खालिस दूध की चाय - हमारी बगल वाली सीट पर एक सज्जन बैठे थे वे दूध बेचकर अपने गांव लौट रहे थे। बताया
कि यहां मैं रोज सुबह बस से दूध बेचने आता हूं और लौटते समय अपना प्रिय अखबार अमर
उजाला लेकर लौटता हूं। वे दूध 6 रुपये किलो बेचते हैं। साल 2001 में दूध का जालंधर
में भाव 20 रुपये के आसपास था। मनाली में इतना सस्ता दूध। हां जी हां। यहां दूध का
उत्पादन तो है पर खपत नहीं। दूर भेजने में खर्च ज्यादा है। इसलिए दूध सस्ता है।
हमलोग नग्गर जाने वाले स्टाप पर बस से उतर गए। यहां से नग्गर के किले तक
जाने के लिए रास्ता पदयात्रा करने वाला था क्योंकि हम कोई आरक्षित वैन लेकर नहीं
आए थे। नग्गर किले की ओर पैदल-चलते चलते चाय पीने की इच्छा हुई। एक चाय की दुकान
में रूके। तीन निहायत खूबसूरत बालिकाएं चाय की दुकान चला रही थीं। उन्होंने बताया
चाय 2 रुपये कप है। जब उन्होंने चाय बनाई तो खालिश दूध की। यानी दूध पत्नी 2 रुपये
कप। अरे भाई उपर बताया था न यहां दूध काफी सस्ता है। चाय की चुस्की साथ उन
बालिकाओं ने बताया आजकल यहां किसी दक्षिण भारत के फिल्म की शूटिंग चल रही है। हमें
उसमें एक्सट्रा का रोल करने का मौका भी मिला है। हम आगे बढ़े। सामने बोर्ड लगा था –
उरूस्वाति हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट। और हम आ चुके थे महान पेंटर, दार्शनिक, कवि
और मानवधर्मी रोरिक की दुनिया में। उरुस्वाति संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब है सुबह के तारे की रोशनी। रोरिक को भारतीय संस्कृति से अद्भुत लगाव था जो उसके पूरे जीवन और कार्यों में दिखाई देता है।
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नग्गर केसल- जो अब हिमाचल टूरिज्म का होटल है। |
रोरिक और मनाली - सुदूर रूस से आए एक कलाकार ने मनाली को अपनी साधना स्थली बनाया। 9 अक्तूबर
1874 को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में जन्मे
निकोलस के. रोरिक ने कई देशों में भटकने के बाद कुल्लू में अपना ठिकाना बनाया।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रोरिक न केवल एक महान चित्रकार ही थे बल्कि
पुरातत्ववेत्ता, कवि, लेखक, दार्शनिक और
शिक्षाविद् थे। वे हिमालय में एक इंस्टीट्यूट स्थापित करना चाहते थे। इस उद्देश्य
से उन्होंने राजा मण्डी से 1928 में हॉल एस्टेंट नग्गर खरीदा।
कुल्लू की प्राचीन
राजधानी नग्गर है और नग्गर किले के ऊपर है रोरिक आर्ट गैलरी । ये गैलरी मंगलवार से रविवार तक खुली होती है सुबह 10 से 5 बजे तक। सोमवार बंद। संग्रह इतना शानदार है देखने में घंटों लग जाएं। यहां रोरिक का साहित्य भी उपलब्ध है। रोरिक नेहरू जी और राजकपूर के दोस्त थे।
नग्गर किला जो
प्राचीन काठकूणी शैली का एक अद्भुत नमूना है। अब यह हिमाचल पर्यटन
निगम का होटल है। होटल के ऊपर त्रिपुरा सुंदरी का पैगोडा शैली के मंदिर बना है।
इसके ऊपर रोरिक की गैलरी। इसमें रोरिक के अद्भुत चित्र उसी पुरातन घर में
प्रदर्शित हैं जिस में वे कभी वे रहा करते थे। इस छोटे से घर में निचली मंजिल में
आर्ट गैलरी है । ऊपर की मंजिल में रोरिक का आवास है जिसे संरक्षित किया गया है। रोरिक
ने 13 दिसम्बर 1947 को यहीं अंतिम सांस ली।
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निकोलस के रोरिक। |
रोरिक की पत्नी एलीना लेवानोवना भी लेखिका थीं। उनके बड़े बेटे यूरी निकोलेविच (1902-1960)
प्रोफेसर थे। दूसरे बेटे स्वेतोस्लेव रोरिक भी चित्रकार रहे हैं जिनके बनाए जवाहर
लाल नेहरू तथा इन्दिरा गांधी के पोट्रेट संसद भवन दिल्ली में लगे हैं। वे बेंगलुरू में रहते थे। उन्होंने हिंदी फिल्मों की नामचीन अभिनेत्री देविका रानी से विवाह
किया था। उन दोनों की बेंगलुरू में सैकडो एकड़ जायदाद और अन्य संपत्तियां थीं। स्वेतोस्लेव और देविका रानी की कोई संतान नहीं थी। देविका रानी की 9
मार्च 1994 को मृत्यु की बाद उनकी अकूत धन संपदा को लेकर काफी विवाद हुआ।
नग्गर से लौटते हुए हमें कई सेब के बाग मिले। कौतूहल था सेब देखकर। हम करीब गए। पेड़ों पर लदे सेब को छूकर देखा। पता चला रायल और गोल्डेन वेराइटी के सेब की खेती यहां होती है। बाग की मालकिन ने हमें पास बुलाया और कुछ सेब उपहार में दिए। जिन्हें लेकर हमें अतीव प्रसन्नता हुई।

- विद्युत प्रकाश मौर्य ( जुलाई 2001)
Abhay Kumar - I liked the place Naggar very much..a very beautiful place and the work done is simply unbelievable...
(MANALI, HIMACHAL, KULLU, VYAS RIVER, HIDIMBA DEVI )
(MANALI, HIMACHAL, KULLU, VYAS RIVER, HIDIMBA DEVI )
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