औरंगाबाद शहर की पहचान है बीबी का
मकबरा। यह देखने में बिल्कुल आगरा के ताजमहल जैसा ही लगता है। वैसा ही यहां भी चारबाग बनाया गया है। पर यह कई मायने में ताज से काफी अलग भी है। ताज जहां पति की अपने पत्नी के प्रति प्रेम की
निशानी है तो बीबी का मकबरा एक बेटे ने अपनी मां की याद में बनवाया था। एक रिश्ता और है ताज महल से , दोनों ही मुगलिया सल्तनत की निशानी हैं। इसे दक्कन का ताज भी कहा जाता है।
रबिया उल दुरानी की कब्र- बीबी का मकबरा मुगल सम्राट औरंगजेब ( शासन काल - 1658-1707 ईसवी ) की पत्नी
रबिया-उल-दुरानी उर्फ दिलरास बानो बेगम की याद में बना है। औरगंजेब ने 1637 में दिलरास बानो से विवाह किया था। ये एक अति सुंदर मकबरा
है। यहां पर रबिया उल दुरानी के मानवीय अवशेष भूतल के
नीचे रखे गए हैं। उनका मकबरा अत्यंत सुंदर डिजाइनों वाले एक अष्टकोणीय संगमरमर
के आवरण से घिरा हुआ है। यहां तक सीढियां उतर कर जाया जा सकता है। आमतौर पर मकबरे
में आने वाले दर्शक चारों तरफ बने घेरे से नीच झुक कर मकबरे को देखते हैं।
ताज के नकल की पूरी कोशिश - बीबी के मकबरा का निर्माण
मुगल बादशाह औरंगजेब के शहजादे आजमशाह ने सत्रहवीं शताब्दी के अंत में करवाया
था। यह उसकी माता दिलरास बानो ( रबिया) औरंगजेब की बेगमों में से एक थी। राजकुमार
आजम शाह ने अपनी मां बेगम राबिया की याद में इसे 1678 में
बनवाया था। कहीं कहीं इसके निर्माण का काल 1651 से 1661 के बीच का मिलता है।
इसके निर्माण में दस साल का वक्त लगा था। यह संयोग की उनके पति औरंगजेब की कब्र भी औरंगाबाद शहर के पास ही स्थित है। इस मकबरे के वास्तुकार का नाम अता उल्लाह था जिसने ताजमहल की नकल करने
की पूरी कोशिश की थी लेकिन उसे उतनी सफलता नहीं मिली। यहां पहुंचकर दिखाई देता है कि यहां हरियाली कुछ ज्यादा ही है। चार बाग में आम के असंख्य पेड़ हैं जिन पर टिकोले झूम रहे हैं।
औरंगाबाद स्थित बीबी का मकबरा स्थित चार बाग का एक नजारा। |
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
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