
औरंगाबाद के करीब स्थित अजंता में
आप एक नंबर गुफा से घूमते हुए आगे की ओर बढ़ते हैं। गुफा नंबर 26 अजंता की आखिरी
देखने वाली गुफा है। इनमें कई गुफाओं में बौद्ध चैत्य गृह और स्तूप बने हैं तो कई
में पेंटिंग हैं।
गुफा नंबर 17 में बुद्ध की जातक कथाओं से संबंधित चित्र बने हैं।
न सिर्फ दीवारों पर बल्कि छत पर भी चित्र बनाए गए हैं। आप सारी गुफाएं देखते हुए ही आगे बढ़ें। कोई छोड़ने का मतलब नहीं बनता। अजंता की गुफा नंबर 27 से 30 तक जाने के
लिए कोई रास्ता मौजूद नहीं है। रास्ता बनाया ही नहीं गया। पुरातत्व सर्वेक्षण का
स्टाफ इन गुफाओं में रस्सी के सहारे सफाई के लिए जाते हैं। आम दर्शकों के लिए वहां
पहुंचना मुश्किल है।
अजंता की कई
गुफाओं में प्राकृतिक रोशनी नहीं जाती। यहां पर किसी जमाने में धूप में बड़े बड़े
आइने लगाकर रोशनी रिफ्लेक्टर के माध्यम से भेजी जाती थी। पर कुछ साल पहले जापान
सरकार ने यहां पर ऐसी एलइडी लाइटें लगवा दी हैं जिनसे मूर्तियों को कोई नुकसान
नहीं होता।
बुजुर्ग लोग
जो पैदल चलने में थक जाते हैं उनके घूमने के लिए अजंता में पालकी भी मौजूद है।
पालकी किराया 1400 रुपये प्रति व्यक्ति है।
आपको प्रवेश द्वार पर अजंता के गाइड
मिलते हैं तो 300 रुपये या अधिक राशि की मांग करते हैं। आप समूह में हैं तो गाइड कर
सकते हैं। अन्यथा आप अजंता का ब्रोशर ले लें। इस ब्रोशर के सहारे भी घूम सकते हैं।
हर गुफा के बाहर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से चौकीदार तैनात हैं वे भी गुफा
के बारे में बताते हैं। पर बाद में वे आपसे थोड़ी बक्शीश की अपेक्षा रखते हैं।
अजंता की
गुफाएं देखकर लौटने के बाद थक गए हों तो खाने पीने के लिए आपको यहां एमटीडीसी का रेस्टोरेंट
नजर आता है। पर ये रेस्टोरेंट ठेके पर चलाया जाता है। यहां खाना काफी महंगा भी है।
अगर आप यहां न खाना चाहें तो शटल बस सेवा से वापस आप जब शापिंग प्लाजा पहुंचेंगे
तो वहां भी खाने-पीने के लिए दो समान्य से होटल हैं। यहां आप सरकारी होटल की तुलना में सस्ते में पेट पूजा कर सकते हैं।
यहां पर हमें मुरली कृष्ण
होटल में सिर्फ 50 रुपये की थाली मिल गई, जिसका
खाना संतोष जनक था। अजंता में बने शापिंग प्लाजा से आप मूर्तियां खरीद सकते हैं। थोड़ा मोलभाव
करके यहां से सस्ते में मूर्तियां खरीदी जा सकती हैं।
अगर आप
अजंता में एक दिन से ज्यादा वक्त गुजारना चाहते हैं तो अजंता की गुफाओं से 3
किलोमीटर आगे जलगांव मार्ग पर फर्दापुर गांव में एमटीडीसी का रेस्ट हाउस है, जहां ठहरा जा सकता है। इसके अलावा अजंता से आठ
किलोमीटर आगे पहाड़ी पार करने के बाद अजंता गांव में भी एक दो गेस्ट हाउस हैं।
अजंता में गौतम बुद्ध |
कर्मचारियों को महीनों से वेतन
नहीं – मैं
31 मार्च 2015 को अजंता पहुंचा। गुफाओं में घूमते हुए कई चौकीदारों से बात हुई, पता चला कि इन चौकीदारों की नौकरी अस्थायी है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सालों से इन्हे स्थायी नहीं किया है। ये भारत सरकार
के दैनिक मजदूर हैं। सबसे बुरी बात तो ये है कि इन्हे
वेतन 5 से 6 माह बाद मिलता है।
![]() |
चलों चलें अजंता की सैर करने.. |
हम यहां अप्रैल माह में हैं। पर इन कर्मचारियों ने बताया कि दिसंबर के बाद से वेतन नहीं मिला है। इसी तरह यहां निजी कंपनी के सुरक्षा गार्ड लगाए गए हैं। उन्हे भी छह माह बाद वेतन मिल पाता है। जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इनकी कंपनी को चेक जारी करता तब जाकर सुरक्षा गार्डों को वेतन मिल पाता है। भारत सरकार की इस संस्था में जो हो रहा है वह शर्मनाक है।
अजंता - दीवारों पर चित्रकारी.... |
- विद्युत प्रकाश मौर्य - मुझे लिखें - vidyutp@gmail.com
( WORLD HERITAGE SITE, AJANTA, AURANGABAD, BUDDHA, CAVES, WORLD HERITAGE SITE )
No comments:
Post a Comment