महानदी के तट पर बसा छोटा सा शहर राजिम
कभी छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र हुआ करता था। आज भी राज्य में यह
आस्था का बड़ा केंद्र है। हर साल माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि के बीच यहां विशाल
मेला लगता है जिसे राजिम कुंभ के नाम से जाना जाता है। माघ पूर्णिमा को भगवान
राजीव लोचन का जन्मदिन माना जाता है।
लोगों का मानना है कि माघ पूर्णिमा के सुबह
इस संगम में स्नान करने से लोगों की व्याघ्र-बाधाओं एवं पापों से मुक्ति मिल जाती
है। राजिम कुंभ के समापन अवसर पर
महाशिवरात्रि को भव्य शाही स्नान का आयोजन होता है। वास्तव में महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर स्थित राजिम को
छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। महानदी को चित्रत्पला गंगा भी कहते है, ये शिव
का प्रतीक है।
राजिम में कई मंदिर हैं, जो आठवीं से 14वीं सदी के मध्य
बने हुए हैं। इनमें राजीव लोचन मंदिर प्रमुख है। यह महानदी के पूर्वी तट पर बना
है। इसका निर्माण नलवंशी नरेश विलासतुंग द्वारा आठवीं सदी में करवाया गया था। यह
भगवान विष्णु का मंदिर है। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है। राजीव लोचन का मंदिर चतुर्थाकार में
बनाया गया है। इसके उत्तर में और दक्षिण में प्रवेश द्वार बने हुए हैं। एक प्रवेश
द्वार नदी के तट की तरफ से है। महामंडप के बीच में गरुड़ हाथ जोड़े खड़े हैं।
गर्भगृह
में राजीव लोचन यानी विष्णु की मूर्ति सिंहासन पर स्थित है। यह प्रतिमा काले पत्थर
की बनी चतुर्भुज आकार की है। इसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पद्म है। इसकी लोचन के नाम से पूजा
होती है। मंदिर के दोनों दिशाओं में परिक्रमा पथ और भंडार गृह बना हुआ है। महामंडप
को 12 प्रस्तर खंभों के सहारे बनाया गया है। गर्भगृह के द्वार पर दाएं बाएं और ऊपर चित्र हैं। इनपर सर्पाकार मानव
आकृति अंकित है और मिथुन की मूर्तियां हैं। मंदिर में आकर्षक मिथुन मूर्तियां दीवारों पर उकेरी गई हैं। इनके वस्त्र अलंकरण भी आकर्षक हैं।
यहां क्षत्रिय पुजारी कराते हैं पूजा - वैसे तो मंदिर का इंतजाम देखने के लिए
ट्रस्ट बना हुआ है पर राजा रत्नाकर से समय से ही राजीव लोचन मंदिर में क्षत्रिय
पुजारी मंदिर में तैनात हैं। ये जनेउ धारण करते हैं। स्तुति पाठ के लिए ब्राह्मण
पुजारी भी तैनात किए जाते हैं। पर मुख्य पूजा क्षत्रिय पुजारी ही कराते हैं। मंदिर
में प्रसाद के तौर पर चावल का निर्मित पीड़िया भी उपलब्ध होता है।
राजीव लोचन मंदिर के उत्तर दिशा में
जो द्वार है वहां से बाहर निकलने पर साक्षी गोपाल का मंदिर है। मुख्य मंदिर के चारों
ओर नृसिंह अवतार, बद्री अवतार, वामनावतार, वराह अवतार के मंदिर हैं। मंदिर के आयताकार महामंडप में कई सुंदर
मूर्तियां सजी हैं।
राजीव लोचन मंदिर के चारों कोनों पर
वामन, वराह, नृसिंह और ब्रदीनाथ जी के
मंदिर बने हैं। राजिम के दूसरे दर्शनीय
मंदिर हैं राजेश्वर मंदिर, दानेश्वर मंदिर, रामचंद्र मंदिर, पंचेश्वर महादेव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, भूतेश्वर मंदिर, राजिम तेलिन मंदिर एवं सोमेश्वर महादेव मंदिर।
मंदिर में दो शिलालेख - राजीव लोचन मंदिर के अंदर दो शिलालेख
भी हैं। शिलालेख में रतनपुर के कलचुरी नरेश जाजल्यदेव प्रथम और रत्नदेव द्वितीय की
कुछ विजयों का उल्लेख है। उनके सामंत (सेनापति) जगतपालदेव ने इस मंदिर का
जीर्णोद्धार करवाया था। शिलालेख में पंचहंस कुल रंजक राजमाल कुलामलंतिलक जगपाल देव
द्वारा राजिम में निर्मित स्थानीय रामचंद्र देवल का निर्माण करने एवं भगवान के
नेवैद्य हेतु शाल्मलीय ग्राम के दान का ज्ञापन है। लेख संस्कृत भाषा एवं देवनागरी लिपि में है। इसका आरंभ 'ओम नमो नारायणाय' से हुआ है।
कुलेश्वर महादेव मंदिर – महानदी, पैरी
और सोंढूर नदियों के संगम स्थल पर एक छोटा-सा टापू है। वहां स्थित कुलेश्वर मंदिर भगवान
शिव का देवालय है। कहते हैं ये यहां शिव आपरूपि प्रकट हुए थे। लोगों का मानना है
कि माघ पूर्णिमा के सुबह इस संगम में स्नान करने से लोगों की व्याघ्र-बाधाओं एवं
पापों से मुक्ति मिल जाती है।
लोमश ऋषि का आश्रम - राजिम में
कुलेश्वर मंदिर से लगभग 100 गज की दूरी पर दक्षिण की ओर लोमश ॠषि का आश्रम है।
यहां बेल के बहुत सारे पेड़ हैं, इसीलिए यह जगह
बेलहारी के नाम से जानी जाती है।
पंचकोशी परिक्रमा - राजिम में पंचकोसी
की यात्रा हर साल कार्तिक अग्राहन से पौष माघ तक चलती रहती है। इसके तहत श्रद्धालु
पटेश्वर महादेव, चम्पकेश्वर महादेव, ब्रह्मकेश्वर महादेव, फणिकेश्वर महादेव का
मंदिर और कोपरा गांव स्थित कर्पूरेश्वर महादेव के मंदिरों की यात्रा और दर्शन करते
हैं।