09 सितंबर 2014 - डल गेट से राजभवन। आठ किलोमीटर की दूरी। मेरे लिए
आठ किलोमीटर पैदल चलना पीट्ठू बैग लेकर समान्य सी बात थी। पर अनादि और माधवी के
लिए थोडा मुश्किल था। उस दौर में जब कुछ दिन से पेट मेंठीक से अन्न का दाना भी
नहीं गया हो। पर चलना तो था ही। झेलम नदी से लगातार आए पानी के कारण कोनाखान रोड
में कई जगह बड़े-बड़े गड्ढे हो गए थे। एक आटो रिक्शा और एक कार इस गड्ढे में समा
गए थे। कई पुराने मकानों की दीवारें दरक गई थीं। हमारे होटल के पास एक कश्मीरी
परिवार का छोटा सा एक मंजिला घर था। उस परिवार ने जरूरी सामान के साथ अपने घर की
छत पर शरण ली थी। वे उसी छत पर स्टोव जलाकर अपने परिवार का खाना बना रहे थे। वहीं
सो रहे थे और पानी घटने का इंतजार कर रहे थे।
डल गेट से हमारा रास्ता बदल जाता है। हम एक संकरे रास्ते से बाजार से
होकर आगे बढ़ रहे हैं। हमारे समूह में बड़ी संख्या में महिलाएं हैं इसलिए हमलोग
धीरे-धीरे चल रहे हैं।
आगे एक मस्जिद आती है। बाहर भीड़ है। मस्जिद की ओर से लोगों को चाय और हल्का फुल्का नास्ता बांटा जा रहा है। पर हमारी चाय पीने की कोई इच्छा नहीं है इसलिए हम आगे बढ़ते जाते हैं। आफताब वानी के परिवार के लिए श्रीनगर शहर जाना पहचाना है। अचानक सड़क पर वानी साहब के मित्र मिल जाते हैं। वे स्थानीय पत्रकार हैं।
वे बताते हैं कि पूरा श्रीनगर शहर तबाह हो चुका है। उन्होंने खुद अपना घर छोड़कर किसी दोस्त के घर में शरण ले रखी है। जब हमने बताया कि हमलोग राजभवन के हेलीपैड जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि वहां पहले से ही बहुत बड़ी भीड़ जमा है कई दिनों तक आपका नंबर नहीं आने वाला है। उनकी बातें सुनकर हमारे मन में निराशा बढ़ गई। पर हमारे पास आगे बढ़ते जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हमारे आगे पीछे बड़ी भीड़ चली आ रही थी। मैं बेटे अनादि का हाथ मजबूती से पकड़ कर आगे बढ़ रहे थे। इतनी भीड़ में बिछुड़ जाने का खतरा बना हुआ था।
- विद्युत प्रकाश मौर्य --- vidyutp@gmail.com
आगे एक मस्जिद आती है। बाहर भीड़ है। मस्जिद की ओर से लोगों को चाय और हल्का फुल्का नास्ता बांटा जा रहा है। पर हमारी चाय पीने की कोई इच्छा नहीं है इसलिए हम आगे बढ़ते जाते हैं। आफताब वानी के परिवार के लिए श्रीनगर शहर जाना पहचाना है। अचानक सड़क पर वानी साहब के मित्र मिल जाते हैं। वे स्थानीय पत्रकार हैं।
वे बताते हैं कि पूरा श्रीनगर शहर तबाह हो चुका है। उन्होंने खुद अपना घर छोड़कर किसी दोस्त के घर में शरण ले रखी है। जब हमने बताया कि हमलोग राजभवन के हेलीपैड जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि वहां पहले से ही बहुत बड़ी भीड़ जमा है कई दिनों तक आपका नंबर नहीं आने वाला है। उनकी बातें सुनकर हमारे मन में निराशा बढ़ गई। पर हमारे पास आगे बढ़ते जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हमारे आगे पीछे बड़ी भीड़ चली आ रही थी। मैं बेटे अनादि का हाथ मजबूती से पकड़ कर आगे बढ़ रहे थे। इतनी भीड़ में बिछुड़ जाने का खतरा बना हुआ था।
- विद्युत प्रकाश मौर्य --- vidyutp@gmail.com
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