31 अक्तूबर
1993 – हमारी ट्रेन उत्तराखंड के ऋषिकेश शहर में पहुंच चुकी है। हरिद्वार से ऋषिकेश की दूरी
मामूली सी है। पर ऋषिकेश हमारा एक
दिन का पड़ाव है। हमारी साइकिल रैली रेलवे स्टेशन से निकलकर शिवानंद आश्रम की ओर चली। रास्ते
में गोविंद घाट आया जहां यात्री थोड़ी देर के लिए रूके और पतित पावनी गंगा की
निर्मल जलधारा का नजारा लिया। सुबह का भोजन 11 बजे शिवानंद आश्रम में ही हुआ।
शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन। कई शहरों की भीड़ भाड़ भरे सड़कों पर घूमते हुए
ऋषिकेश पहुंचने के बाद एक अलग तरह के आनंद और शांति की अनुभूति हो रही है।
ऋषिकेश में
गंगातट पर बना शिवानंद आश्रम आध्यात्म योग का बड़ा केंद्र है। बड़ी संख्या में इस
आश्रम में विदेशी भी योग और ध्यान सीखने आते हैं। वास्तव में हमारे देश के पास
अनूठी संपदा है आध्यात्म की, दुनिया के धन
धान्य से अघाए हुए मुल्क के लोगों को शांति की तलाश यहां सदियों से खींचती रहती
है। इस शिवानंद आश्रम का वातावरण बड़ा मनोरम है। मुख्य सड़क के बायीं और दाहिनी
तरफ आश्रम का परिसर है।
यहां बड़ी
संख्या में विदेशी नागरिक आध्यात्म का कोर्स करते रहते हैं। शिवानंद आश्रम के ठीक
सामने शिवानंद झूला पुल बना हुआ है। गंगा नदी पर बना ये झूला पुल ठीक लक्ष्मण झूला
की तरह की झूलता हुआ पुल है। इस पुल से गंगा नदी पार करने के बाद उस पार
स्वर्गाश्रम आता है।
मैं इस
शिवानंद आश्रम में दूसरी बार पहुंचा हूं। 1991 में नवंबर के आखिरी दिनों में भूकंप
राहत शिविर के लिए जाते समय सारे स्वयंसेवक यहां एक दिनों के लिए रूके थे। इस बार
की यात्रा में हमलोग शिवानंद आश्रम की संचालिका से मिले और उनका आशीर्वाद लिया।
हमारी शाम की सर्वधर्म प्रार्थना आश्रम में ही हुई। पर यहां कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम
नहीं हुआ।

ऐसा लगा
मानो कि हम देश के कोने कोने से आए सदभावना यात्री इस आश्रम की पवित्र धरती से कुछ
सीखने आए हैं। कुछ देने नहीं बल्कि कुछ लेने आए हैं। हम यहां आध्यात्मक की ऊर्जा
से खुद को रीचार्ज करना चाहते हैं। आगे अभी तो पूरे देश का सफऱ करना है।
शिवानंद
आश्रम में दिन भर के प्रवास के दौरान हमें कुछ घंटे का खाली समय मिला। इस दौरान
हमलोग पैदल चलकर शिवानंद झूला से लक्ष्मण झूला तक गए। वहां लक्ष्मण झूला के पास 11
मंजिला और 13 मंजिले दो विशालकाय मंदिर हैं। कई रेल यात्री इन मंदिरों में दर्शन
करने गए। मैं 13 मंजिले मंदिर में पहले भी दर्शन कर चुका हूं। इसलिए मैं इस बार मंदिर में नहीं गया। हमलोग टहलते हुए वापस आए।
शिवानंद झूले के
पुल से थोड़ी देर गंगा में मछलियों को दाना खिलाया। शिवानंद झूले से पुल पार कर
गंगा के उस पार जाते ही जिला बदल जाता है। ये इलाका पौड़ी गढ़वाल जिले में आता है।
हमलोग स्वर्गाश्रम में असली चोटीवाला के रेस्टोरेंट में पहुंचे। चोटीवाला के बाहर
एक आदमी लंबी सी चोटी लगाए बैठा रहता है। इस चोटीवाला के रेस्टोरेंट में समोसे और
आइसक्रीम खाई। मंदिर के बाहर एक आडियो कैसेट शॉप से फिर तेरी कहानी याद आई का
आडियो कैसेट खरीदा। मैं अक्सर किसी नए शहर से किताबें या फिर आडियो कैसेट खरीदता
हूं। अक्तूबर महीने में रात गहराने के साथ ऋषिकेश की फिंजा में गुनगुनी ठंड बढ़ गई है। हमलोग शिवानंद
आश्रम से ऋषिकेश रेलवे स्टेशन पहंचे। यहां से हमारी ट्रेन एक नए पड़ाव पीतल नगरी के लिए चल पड़ी है।
-vidyutp@gmail.com
(HARIDWAR, RISHIKESH, SHIVANAND ASHRAM, NYP, RAIL YATRA)
सदभावना रेल यात्रा का वृतांत शुरू से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
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Me garib brahman hu.aur muje aapke aashrmse dhyan yog karana he.mera svikar karo.jay shivanandji
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