कैलाश मंदिर के प्रवेश द्वार पर हाथी। |
औरंगाबाद के पास स्थित एलोरा की 34 गुफाओं में सबसे
अदभुत है कैलाश मंदिर गुफा। एलोरा का विशाल कैलाश मंदिर (गुफा संख्या - 16) के निर्माण का श्रेय राष्ट्रकूट शासक कृष्णा-
प्रथम (लगभग 757-783 ई ) को जाता है। वह दंतिदुर्ग का उत्तराधिकारी एवं चाचा था। हालांकि माना जाता है कि इसका निर्माण कई पीढ़ियों में हुआ है। पर
इसका काम कृष्णा प्रथम के शासनकाल में पूरा हुआ। कैलाश मंदिर में
अति विशाल शिवलिंग देखा जा सकता है।
मंदिर में एक विशाल हाथी की प्रतिमा भी है जो
अब खंडित हो चुकी है। ऐलोरा की ज्यादातर गुफाओ में प्राकृतिक प्रकाश पहुंचता है।
लेकिन कुछ गुफाओं को देखने के लिए बैटरी वाले टार्च की जरूरत होती है। यहां
पुरातत्व विभाग के कर्मचारी आपकी मदद के लिए मौजूद होते हैं। अजन्ता से अलग एलोरा गुफाओं की विशेषता यह है कि अलग अलग ऐतिहासिक कालखंड में व्यापार
मार्ग के अत्यन्त निकट होने के कारण इनकी कभी भी उपेक्षा नहीं हुई। इन गुफाओं को
देखने के लिए उत्साही यात्रियों के साथ-साथ राजसी व्यक्ति नियमित रूप से आते
रहे।
एलोरा की कैलाश मंदिर गुफा की छत से तस्वीर। |
एलोरा की 16 नंबर गुफा सबसे बड़ी है, जो कैलाश के स्वामी भगवान शिव को समर्पित है। इसमें सबसे ज़्यादा
खुदाई काम किया गया है। बाहर से मूर्ति की तरह समूचे पर्वत को ही तराश कर इसे
द्रविड़ शैली के मंदिर का रूप दिया गया है। मंदिर केवल एक चट्टान को काटकर बनाया
गया है। इसकी नक्काशी अत्यंत विशाल और भव्य है। विशाल गोपुरम से प्रवेश करते ही सामने खुले मंडप में नंदी की प्रतिमा नजर आती है तो उसके
दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ बने हैं।
एलोरा के वास्तुकारों ने कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने की कोशिश की है। कैलाश के भैरव की मूर्ति भयकारक दिखाई देती
है, तो पार्वती की मूर्ति
स्नेहिल नजर आती है। शिव तो यहां ऐसे वेग में तांडव करते नजर आते हैं जैसा कहीं और
दिखाई नहीं देता।
एलोरा- कैलाश मंदिर के भित्ति चित्र में नृत्यरत शिव। |
शिव-पार्वती का परिणय भावी चित्रित करने में कलाकारों ने
मानो अपनी कल्पनाशीलता का चरमोत्कर्ष देने की कोशिश की है। शिव पार्वती का विवाह,
विष्णु का नरसिंहावतार, रावण द्वारा कैलाश
पर्वत उठाया जाना आदि चित्र यहां दीवारों में उकेरे गए हैं। वास्तव में यह देश के
ही सात अजूबों में नहीं बल्कि दुनिया के सात अजूबों में शामिल होने लायक है। उस
दौर में जब जेसीबी मशीनें नहीं थी। पत्थरों को काटने के लिए डायनामाइट नहीं थे ये
काम कैसे संभव हुआ होगा सोच कर अचरज होता है। कई बार ऐसा लगता है कि ये इन्सान के
वश की बात नहीं।
मंदिर में
पूजा नहीं होती - कैलाश मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर है।
हालांकि देश भर में शिव मंदिरों का प्रवेश द्वार आम तौर पर पश्चिम की ओर नहीं
होता। इस मंदिर में कभी पूजा किए जाने का प्रमाण नहीं मिलता। आज भी इस मंदिर
में कोई पुजारी नहीं है। कोई नियमित पूजा पाठ का कोई सिलसिला नहीं चलता।
ऐसा है कैलाश मंदिर, एलोरा
40 हजार टन
भार के पत्थारों को चट्टान से हटाया गया कैलाश मंदिर के निर्माण में
90 फीट है इस अनूठे मंदिर की ऊंचाई, दरवाजा है पश्चिम की तरफ।
276 फीट लम्बा , 154 फीट चौड़ा है यह गुफा मंदिर
200 साल लगे इस मंदिर के निर्माण में, दस पीढ़ियां लगीं
7000 शिल्पियों ने लगातार काम करके तैयार किया है ये मंदिर
( ELORA, KAILASH TEMPLE, RASHTRAKUT KINGS,
VERUIL LENI, WORLD HERITAGE SITE)
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
Amazing and very helpful post
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