धौली शांति स्तूप के बाहर ( 1991) |
पुरी से
भुवनेश्वर तक का रास्ता समंदर के साथ साथ चलता है। जुलाई के महीने में हल्की हल्की
बारिश के बीच गरमी छूमंतर थी और सफर सुहाना लग रहा था। जुलाई 1991 का समय। हम पुरी से श्रीराम बस सेवा बुक कर ओडिशा
दर्शन पर निकले थे। हमारे गाइड बड़ी ही मजेदार शैली में आसपास के स्थलों के बारे
में जानकारी दे रहे थे। कोणार्क के सूर्य मंदिर, पीपली गांव,
चंद्रभागा समुद्र तट के बाद हमारी अगली मंजिल थी धौली पहाड़ी। हमारे
गाइड ने बताया कि ये बस शांति स्तूप तक नहीं जाएगी। पार्किंग में बस रूक जाएगी
उसके बाद आपको आगे का सफर 11 नंबर की बस से करना होगा। 11
नंबर की बस। मन में कौतूहल हुआ। ये कौन सी बस है। थोड़ा दिमाग
घुमाने पर समझ में आया। आपके दो पांव। कदम ताल करते हुए हम धौली की पहाड़ी पर
स्थित शांति स्तूप पहुंचे।
धौली में है
कलिंग युद्ध की यादें

धौली में बने इस विशाल
शांति स्तूप के चारों ओर अलग-अलग मुद्राओं में बुद्ध की चार मूर्तियां हैं। यहां
भगवान बुद्ध की लगी प्रतिमाएं संगमरमर की है। स्तूप में जातक कथाओं से जुड़े हुए
प्रसंग पत्थरों पर उकेरे गए हैं। यहां पत्थरों पर तराशा गया हाथी का मुख भी है। साथ
ही शांति स्तूप में शेर की प्रतिमाएं भी बनी हैं। अशोक के तेरहवें अभिलेख के
अनुसार उसने अपने राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद कलिंग युद्ध लडा। कलिंग विजय उसकी
आखिरी विजय थी। यह युद्ध 262-261 ईस्वी पूर्व में लड़ा गया।
शांति स्तूप के चारों ओर
हरियाली का सुंदर नजारा मनमोहक है। काफी लोग
इसे धौली बौद्ध मंदिर भी कहते हैं।
खून से लाल हो
गई थी नदी
शांति स्तूप से नीचे दया
नाम की नदी बहती दिखायी देती है। कहा जाता है कलिंग युद्ध के समय ये नदी ओडिशा के
पराजित हुए सैनिकों के खून से लाल हो गई थी। इस नदी की रक्त रंजित जलधारा का देखकर
अशोक मन विक्षिप्त हो गया। यहां अशोक के काल राजकीय आदेशों को भी पढ़ा जा सकता हैं।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक की शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की थी जो यहां एक पत्थर
पर खुदी हुई है। धौली का बौद्ध स्तूप सुबह 6 बजे से रात के आठ बजे तक खुला रहता है।
कलिंग महोत्सव का आयोजन - इधर कुछ सालों से ओडिशा सरकार के पर्यटन विभाग की ओर से ऐतिहासिक धौली पहाड़ पर कलिंग
महोत्सव का आयोजन किया जाने लगा है। तीन दिन तक चलने वाले इस महोत्सव देश भर के
कलाकार शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति देते हैं। शांति के सुर फूटते हैं, लोग मगन हो जाते हैं।
रास्ते में काजू के पेड़- धौली पहाड़ी के रास्ते में काजू के पेड़ दिखाई देते हैं। हालांकि आप इन्हें तोड़कर खा नहीं सकते। क्योंकि काजू के बारे में कहा जाता है कि इसके फलों की प्रोसेसिंग होती है जिससे इसका खट्टापन दूर किया जाता है फिर ये खाने लायक हो पाता है।
रास्ते में काजू के पेड़- धौली पहाड़ी के रास्ते में काजू के पेड़ दिखाई देते हैं। हालांकि आप इन्हें तोड़कर खा नहीं सकते। क्योंकि काजू के बारे में कहा जाता है कि इसके फलों की प्रोसेसिंग होती है जिससे इसका खट्टापन दूर किया जाता है फिर ये खाने लायक हो पाता है।
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