गायकवाड महाराजाओं की काशी
विश्वनाथ में बड़ी आस्था थी इसलिए उन्होंने अपने राजमहल के पास काशी विश्वनाथ नाम
से मंदिर का निर्माण कराया। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण बड़ौदा के
महाराजा काशीराव गायकवाड (1832 – 1877) ने करवाया। वे महाराज सयाजीराव गायकवाड
(तृतीय) के पिता थे। मंदिर पीले रंग में रंगा है। दीवारों पर नक्काशी अदभुत है।
मुख्यद्वार के ऊपर शिव (नटराज) की नृत्य मुद्रा में सुंदर प्रतिमा लगी है। इसके नीचे गुजराती में ओम श्री काशी विश्वनाथ महादेवाय नमः लिखा है। मंदिर के गर्भगृह के ऊपरी दीवार पर विष्णु की लेटी हुई प्रतिमा बनी है। उनकी नाभि से कमल का फूल निकल रहा है। पूरे परिसर में जगह जगह दीवारों पर नृत्यरत प्रतिमाएं बनीं हुई है।। मंदिर परिसर में शिव के सवारी नंदी की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर को देखकर गायकवाड घराने के राजाओं की कलात्मक अभिरूचि का पता चलता है। मंदिर का परिसर सुंदर और मनोरम नजर आता है। जगह जगह श्रद्धालुओं के बैठने के लिए बेंच लगाई गई हैं।
मुख्यद्वार के ऊपर शिव (नटराज) की नृत्य मुद्रा में सुंदर प्रतिमा लगी है। इसके नीचे गुजराती में ओम श्री काशी विश्वनाथ महादेवाय नमः लिखा है। मंदिर के गर्भगृह के ऊपरी दीवार पर विष्णु की लेटी हुई प्रतिमा बनी है। उनकी नाभि से कमल का फूल निकल रहा है। पूरे परिसर में जगह जगह दीवारों पर नृत्यरत प्रतिमाएं बनीं हुई है।। मंदिर परिसर में शिव के सवारी नंदी की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर को देखकर गायकवाड घराने के राजाओं की कलात्मक अभिरूचि का पता चलता है। मंदिर का परिसर सुंदर और मनोरम नजर आता है। जगह जगह श्रद्धालुओं के बैठने के लिए बेंच लगाई गई हैं।
गुजरात में भरूच के पास चांदोद में भी नर्मदा तट
पर एक काशी विश्वनाथ का मंदिर बना है। वैसे काशी विश्वनाथ का एक मंदिर उत्तराखंड
के गुप्त काशी में भी है। बड़ौदा के स्थानीय लोगों में काशी विश्वनाथ को लेकर गहरी
आस्था है। सावन के सोमवार और महाशिवरात्रि के मौके पर मंदिर में श्रद्धालुओं की
भीड़ उमड़ती है।
कैसे पहुंचे – वडोदरा का काशी विश्वनाथ मंदिर नवापुरा में जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर स्थित है। इसे लालबाग रोड के नाम से भी जाना जाता है। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 4 किलोमीटर है।
कैसे पहुंचे – वडोदरा का काशी विश्वनाथ मंदिर नवापुरा में जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर स्थित है। इसे लालबाग रोड के नाम से भी जाना जाता है। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 4 किलोमीटर है।
वडोदरा से दिल्ली की वापसी की राह पर हूं। रात में गरीब रथ एक्सप्रेस के सिटिंग क्लास में आरक्षण है। इससे पहले बड़ौदा रेलवे स्टेशन के बाहर गायत्री भवन के बगल में स्थित इंद्र भवन में रात का खाना खाया। गुजराती थाली। गायत्री भवन में इससे पहले हमलोग भोजन कर चुके थे तो इस बार दूसरे भोजनालय का स्वाद लेने की सोची। इनकी थाली अच्छी है।
ट्रेन समय पर आई। चेयरकार में मतलब वडोदरा से दिल्ली तक का सफर बैठकर। पर पड़ोस मे एक युवा इंजीनियर मिल गए। वे उत्तराखंड से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके नौकरी की तलाश में गुजरात आए थे। बड़े दुखी थे कि कंपनियां इतनी पढ़ाई करने के बाद महज सात से आठ हजार रुपये मासिक की नौकरी ऑफर कर रही हैं। मैंने उन्हें सलाह दी, अभी जो मिल रही है स्वीकार कर लो। एक दो साल के अनुभव के बाद दूसरी नौकरी की तलाश करना ठीक रहेगा। खाली बैठोगे तो अनुभव भी नहीं होगा, साथ ही पढ़ी हुई चीजें भूलने भी लगोगे। उन्हें मेरी सलाह पसंद आई। सुबह नौ बजे हमलोग दिल्ली पहुंच चुके थे।
-vidyutp@gmail.com
( JYOTIRLINGAM, TEMPLE, SHIVA, VADODRA, INDRA BHWAN )
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