( जन्नत में जल प्रलय
- 47 )
दस सितंबर को ये नियम बनाया था कि महिलाओं और बच्चों को पहले लिफ्ट करेंगे उनके साथ
मौजूद परिवार के पुरूष सदस्यों को नहीं, पर 11 तारीख को ये नियम बदल दिया। आज
महिलाओं के साथ मौजूद पूरे परिवार को लिफ्ट किया जा रहा था। बीएसएफ के अस्सिटेंट कमांडेट के इस दो
रंगे नियम के शिकार हमारे जैसे सैकड़ो लोग थे जिन्होंने अपने परिवार को एक दिन
पहले भेज दिया था। आज परिवार के साथ आए लोगों को पहले लिफ्ट किया जा रहा था। यहां
तक कि एक महिला के साथ अगर पांच लोग हैं तो उनका नंबर भी पहले आ जा रहा था। इन
इंतजामात में जो लोग अकेले थे उनकी निराशा बढ़ती जा रही थी। कई लोग जाकर ये बता
रहे थे कि हमने अपने पत्नी और बच्चों को पहले भेज दिया है, पता नहीं वे किस हाल
में कहां होंगे, आप हमारी लिफ्टिंग कब कराओगे पर उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी।
इससे लोगों में निराशा बढ़ती जा रही थी।
कई दिनों बाद आई बिजली से मिली राहत - 11 सितंबर की शाम होने को आई। मैंने अपना
बैग हेलीपैड के ऊपर बने वीआईपी गेस्ट रूम में रख दिया जहां दिल्ली के कुछ परिवार
के लोग अपने सामान के साथ बैठे थे। एक राहत की बात थी कि राजभवन इलाके में बिजली आ
गई थी। हालांकि अभी पूरे शहर में बिजली नहीं आई थी। हमने अपना मोबाइल चार्ज में
लगा दिया। हालांकि नेटवर्क नहीं आ रहा था, इसलिए बात नहीं हो सकती थी। पर ये
उम्मीद थी मोबाइल चार्ज रहेगा तो जब भी नेटवर्क मिलेगा अपनों से बात करके अपने
बारे में बता सकेंगे।
इस गेस्ट रूम में दिल्ली का एक परिवार मिला जिसमें एक लड़की है सारिका।
दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक की छात्रा। मैं निराश हो चला था, ये पता नहीं था
इस बदइंतजामी में मेरा कल भी नंबर आएगा या नहीं। मैंने सारिका को अपनी पत्नी माधवी
का नंबर दिया और अपने कुछ खास दोस्तों के नंबर एक कागज पर लिख कर दिए। मैंने
सारिका से कहा आप परिवार के साथ हो आपका नंबर जल्दी आ जाएगा। जब दिल्ली पहुंचना तो
मेरी पत्नी माधवी को मेरे अभी तक हेलीपैड पर फंसे होने की जानकारी देना। साथ
उन्हें मेरे कुछ खास दोस्तों के फोन नंबर देना, जो दिल्ली में बीएसएफ मुख्यालय या
रक्षा मंत्रालय में बात कर मेरी लिफ्टिंग कराने की कोशिश करेंगे।
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मेरा कच्चा और पक्का टोकन। थोड़ी उम्मीद। |
हमलोग इस चिंता में भी थे कि दिनभर नंबर लगाकर बैठे रहे और जो पर्चियां
हमें जारी की गईं उसकी कल वैधता रहेगी या नहीं। इस पर्ची से हालांकि आज किसी की भी
लिफ्टिंग नहीं हुई। हालांकि 11 सितंबर को करीब 800 लोगों को लिफ्टिंग हुई। रात को
कई लोगों की सलाह का असर हुआ बीएसएफ ने हैलीपैड पर मौजूद सारे लोगों को लाइन लगाने
को कहा। रात 8 बजे के बाद सब लोग लाइन में लगे। कल की लिफ्टिंग के लिए सबको
पर्चियां दी जा रही थीं। साथ ही ये भी कहा गया कि जब तक हेलीपैड के अंदर मौजूद
लोगों की लिफ्टिंग नहीं हो जाती, गेट खोल कर सड़क से लोग अंदर नहीं बुलाए जाएंगे।
हम भी लाइन में लगे। 50 नंबर समह से पर्चियां मिलनी शुरू हुईं। एक समूह में 28 से
30 लोग थे। मेरा नंबर था 90/11 अब मैं 90 नंबर समूह में था यानी 40 वें उड़ान में मेरा नंबर आने वाला
था। मैं आश्वस्त नहीं था कि 12 सितंबर की शाम तक 40 उडाने हो जाएंगी और मेरा नंबर
आ जाएगा। क्योंकि इसी बीच में महिलाएं और वीआईपी लोग भी आते थे लिफ्टिंग के लिए।
लेकिन कूपन हाथ में आने के बाद एक उम्मीद जगी कि अब शायद यहां से निकलना हो सकेगा।
इस कूपन के साथ सभी लोगों को आधे पैकेट बिस्कुट मिले, रात में खाने के लिए।
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