कई दिन से लिफ्टिंग का इंतजार और मैं भूखा प्यासा। आखिर करता भी क्या। एक
गुजराती भाई बीएसएफ के जवानों को बच्चों का दूध बनाने में मदद कर रहे थे। मुझे भी
लगा कि जब तक यहां फंसा हूं और जब शरीर में ताकत है मुझे भी इस व्यवस्था में थोडी
समाजसेवा ही करनी चाहिए। मुझे याद आया कि कालेज के दिनों में राष्ट्रीय सेवा योजना
का सक्रिय स्वयंसेवक था। मैं छात्र जीवन में राष्ट्रीय युवा योजना (एनवाईपी) में देश के कई राज्यों
में राहत शिविरों जा चुका हूं।
1991 में भूकंप के बाद उत्तरकाशी में राहत शिविर में गया था। मैंने बीएसएफ के
कुछ जवानों से बात की। मैं भी आपकी मदद करना चाहता हूं। यहां एक काम था जो
हेलीकाप्टर श्रीनगर एयरपोर्ट से आ रहे थे उनके राहत सामग्री भर कर आ रही थी
जिन्हें हेलीकाप्टर से उतारकर हेलीपैड के हैंगर में बने स्टोर में रखना होता था। कुछ
बीएसएफ के जवान दौड़कर हेलीकाप्टर तक जाते थे। राहत सामग्री के तौर पर पानी की
बोतलें, पानी के पाउच, नमकीन और बिस्कुट के पैकेट, भेलपुरी के पैकेट आ रहे थे।
मैं भी बीएसएफ के जवानों के साथ दौड़ता हुआ हेलीकाप्टर तक जाता। कभी
पंजीरी की बोरियां, कभी पानी की बोतलों की पैकेट उठाकर उन्हें सिर पर लादकर दौड़ता
हूआ हेलीपैड के हैंगर की तरफ आता। हालांकि कई दिनों से भूखा होने के कारण शरीर में
ज्यादा ताकत नहीं बची थी। पर इस तरह का काम करके दिल को तसल्ली मिल रही थी। जब
हेलीकाप्टर हेलीपैड पर उतरता है उस समय उसके पंखों से बहुत तेज हवा आती है। वह हवा
आपकी टोपी और पगड़ी को उडाने के लिए काफी है। हल्का फुल्का आदमी इस हवा में स्थिर
नहीं रह पाता। वायु सेना का ग्राउंड मैनेजमेंट देख रहे एक अधिकारी हर बार इस हवा
के झोंके में अपना संतुलन खोने लगते थे। उन्हें रोके रखने के लिए कई बार दो जवान
उन्हे सहारा देते थे। पर उनकी ड्यूटी हेलीकाप्टर के पास रहने की थी। वे ही हर बार
बताया करते थे कि ये हेलीकाप्टर कितने लोगों को लेकर जाएगा।
हेलीकाप्टर से राहत सामग्री उतारने की स्वयंसेवा करते समय मैंने देखा कि
स्टोर में खाने पीने की सामग्री का अच्छा खासा स्टाक मौजूद था। भेलपुरी, पंजीरी के
पैकेट और पानी की बोतलें और पाउच भी। पर इन पैकेट को भूख से बिलख रहे बच्चे, बूढ़े
और बुजुर्गों को बांटने में कंजूसी बरती जा रही थी। कुछ अधिकारी तो सिर्फ रजिस्टर
में स्टाक भरने में ही व्यस्त थे। पुलिस और सेना के अधिकारी तो अपनी पेट पूजा करके
मस्त थे। पर लिफ्टिंग का इंतजार कर रहे लोगों को भूखे पेट रहने को मजबूर थे।
46 घंटे से भूखे थे कमल किशोर - दस सितंबर की शाम को मुझे जम्मू एंड कश्मीर पुलिस के क्राइम ब्रांच में काम करने वाले अधिकारी कमल किशोर मिले। बताया किसी तरह जान बचाकर हेलीपैड पहुंच पाया हूं। दो दिन से अन्न का एक दाना नहीं मिला। करीब पिछले 46 घंटे से वे भूखे थे। उनकी दास्तां सुनकर मेरी दिल भर आया। मेरे बैग में एक बिस्कुट का पैकेट था मैंने सम्मान के साथ उन्हें सौंपते हुए कहा- लिजिए ये आपके लिए ही है। वे भावुक हो गए।
46 घंटे से भूखे थे कमल किशोर - दस सितंबर की शाम को मुझे जम्मू एंड कश्मीर पुलिस के क्राइम ब्रांच में काम करने वाले अधिकारी कमल किशोर मिले। बताया किसी तरह जान बचाकर हेलीपैड पहुंच पाया हूं। दो दिन से अन्न का एक दाना नहीं मिला। करीब पिछले 46 घंटे से वे भूखे थे। उनकी दास्तां सुनकर मेरी दिल भर आया। मेरे बैग में एक बिस्कुट का पैकेट था मैंने सम्मान के साथ उन्हें सौंपते हुए कहा- लिजिए ये आपके लिए ही है। वे भावुक हो गए।
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