रविवार 7 सितंबर सुबह के 10 बजे का समय। अचानक बिजली चली गई। थोड़ी देर
बाद पता चला कि पूरे शहर की बिजली जा चुकी है। अब बिजली चली गई तो मोबाइल सेवाएं
और लैंडलाइन टेलीफोन सेवाएं भी बंद हो गईं। हम पूरी तरह संचार नेटवर्क से कट चुके
थे। जिनके फोन चार्ज थे उससे बातें नहीं हो सकती थीं, जो डिस्चार्ज थे उन्हें
चार्ज करने का विकल्प खत्म था। हमें अंदेशा होने लगा था कि हम किसी बड़े संकट में
फंसने जा रहे हैं।
सुबह हम अपना वैष्णो ढाबा से कहवा पीकर आ चुके थे। दुबारा होटल से हमलोग
सुबह का नास्ता करने के लिए सड़क पर निकले। पर अपना वैष्णो ढाबा बंद हो चुका था। हम
खाने के लिए कोई दूसरा विकल्प ढूंढ रहे थे। तभी सड़क पर सैकड़ो लोगों को हुजुम
दौड़ता हुआ आया भागो भागो सैलाब आ रहा
है....हम उस भीड़ के साथ भागने लगे। बच्चे का हाथ तेजी से पकड़ा हुआ था। भागने
वाले लोग कह रहे थे। टीआरसी पानी में डूब गया है। जम्मू एंड कश्मीर बैंक की इमारत
में पानी घुस रहा है। पास के दो हिंदुस्तान पेट्रोलियम के पेट्रोल पंप भी पानी में
डूब रहे हैं। कृष्णा ढाबा वाली सड़क पर भी कई फीट पानी है। शहर के प्रसिद्ध मौलाना
आजाद रोड पर भी झेलम का पानी आ चुका था। संचार व्यवस्था ठप्प थी इसलिए लोगों से
सुनी सुनाई खबरें ही आ रही थीं। हालांकि तब हमें एहसास नहीं था कि श्रीनगर शहर का
एक बड़ा हिस्सा कितने बड़े खतरे में आ चुका है।
हमने नास्ते के लिए डल गेट नंबर एक पर एक फल बेचने वाले से कुछ केले
खरीदने चाहे पर भागती हुई भीड़ ने खरीदने का मौका ही नहीं दिया। हम अपने होटल में
वापस आ गए। एक घंटे बाद मैं एक बार फिर मुख्य सड़क पर निकला। हम सब भूखे थे, खाने
का कोई इंतजाम करना था। फिर फल वाले स्टाल पहुंचा। 100 रुपये के केले और अंगूर
खरीदा। हमें एहसास हो चुका था बड़ा संकट आ रहा है। हमारे पास जिंदा रहने के लिए
कुछ रिजर्व फूड ( आरक्षित स्टॉक) होना चाहिए। होटल के बगल में बिस्मिल्लाह टी
स्टाल के पास एक शिकारे में चलती फिरती दुकान दिखी। उनके पास बिसलरी की पानी की बोतलें
थीं। हमने कुछ बोतलें खरीद लीं। भलमानुस दुकानदार ने बिना एक रुपये फालतू लिए छपे
हुए दाम पर भी संकटकाल में हमें पानी की बोतलें दीं। अल्लाह उन्हें खुश रखे। वर्ना
लोग मजबूरी का लाभ तुरंत उठाना शुरू कर देते हैं।
होटल में मौजूद थे सरस मेला में हिस्सा लेने आए देश भर के 22 राज्यों के
250 से ज्यादा लोग। सबके मन में एक डर समा गया। लोग अलग अलग तरह की बातें करने
लगे। मेले की आयोजकों में से एक न्यूट्रीशन आफिसर प्रमिला गुप्ता का फोन नहीं लग
रहा था। दोपहर में हमने काफी कोशिश की तो आफताब वानी भाई के मोबाइल से पटना में
रहने वाले मेरे के बेटे मामा जी आनंद रंजन जी से छोटी सी बात हुई। हमने उन्हें बताया कि
हम डल गेट के पास रिट्ज होटल के कमरा नंबर 10 में हैं। संकट बढ़ता जा रहा है, पता
नहीं आगे आपसे संवाद बन पाए या नहीं...
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विद्युत प्रकाश मौर्य ( DAL GATE, MOBILE SHUT DOWN )
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