
कहा जाता है कि दिल्ली का नाम तो दिलेराम उर्फ
दिल्लू से बिगड़कर दिल्ली पड़ा। दिलेराम विक्रमादित्य के शासन काल में लगभग 21 वर्षों तक लगातार दिल्ली के राज्यपाल रहे, उन्होंने
इसका प्रशासन इतना सुचारु रूप से चलाया कि जनता उनके नाम की ही कायल हो गई। इसी
कारण विक्रमादित्य ने खुश होकर इस दिलेराम जाट को ‘दिलराज’
की उपाधि से नवाजा था। इनका गोत्र भी ढिल्लों था। याद रहे कभी भी
कोई ढिल्लों गोत्री जाट मुस्लिम धर्मी नहीं बना। अधिकतर
सिख बने, शेष हिन्दू जाट हैं। हरियाणा में भिवानी जिले के कई
गांवों में इस गोत्र के हिन्दू जाट हैं। इसी दिलेराज को लोग इन्हें प्यार और इज्जत
से दिल्लू कहने लगे, जिस कारण यह दिल्लू की दिल्ली कहलाई। यह
तथ्यों से परिपूर्ण इतिहास सर्व खाप पंचायत के रिकार्ड में भी दर्ज है।
एक अनुश्रुति है कि इसका नाम 'राजा ढीलू' के नाम पर पड़ा जिसका आधिपत्य ईशा पूर्व पहली
शताब्दी में इस क्षेत्र पर था। बिजोला अभिलेखों (1170 ई.) में उल्लेखित ढिल्ली या ढिल्लिका सबसे पहला लिखित उद्धरण है। कुछ
अन्य लोगों के मतानुसार आठवीं सदी में कन्नौज के राजा
दिल्लू के नाम पर इसका नामांकन हुआ है।
वास्तव में इस दिल्ली के दिल्ली का दिल
काफी बड़ा है, तभी तो ये हर जगह से आए लोगों को पनाह देती है। खुद में आत्मसात कर
लेती है। और बाहरी लोग रंग जाते हैं दिल्ली के रंग में।
तभी तो शायर बोल पड़ते हैं – कौन जाए जौक दिल्ली की गलियां छोड़कर.... ( शेख इब्राहिम जौक बहादुर शाह जफर के समकालीन शायर थे) पूरा शेर कुछ इस तरह है-
तभी तो शायर बोल पड़ते हैं – कौन जाए जौक दिल्ली की गलियां छोड़कर.... ( शेख इब्राहिम जौक बहादुर शाह जफर के समकालीन शायर थे) पूरा शेर कुछ इस तरह है-
इन दिनों गर्च-ए-दकन में है बड़ी कद्र-ए-सुखन,
कौन जाए 'जौक' पर दिल्ली
की गलियां छोड़कर!
हालांकि कई बार लोग बार बार दिल्ली का नाम बदलकर फिर
से इंद्रप्रस्थ किए जाने की मांग भी करते हैं पर बड़ा सवाल है कि दिल्ली नाम पूरी दुनिया में इस कदर फैल
चुका है, लोकप्रिय हो चुका है कि अब इसे बदल पाना भला संभव है क्या...
-विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( DELHI, OLD NAME )
-विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( DELHI, OLD NAME )
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