धन्य किहिन
विक्टोरिया जिन्ह चलाईस रेल,
मानो जादू किहिस
दिखाइस खेल...
हिंदी के प्रसिद्ध
कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्तियां गुजरात के प्रतापनगर रेल संग्रहालय के बाहर
लिखी हुई नजर आती हैं। और भारतेंदु हरिश्चंद्र की ही लिखी गई नए
जमाने की मुकरी भी यहां नजर आती है - पैसे लेके पास भगावे, ले भागे मोहि
खेले खेल,
का सखि साजन, ना
सखि रेल।
वास्तव में
दुनिया में रेलगाड़ियों के विकास की कहानी जादू भरी है। वडोदरा के प्रतापनगर में
बना ये संग्रहालय नैरो गेज के विकास की दास्तां बयां करता है। इसका महत्व इसलिए
बढ़ जाता है कि गुजरात में ही देश की पहली नैरो गेज रेल चली और कभी देश का सबसे
बड़ा नैरो गेज नेटवर्क गुजरात में हुआ करता था। प्रतापनगर में इस रेल संग्रहालय का उदघाटन 27 जनवरी 1997 को रेलवे बोर्ड
के सदस्य कार्मिक (रेलवे) वीके अग्रवाल द्वारा किया गया।
यहां
जानकारी दी गई है कि नैरो गेज ट्रेनों की शुरुआत यूरोप में कोयला के खानों में
हुई। पर बाद में ये सवारी ढोने के लिए भी लोकप्रिय हो गई। भारत में नैरो गेज रेलवे लाइन बिछाने वाले बड़ौदा महाराजा पहले राजा थे। जब बड़ौदा के महाराजा ने डभोई और मियागाम के बीच पहली नैरो गेज रेलवे लाइन बिछाई तो देश के दूसरे महाराजाओं
ने भी उनका अनुशरण किया। रेलवे ने आम जनमानस पर काफी प्रभाव डाला, जो रेलगाडियों पर लिखी गई कविताओं , लोकगीतों और कहानियों में दिखाई देता है।
गुजरात का
डभोई 19वीं सदी का महत्वपूर्ण व्यापारिक शहर था। वहां से महुआ, कपास, गल्ले आदि का व्यापार
होता था। यह धातु के काम, बुनाई के काम और लकड़ी के सामानों
के लिए भी जाना जाता था। महाराजा बड़ौदा को ख्याल आया कि इस शहर को बड़ौदा मुंबई
रेल मार्ग से जोड़ा जाए। इसी को ध्यान मे रखते हुए डभोई मियागाम के बीच नैरो गेज
रेलवे लाइन बिछाने की योजना बनी।
26 मार्च 1860 को बड़ौदा के रेजिडेंट ने गवर्नमेंट
ऑफ मुंबई के चीफ सेक्रेटेरी को एक खत लिखा जिसमें उन्होंने बड़ौदा रियासत में
रेलवे लाइन बिछाने की जरूरत बताई। पत्र में कहा गया कि महाराजा खंडोराव रेलवे लाइन
बिछाने की इच्छा रखते हैं। इसके लिए 2 फीट 6 इंच वाले गेज का चयन किया गया।
हालांकि पहला प्रस्ताव इंटौला को बडौदा से जोडने का था लेकिन 1862 में डभोई को
मियागाम से जोडा गया। पर इस रेलवे लाइन पर कोच को बैल खींचते थे।
1863 में लंदन टाइम्स ने अपने संस्करण में विशेष खबर प्रकाशित की, जिसमें इस बात का जिक्र था कि भारत में बड़ौदा के
प्रिंस ने अपने खर्च पर भारत में पहली नैरो गेज रेल नेटवर्क का निर्माण किया जिसे
बैल खींचते हैं। बैल से खींचे जाने वाले यात्री कोच में 12 लोगों के बैठने का
इंतजाम था। इसका कोच 4 पहियों वाला था। इसमें यात्री कोच के साथ मालगाड़ी के छोटे
डिब्बे भी जोडे जाते थे। दो बैलों की जोड़ी चार कोच को आराम से खींचती थी। पर
बैलों से चलने वाली ये रेलवे लाइन ज्यादा लंबा सफर नहीं कर सकी। महाराजा
मल्हार राव ने डभोई मियागाम लाइन को दुबारा नए सिरे से बनवाने का उपक्रम शुरू
किया। इस बार इसे स्टीम इंजन से चलाने की योजना पर काम हुआ। इसके लिए पटरियां बदली
गईं।
यह भारत के नैरो गेज के इतिहास में ऐतिहासिक दिन था। 8 अप्रैल 1873 को स्टीम
लोकोमोटिव से चलने वाले नैरो गेज रेल मार्ग का संचालन डभोई और मियागाम के बीच हुआ।
पहले दिन दिनों में इस रेल मार्ग से महज 57 लोगों ने यात्रा
की और 1267 मन माल की ढुलाई हुई। अगले हफ्ते यात्रियों की
संख्या बढ़कर 244 हो गई। माल की लदान में भी बढ़ोत्तरी हुई।
इस तरह रेलवे लाइन लोकप्रिय होने लगी और कमाई में भी इजाफा होने लगा।
तब निचले दर्जे का किराया 4 पाई प्रति मील और
उपर के दर्जे का किराया 8 पैसे प्रति मील था। एक यात्री गाड़ी में कुल 212 लोग
सवार हो सकते थे। गाड़ी की अधिकतम स्पीड 8 मील प्रति घंटा हुआ करती थी। वहीं माल
ढुलाई की दर 8 पैसे से 40 पाई प्रति मील थी। माल ढुलाई की दर अलग अलग सामान के लिए
अलग थी। सबसे कम दर गल्ले और नमक आदि के लिए रखी गई थी।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( NARROW GAUGE, RAIL IN GUJRAT )
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( NARROW GAUGE, RAIL IN GUJRAT )
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