सात सितंबर की रात होटल रिट्ज में देश भर से
आए 250 से अधिक लोग अपने अपने कमरे में सो रहे थे। अचानक रात 12 को बजे महिलाओं के चीखने की आवाजें आने
लगीं, झेलम का पानी सड़क पार कर हमारे होटल में
तेज शोर के साथ घुस रहा था। हमें लगा कि हम टाइटेनिक जहाज पर सवार हैं और यह हमारी
आखिरी रात है।
रात 12 बजे से शुरू होने वाला पानी अगले दिन यानी 8 सितंबर को शाम को
पांच बजे तक सड़क से ऊपर होकर हमारे रिट्ज होटल के परिसर में भरता रहा। शाम को पांच
बजे पानी सड़क के ऊपर से निकलकर आना बंद हो गया। हम सबने थोड़ी राहत की सांस ली।
इससे ये अनुमान लगाया गया कि झेलम का गुस्सा अब कम हो रहा है। यानी झेलम दरिया का जल
स्तर घट रहा है तभी पानी का स्तर हमारे इलाके में भी कम हो रहा है। पर खतरा टला
नहीं था।
आठ तारीख की सारी रात भी जागते हुए गुजरी। जिन्होंने पिछली रात खौफ में
जगते हुए गुजारी थी उनकी आंखों में नींद कहां थी। सभी 250 लोग अपने कमरे में जाकर
बिस्तर पर सोने से कतरा रहे थे।
हमने अनादि को सुलाने के लिए थोड़ी देर सोने का
नाटक किया। इस खौफ की घड़ी में बेटे ने धैर्य नहीं खोया था। देश भर से आए लोगों के
बीच वह घुलमिल कर हंसता खिलखिलाता नजर आ रहा था। पर दिन भर लोगों की तरह तरह की
बातें सुनने वाले अनादि के मन भी आशंकाएं भर गई थी। रात को सोते समय बेटे ने पूछा
पापा क्या हमलोग इस होटल में सेफ( सुरक्षित) हैं। मैंने कहा- हां बेटा बिल्कुल
सुरक्षित हैं। मैं जानता हूं कि मेरा उत्तर बिल्कुल झूठा था। सिर्फ ये तसल्ली देने
के लिए था कि बेटे को नींद आ जाए। उसके मन में मेरी तरह कोई खौफ न हो। वह लगातार
जगने के कारण बीमार न पड़े। बेटे से ज्यादा हम खौफजदा थे। बेटे के सो जाने के बाद
हम फिर सारी रात होटल की लॉबी में घूमते हुए रहे। अंधेरे में एक दूसरे से बातें
करते हुए। बीच बीच में कमरे में जाकर बेटे
को देख आते थे कि वह ठीक से सो रहा है।
इस रात को सामने से पानी तो नहीं आ रहा था पर पानी पीछे से यानी डल झील
की तरफ से हमारे होटल में आने लगा। धीरे धीरे डल झील का जल स्तर बढ़ता जा रहा था। हमारी
नजर आसपास के होटलों की सीढ़ियों दीवारों और पेड़ पौधों पर थी जो धीरे धीरे जल
स्तर बढ़ने के कारण डूबते जा रहे थे। सबके चेहरे पर खौफ था। चार मंजिलों वाले होटल
का आधार तल खाली करा लिया गया था। पर सारा इलाका जलमग्न हो चुका था।
खतरा अभी टला नहीं था...
लगातार बढ़ रहे पानी के बीच डल झील के दायरे में अवैध कब्जा कर बनाए गए
कच्ची नींव वाले होटलों के कभी भी जमींदोज हो जाने का खतरा था। देश भर से जुटे 250
लोगों की जान सांसत में थी। सबके मन में डर समाया हुआ था, मानो हम किसी टायटेनिक
जहाज पर सवार हों, और कहीं ये हमारी आखिरी रात न साबित हो। सुनने में आ रहा था
सारा शहर डूब चुका है। लेकिन सबके मन में एक ही सवाल था कि आखिर यहां से निकल कर
जाएं तो कहां। रामपुर के मोहम्मद मसूद भाई तो आठ तारीख की सुबह ही होटल खालीकर
कहीं और चलने की सलाह दे रहे थे। पर उनकी सलाह किसी ने नहीं मानी।
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विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com
जन्नत में जल प्रलय की पहली कड़ी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
(HOTEL RITZ, KASHMIR, FLOOD )
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