10 सितंबर को हेलीपैड पर अपनी बारी के लिए माधवी और अनादि बार बार दौड़
लगा रहे थे। मुझे ये उम्मीद थी वे लोग लाइन में सबसे आगे लगे हैं तो उनका नंबर जल्द ही आ
जाएगा। ये सोचकर मैं उनसे विदाई लेकर भीड़ से दूर इधर उधर विचरण कर रहा था।
हेलीपैड के करीब जाने वाले मर्द लोगों पर जम्मू कश्मीर पुलिस लाठियां बरसा रही थी।
सुबह के तीन घंटे तो सचिवालय कर्मचारियों के आंदोलन में बर्बाद हो ही गया था।
दोपहर के तीन बजे थे। एक बार मैं हेलीपैड पर लाइन लगाए महिलाओं और बच्चों
के पास गया। ढूंढते ढूंढते मेरी नजर गई तो देखा माधवी और अनादि वहीं खड़े हैं
निराश और असहाय से। दिल्ली की रिचा और कई हमारे परिचितों की लिफ्टिंग हो गई थी पर
माधवी और अनादि का अभी तक नंबर नहीं आया था। अनादि ने बताया कि हमलोग कई बार लाइन
में सबसे आगे होते हैं। अपना बैग लिए दौड़कर हेलीकाप्टर तक जाते हैं। पर दूसरे लोग
चढ़ जाते हैं। हमारा नंबर नहीं आता हम लौट आते हैं। फिर बीएसएफ वाले भिंडर अंकल
हमें धक्का देकर पीछे भेज देते हैं। अपनी बारी के लिए दौड लगाते लगाते माधवी और
वंश थक गए थे। वे बोले लगता है हमारा आज नंबर नहीं आएगा। हमने कहा थोड़ा धैर्य
रखो, क्या पता शाम ढलने तक नंबर आ ही जाए।
अनादि एक बार फिर दौड़ कर मेरे पास आया। वह गले लगकर रोने लगा। बोला-
नहीं पापा मैं आपको यहां अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा। मैंने एक बार फिर अपने नन्हें
जिगर के टुकड़े को समझाने की कोशिश की। बेटा चले जाओ दिल्ली। मेरा भी नंबर आएगा औ
मैं भी आ ही जाउंगा पीछे से। अनादि ने मेरे गालों पर अत्यंत भावुक होकर प्यार
किया। मुझे भी प्रत्युतर में ऐसा ही करने को कहा। पिता पुत्र का भावुक होकर यूं
बिछुड़ना। मैं फट पड़ा और बहुत ऊंचाई पर रोने लगा। पर ऐसा करना ठीक नहीं था। आंसू
पोंछ बेटे को समझाया।
बार बार पीछे की ओर देखता हूं अनादि एक बार फिर जाकर अपनी
लाइन में लग गया कि मेरा नंबर शायद आज आ ही जाए। मां बेटे के बार फिर दौड़ लगाने
लगे। दिन भर के संघर्ष के बाद आखिरकार शाम के पांच बजे के बाद एक हेलीकाप्टर में
माधवी और अनादि भी बैठने में सफल हो गए। अनादि ने बताया कि वे जिस हेलीकाप्टर में
बैठे उसका नंबर था ZP –
5179 था।
वायुसेना के एमआई 17 हेलीकॉप्टर के को पायलट ने सभी लोगों का नाम पूछकर अपनी रिकॉड में दर्ज किया। कोई
दस मिनट का सफर रहा होगा जब ये हेलीकॉप्टर श्रीनगर शहर के बाढ़ से घिरे तमाम
मुहल्लों को पार करता हुआ वायु सेना के एयरपोर्ट पर पहुंच गया। अनादि को
हेलीकॉप्टर से श्रीनगर शहर के पानी में डूबे हुए घर दिखाई दे रहे थे। पर ये सुकुन
था कि कई दिन से आपदा में घिर हमलोग अब बाहर निकल पाने में सफल हो गए हैं। पर मेरे
पापा, पापा तो अभी तक वहीं फंसे हुए ही हैं। आखिर उनका नंबर कब आएगा।