2 नवंबर
1993 – मुरादाबाद में रेल यात्रा का दो दिनों का ठहराव है। करीब 11 बजे सभी
रेल यात्री अमरपुर काशी गांव से रेलवे स्टेशन लौटे। साथियों ने मिलते ही गांव के
अपने अपने अनुभव साझा करने शुरू कर दिए। कई लोगों से इतना स्नेह हो गया है कि वे
मुझसे एक दिन भी अलग रहने पर शिकायतें करते हैं। हमारे दोपहर के भोजन का इंतजाम गुलजारी धर्मशाला में है। हम सारे
लोग वहां पहुंच गए हैं। दोपहर में थोड़े आराम के बाद शाम का कार्यक्रम रेलवे
स्टेडियम में तय है।
यहां के कार्यक्रम के आयोजक यूनाइटेड नेशंस यूथ
आर्गनाइजेशन के नवीन आनंद हैं। वे युवा और अच्छे वक्ता हैं। यहां शाम के
कार्यक्रम में हर राज्य से आए प्रतिनिधियों को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया।
ये बड़ा सुंदर प्रयास रहा। जिसे मैंने आगे अपने शहर हाजीपुर में भी लागू किया।
इससे देश के अलग राज्यों से यात्रा में चल रहे लोगों को बड़ा फख्र महसूस होता है।
यहां पूरी तैयारी से सदभावना यात्रियों ने सुंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया।
सुब्बराव जी
ने अपने व्याख्यान में कहा- राज महाराजाओं के जमाने में युद्ध धन या फिर लड़की के
लिए लड़े जाते थे। पर अब युद्ध के कारण बदल गए हैं। अब लड़ाइयां विचार धारा के लिए
लड़ी जाती हैं। वे संयुक्त राष्ट्र के ध्येय वाक्य की याद दिलाते हैं – युद्ध और शांति दोनों की बातें सबसे पहले दिमाग में
आती हैं। इसलिए हमें अपने दिमाग को खुराफाती होने से बचाना चाहिए। मतलब हम युद्ध
की बात न सोचकर शांति का बाद सोचें। हमारे युवा गीत में इन पंक्तियो को हम रोज
दुहराते हैं- धर्म की दुहाइयां, भाषा की लड़ाइयां, पाट दो ये खाइयां...तो खाई पाटने की बात भी दिमाग से ही शुरु होगी।
सुब्बराव जी
ने कहा, 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़
गया तब वे ओडिशा के किसी शहर में थे। तब वे अपना काम छोड़ कर चीन के नजदीक लगते
पूर्वोत्तर के राज्य में पहुंच गए। असम की राजधानी दिसपुर के पास के गावों में
जाकर कुछ कार्यक्रम किए। लोगों को संगीत और गीतों के द्वारा राष्ट्रीय भावना से
जोड़ने की कोशिश में लग गए। रेल यात्रियों को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के
कार्यशैली को सरल भाषा में समझाने की कोशिश की। हम तीसरे विश्वयुद्ध की आग में न
झुलसे इसके लिए संयुक्त राष्ट्र कैसे कोशिशें कर रहा है। वास्तव में सदभावना की
जरूरत सिर्फ देश की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को है।
कार्यक्रम के बाद हमलोग रेलवे स्टेडियम से रेलवे स्टेशन पहुंच गए।
हमारे रात्रि भोजन का इंतजाम रेलवे स्टेशन पर ही है। रात को हमारी ट्रेन यूपी के
एक नए शहर के लिए चल पड़ी। ये नया शहर था बरेली। लेकिन उससे पहले आता है एक स्टेशन रामपुर। हालांकि रामपुर में हमारे एनवाईपी की काफी सक्रिय इकाई है। पर रामपुर में ठहराव नहीं है सदभावना रेल का। इससे हमारे रामपुर के साथी नाराज हैं।
- vidyutp@gmail.com
( MORADABAD, BRASS, RAMPUR, LIFE ON WHEELS)
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