( जन्नत में जल प्रलय - 58 )
देखते ही देखते होटल की दो मंजिलें डूब गईं
दिल्ली के पालम में राजनगर पार्ट 2 में रहने वाले दिनेश यादव, निर्मल
यादव के परिवार के सात सदस्य और अड़ोस पड़ोस के लोगों के साथ 25 लोगों का समूग
श्रीनगर घूमने गया था। बेटे दिनेश यादव, बेटी सारिका के साथ सभी लोग राजबाग इलाके
के होटल ग्रैंड हिल में ठहरे थे। सात सितंबर की सुबह के 4 बजे थे जब इनके होटल में
अचानक तेज गति से पानी आया।
सारिका बताती हैं कि पानी की तेज गति से आ रही आवाज किसी ट्रेन की तरह थी
जो हमें डरा रही थी। देखते ही देखते होटल दो मंजिलें डूब गईं। होटल में मौजूद सभी
लोगों ने भाग कर तीसरी मंजिल पर जाकर शरण ली। अगले दिन यानी 7 सितंबर की शाम होते
होते खाना पानी सब कुछ खत्म हो गया। हालात खराब होने लगे। अब हमारा परिवार यहां से
निकलने की कोशिश में लग गया। इसी परिवार के मोहित बताते हैं कि हमलोगों ने अपने
होटल से 10 फीट दूर एक इमारत तक जाने के लिए लकड़ी के फट्टों से एक अस्थायी पुल
बनाया। इस पुल के जरिए जैसे तैसे उस इमारत में पहुंचे और वहां से कुछ खाने पीने का
सामान लेकर आए। किसी तरह अगले तीन दिन इसी होटल में काटे।
इस दौरान हमलोगों ने खुद
किसी तरह खाना बनाया। खुद भी खा रहे थे और होटल वाले को भी हमलोग खिला रहे थे। पर
इस दौरान होटल वाले का व्यवहार खराब होता गया। तीन दिन बाद जब पानी कुछ नीचे उतरता
हुआ नजर आया तब यहां से निकलने की जुगत में लगे। हालांकि कई लोग इस माहौल में
निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। लेकिन हम समझ चुके थे कि जैसे भी हो यहां
से निकलना ही बेहतर होगा। हमने चादर और बेडशीट को काटकर रस्सियां बनाई और इसकी मदद
से पानी से होकर किसी तरह बाहर निकले।
सारिका बताती हैं कि बाहर निकलने के बाद हम 25 लोग 10 किलोमीटर से ज्यादा
पैदल चलते हुए राजभवन पहुंचे। यहां से श्रीनगर एयरपोर्ट तक जाने के लिए हेलीकाप्टर
से लिफ्टिंग हो रही थी। 12 सितंबर की दोपहर हमारी एयर लिफ्टिंग हुई। तब जाकर अगले
दिन दिल्ली पहुंच सके।
जंगलों से होकर पहुंचे राजभवन
दिल्ली के सीलमपुर इलाके के रहने वाले आकिल कुरैशी अपने तीन दोस्तों के
साथ एक शादी में शामिल होने के लिए श्रीनगर गए थे। सैलाब के कारण शादी तो स्थगित
हो गई पर ये दोस्त सैलाब में फंस गए। आकिल निशात बाग के पास एक होटल में रूके थे।
सात सितंबर की रात जब पानी बढ़ने लगा तो इन्होंने होटल छोड़ दिया। इसके बाद अपने
एक रिश्तेदार के घर पहुंचे जो उंची पहाड़ी पर था। तीन दिन यहां गुजराने के बाद जब
उन्हें जानकारी मिली की राजभवन से एयर लिफ्टिंग हो रही है तब वे 11 सितंबर को
राजभवन के लिए पैदल चल पड़े। पानी नहीं था, पहाड़ी रास्ते में जंगली जानवरों का डर
था। राजभवन के आसपास जंगलों में भालू भी हैं। पर डर के आगे जीत है, इस संकल्प के
साथ चारों दोस्त चलते चलते राजभवन पहुंच गए। 12 सितंबर की सुबह 9.30 बजे उनकी
हेलीकाप्टर से लिफ्टिंग हुई और श्रीनगर एयरपोर्ट पर पहुंचे।
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