रोहतांग के रास्ते में नास्ता ( जुलाई 2001) |
संयोग
से अगले दिन मौसम खिला खिला था। मनाली बस स्टैंड के पास गली में एक धर्मशाला है।
यह मनाली में रहने की सबसे सस्ती जगह है। इस धर्मशाला में एक भोजनालय है जहां सबसे
किफायती दरों पर भोजन और नास्ता मिल जाता है। हम जितने दिन मनाली में रहे, सुबह के
नास्ते में यहीं पर पराठे खाते रहे। आठ रुपये में एक पराठा।
हमारी
रोहतांग के लिए यात्रा सुबह नौ बजे आरंभ हो गई। व्यास नदी को पार करने के बाद
चढ़ाई भरा रास्ता। यही रास्ता केलांग और लेह की ओर चला जाता है। जैसे जैसे सफर आगे बढ़ा चढाई बढ़ती गई और साथ में ठंड भी बढ़ती गई। थोड़ी दूर जाने के
बाद जूते और वर्दियों की दुकाने आईं। हमारे टैक्सी ड्राइवर ने वहां गाड़ी रोक दी। हम सबने अपने अपने नाप के बूट किराए पर लिए।
साथ ही लंबे लंबे ओवरकोट भी। रोहतांग में ठंड बढ़ जाती है बर्फ भी गिरती है इसलिए
पूरी तैयारी से जाना पड़ता है। बूट और ओवरकोट धारण करने के बाद हम सबका रंग रूप
बदल गया। आगे व्यास नाला आया। यह रोहतांग से 20 किलोमीटर पहले है। ठंड बढ़ चुकी
थी। पर कहीं बर्फ नहीं दिखाई दे रही थी।
हमने एक रेस्टोरेंट में बैठकर नास्ता
किया। आसपास की वादियां मनोरम थीं। फिर शुरू हुआ आगे का सफर। वैन वाले ने आराम से
घुमाते हुए रोहतांग पहुंचा दिया। हालांकि रोहतांग में हमें दूर दूर तक बर्फ नहीं
दिखाई दी। यहां गोलाकार बना हुआ व्यास कुंड जरूर दिखाई दिया। तमाम महिलाएं रंग
बिरंगे हिमाचली ड्रेस लेकर घूम रही थीं। इन परिधानों को किराये पर लेकर लोग
रोहतांग में तस्वीरें खिंचवाते हैं।
लेह के लिए बस सेवा - रोहतांग दर्रा हिमालय पर्वत का एक प्रमुख दर्रा हैं। यह मनाली से लद्दाख प्रदेश के लेह जाने के मार्ग में भी पड़ता है। रोहतांग दर्रे से लेह की दूरी तकरीबन 420 किलोमीटर है। दिल्ली से लेह के लिए सीधी बसें भी जाती हैं, जो मनाली, रोहतांग, केलांग होती हुई जाती हैं। ऐसी ही एक बस मुझे मनाली में दिखाई दे गई।
करीब 13,050 फीट (समुद्र तल से 3978 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे का पुराना नाम 'भृगु-तुंग' था, 'रोहतांग' नया नाम है। मेरी बहन ने बताया कि रोहतांग में रात में बस ट्रक या वाहन नहीं चलते हैं। कहा जाता है यहां रात में मरे हुए लोगों आत्माएं भटकती हैं। इसलिए यहां रात में रुकना खतरनाक माना जाता है। रोहतांग का रास्ता मई से नवंबर तक ही खुला रहता है। इस दौरान हिमाचल रोडवेज की बसें केलांग तक जाती हैं। नेशनल हाईवे घोषित मनाली केलांग मार्ग का रख रखाव सीमा सड़क संगठन ( बीआरओ) के जिम्मे है। भारी बर्फबारी, तेज बर्फीली हवाएं और शून्य से नीचे तापमान के कारण सड़क की देखभाल मुश्किल है।
करीब 13,050 फीट (समुद्र तल से 3978 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे का पुराना नाम 'भृगु-तुंग' था, 'रोहतांग' नया नाम है। मेरी बहन ने बताया कि रोहतांग में रात में बस ट्रक या वाहन नहीं चलते हैं। कहा जाता है यहां रात में मरे हुए लोगों आत्माएं भटकती हैं। इसलिए यहां रात में रुकना खतरनाक माना जाता है। रोहतांग का रास्ता मई से नवंबर तक ही खुला रहता है। इस दौरान हिमाचल रोडवेज की बसें केलांग तक जाती हैं। नेशनल हाईवे घोषित मनाली केलांग मार्ग का रख रखाव सीमा सड़क संगठन ( बीआरओ) के जिम्मे है। भारी बर्फबारी, तेज बर्फीली हवाएं और शून्य से नीचे तापमान के कारण सड़क की देखभाल मुश्किल है।
रोहतांग में व्यास कुंड के सामने पिताजी के साथ। |
ब्यास नदी का उदगम - रोहतांग दर्रे से ब्यास नदी का उदगम हुआ है। हिन्दू ग्रंथ महाभारत लिखने वाले महर्षि वेद व्यास जी ने यहां लंबे समय तक तपस्या की थी। इसी लिए इस स्थान पर व्यास मंदिर बना हुआ है। रोहतांग में यहां पर व्यास नदी का उदगम स्थल है और यहीं पर वेद ब्यास ऋषि का मंदिर भी बना हुआ है।
कैसे पहुंचे - रोहतांग
पास जाने के लिए मनाली-रोहतांग रास्ते में से सर्दी में पहनने वाले कोट और जूते
किराये पर ले लेना चाहिए क्योंकि वहां बर्फ होगी तो आप को बिना इनके वहां घूमने
में परेशानी आएगी। आप स्पेशल टैक्सी किराये पर करने की बजाय केलांग की तरफ जाने
वाले बसों में बैठकर भी रोहतांग जा सकते हैं।
रोहतांग में दिन भर अस्थायी दुकानें चलाने वाले लोग इसी तरह बस में बैठकर रोज आते जाते हैं। शाम को वापस घर लौट जाते हैं। लोग यहां रंग बिरंगे हिमाचली परिधान में तसवीरें भी खिंचवाते हैं। इन ड्रेस के किराये से उनके घर का चूल्हा जलता है। गरीब महिलाएं महज 10 रुपये में ड्रेस किराये पर देने की आरजू मिन्नत करती नजर आईं।
रैला फॉल और नेहरु कुंड - रोहतांग से लौटते समय रास्ते में हम रैला फॉल के पास रुके। ये एक छोटा सा झरना है पर नजारा बड़ा दिलकश है। मनाली से रोहतांग के रास्ते में एक नेहरू कुंड नामक जगह है। कहा जाता है कि यहां के सोते का पानी पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु पीने के लिए मंगवाते थे।
रोहतांग में दिन भर अस्थायी दुकानें चलाने वाले लोग इसी तरह बस में बैठकर रोज आते जाते हैं। शाम को वापस घर लौट जाते हैं। लोग यहां रंग बिरंगे हिमाचली परिधान में तसवीरें भी खिंचवाते हैं। इन ड्रेस के किराये से उनके घर का चूल्हा जलता है। गरीब महिलाएं महज 10 रुपये में ड्रेस किराये पर देने की आरजू मिन्नत करती नजर आईं।
रैला फॉल और नेहरु कुंड - रोहतांग से लौटते समय रास्ते में हम रैला फॉल के पास रुके। ये एक छोटा सा झरना है पर नजारा बड़ा दिलकश है। मनाली से रोहतांग के रास्ते में एक नेहरू कुंड नामक जगह है। कहा जाता है कि यहां के सोते का पानी पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु पीने के लिए मंगवाते थे।
- ---- विद्युत प्रकाश मौर्य ( जुलाई 2001 का सफर)
(MANALI, HIMACHAL, KULLU, VYAS RIVER, LEH, LADDAKH, HIDIMBA DEVI )
(MANALI, HIMACHAL, KULLU, VYAS RIVER, LEH, LADDAKH, HIDIMBA DEVI )
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