लाग लपेट के उन्हें सौंप दें। वर्ना खैर नहीं।
लेणयाद्रि की गुफा के नीचे कुछ दुकाने हैं जहां आपको चाय नास्ता आदि मिल जाता है। श्रद्धालुओं के लिए पेयजल और शौचालय आदि का भी प्रबंध है। गाड़ियों के लिए पार्किंग का भी इंतजाम है।
लेणयाद्रि की गुफा के नीचे कुछ दुकाने हैं जहां आपको चाय नास्ता आदि मिल जाता है। श्रद्धालुओं के लिए पेयजल और शौचालय आदि का भी प्रबंध है। गाड़ियों के लिए पार्किंग का भी इंतजाम है।
कैसे पहुंचे - जुन्नर तहसील से लेण्याद्रि की दूरी 7 किलोमीटर है। पुणे शहर से कुल दूरी 120 किलोमीटर है। पुणे से नारायण गांव होते हुए लेण्याद्रि पहुंचा जा सकता है। लेण्याद्रि जाने के क्रम में आप जुन्नर या फिर ओझर में रात्रि विश्राम कर सकते हैं। नासिक से दूरी 140 किलोमीटर है जबकि अहमदनगर से 100 किलोमीटर है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
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ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteHello Sir, http://www.ashtavinayak.in/girijatmak.html << This link is not working. please update link to >> http://www.ashtavinayak.in/lenyadri-girijatmaj-ganpati-ashtavinayak.php
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