08 सितंबर 2014 – हम चारों तरफ से पानी से घिरे थे। होटल और आसपास
के लोग बाहर सड़क तक जाने के लिए छोटी छोटी नाव का इस्तेमाल कर रहे थे। कुछ लोगों
ने प्लास्टिक के बड़े बड़े डिब्बों को जोड़कर अपनी नाव बना ली थी। होटल के पीछे डल
झील की शिकारों में स्थायी तौर पर रहने वाले लोग भी सुरक्षित स्थान की तलाश में
नाव से आवाजाही कर रहे थे। हमारे पास किसी नाव का इंतजाम नहीं था। हम सारी ओर से
पानी से घिरे थे। काष्ठ शिल्पी आफताब वानी कह रहे थे कहीं से एक कश्ती का इंतजाम
हो जाए तो बाहर जाकर कुछ खाने पीने का सामान ढूंढे। वे काष्ठ शिल्पी थे इसलिए वे
कह रहे थे कुछ लकड़ियों का इंतजाम हो तो मैं खुद अपनी कश्ती तैयार कर लूं। पर ये
भी मुश्किल था। अंत आफताब भाई ने पानी में घुसकर ही बाहर जाने का फैसला लिया।
बच्चे भूखे थे, हम भी भूखे थे, कुछ इंतजाम तो करना था।
हम सबकी चिंता दोपहर के खाने की थी। हमारे होटल के प्रबंधक एजाज भाई और
उनकी टीम के चार सदस्य होटल में हमारे साथ थे। वे सभी अपने घर से दूर थे और अपने
परिवार के कुशल क्षेम से अनजान क्योंकि किसी का भी फोन काम नहीं कर रहा था। एजाज
भाई ने कहा कि मैं किसी को भी भूखा नहीं मरने दूंगा। जब तक जान है कुछ न कुछ
इंतजाम करूंगा। कहीं से उन्होंने एक नाव का इंतजाम किया। खुद चप्पू चलाते हुए सड़क
तक पहुंचे।
थोड़ी देर बाद लौटे तो नाव पर चावल की बोरी आलू की बोरी और कुछ नमक
मसाले के पैकेट थे। सारी दुकानें बंद थी पर स्थानीय होने के कारण एजाज भाई को मालूम
था कि किसके घर से कुछ खाने पीने का सामान मिल सकता है। हमारे होटल में बेस किचेन
या भोजनालय नहीं था। पर उनके पास गैस सिलिंडर और बड़े भगौने मौजूद थे। उन्हें
बेसमेंट से निकालकर दूसरी मंजिल के बरामदे में लाकर लगाया गया। इसके बाद शुरू हुई
दोपहर में खाना बनाने की प्रक्रिया। कुछ लोगों ने वालंटियर के तौर पर मदद की। आलू
काटे जाने लगे। पानी गर्म होने लगा। कुछ घंटे में खिचड़ी बनकर तैयार हो गई। इस तरह
से ढाई सौ लोगों के लिए दोपहर का भोजन तैयार हो गया।
- विद्युत प्रकाश
मौर्य - vidyutp@gmail.com
( FLOOD, J&K, HOTEL RITZ )
जन्नत में जल प्रलय की पहली कड़ी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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