(पहियों
पर जिंदगी 35)
27 अक्तूबर
1993 – सुबह हमारी ट्रेन
देहरादून पहुंच गई है। तब उत्तराखंड नहीं बना था। लेकिन सन 2000 के बाद देहरादून
अलग राज्य उत्तराखंड की राजधानी है। देहरादून रेलवे
स्टेशन सुंदर और साफ सुथरा है। पर यहां कुछ चुनी हुई रेलगाड़ियां ही गुजरती हैं।
अक्तूबर खत्म हो रहा है इसलिए एक हल्की सी सर्दी आ चुकी है। हमारे पास ठंडे वस्त्र
नहीं हैं। देहरादून नए रेल यात्रियों का ज्वाएनिंग स्टेशन है। यहां कई नए यात्री
आए तो पुराने यात्री रुखसत हुए। सुबह रेलवे स्टेशन पर नास्ते बाद सदभावना रैली शहर
में रवाना हुई।
दोपहर का
कार्यक्रम डीएवी कालेज देहरादून में था। देहरादून ज्वाएनिंग स्टेशन के कारण मेरे पास दफ्तर
के काम का दबाव था इसलिए मैं रैली में नहीं जा सका। यहां रेल यात्रा में शामिल होने काफी नए साथी आए। दिन में दफ्तर के लिए स्टेशनरी
खरीदने देहरादून के बाजार में निकला। कैंप के खाने से अलग कई दिनों के बाद बाजार
में मसाला डोसा खाया। बाकी का दिन भर नए यात्रियों के कार्ड और फाइल बनाने में
व्यस्त रहा।
अगले कुछ
दिनों में मैं भी रेलयात्रा से छोड़कर घर जाने की तैयारी कर रहा हूं इसलिए रणसिंह
भाई के निदेशानुसार ओडिशा के साथी शशांक शेखर सुबुद्धि को दफ्तर का कामकाज समझा
रहा हूं। सुबुद्धि मेरी उम्र का है पर वह ओडिशा में अपना घर छोड़कर किसी संस्था के
साथ पूरी तरह समाजसेवा में लगा हुआ है। मैंने उससे पूछा आगे के खर्चों का इंतजाम
कैसे होगा...पर इस बात को लेकर उसे कोई चिंता नहीं है। कई बातों पर मेरी सुबुद्धि
से लड़ाई हो जाती है। बाद में मैं सोचता हूं कि ये मेरी अपरिपक्वता थी। शाम की
प्रार्थना और सांस्कृतिक कार्यक्रम रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर हुआ।
देहरादून - गीत गाते रेखा मुड़के, रेणुका, मेरी सुकुमारी, सुब्बराव, रणसिंह परमार, जय सिंह जादोन। |
इस दौरान
आनंद भाई ने साथियों सलाम दोस्तो सलाम....विदाई गीत
गाया। इस गीत को सुनकर कई लोगों की आंखें भर आईं। आनंद भाई मूल रूप से मराठी पर ग्वालियर में लश्कर इलाके में उनका घर है।
मैं एक बार दिग्विजय नाथ सिंह के साथ उनके घर जा चुका हूं। आनंद भाई बाबा आम्टे के
भारत जोड़ो साइकिल यात्रा में हिस्सा ले चुके हैं। वे स्काउटिंग, योग व्यायाम के विशेषज्ञ हैं। रेल यात्रा के दौरान वे रैली को कमांडर की
भूमिका निभाते हैं।
वाकी टाकी लेने की सलाह और मुश्किलें - आनंद भाई साइकिल रैली के कुशल संचालन के लिए कई बार वाकी टाकी लेने की सलाह दे चुके हैं। क्योंकि दो सौ लोगों की साइकिल रैली के आखिरी हिस्से और पिछले हिस्से के बीच आधा किलोमीटर का अंतर रहता है इसलिए आगे से पीछे के बीच संदेशों का आदान प्रदान मुश्किल होता है। पर वाकी टाकी खरीदने के लिए सरकारी अनुमति आवश्वयक है। साल 1993 में देश में मोबाइल सेवा आरंभ नहीं हुई थी। वाकीटाकी आमतौर पर पुलिस वालों के पास ही होती है। ऐसी फ्रिक्वेंसी के इस्तेमाल बिना सरकारी अनुमति के नहीं हो सकता। इसलिए हमें दिक्कत आ रही है।
-vidyutp@gmail.com ( DEHRADUN, UK, NYP )
सदभावना रेल यात्रा का वृतांत शुरू से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
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