( पहियों
पर जिंदगी 27) ( 21 अक्तूबर 1993) पठानकोट में देश का सबसे बड़ा एरोड्रम है जो अब सेना के काम आता है। 1965 में युद्ध के दौरान इस पर कई आक्रमण हुए। पठानकोट
से पाकिस्तान सीमा की दूरी महज 18 किलोमीटर है। जम्मू कश्मीर
की सीमा महज 9 किलोमीटर है। वहीं हिमाचल प्रदेश की सीमा 10
किलोमीटर है। यह शहर तीन टी यानी ट्रेड, टिंबर
और ट्रांसपोर्ट के लिए जाना जाता है। शाम की सर्वधर्म प्रार्थना सभा और सांस्कृतिक
कार्यक्रम प्रस्थान आश्रम के प्रांगण में ही संपन्न हुआ।
आज भाषण
देने का वक्त नहीं मिलने के कारण मेरा मूड का बिगड़ा हुआ था। मेरा खाना नहीं खाने
का मन था। पर बाद में मनोरमा दीदी के साथ जाकर खा लिया। रात में रैली चलकर
विश्वकर्मा सभा द्वारा दिए जा रहे रात्रि भोज के लिए विश्वकर्मा मंदिर पहुंची। शाम
के सांस्कृतिक कार्यक्रम के मंच संचालन को लेकर रेल यात्रियों के मध्य थोड़ा विवाद
हुआ। दिल्ली में तैयारी शिविर में ज्यादातर मंच संचालन मैं करता था। रास्ते में
कहीं मधुसूदन दास कहीं आरसी गुप्ता तो कहीं अमनजोत मंच संचालन करती थीं। आज
हरियाणा के भाइयों द्वारा एक नाटक पेश किया गया जिसमें पंजाब की गुरप्रीत ने भी
काम किया। परंतु नाटक में थोड़ा भोड़ापन था। इसको लेकर अमन द्वारा की गई टिप्पणी
को लेकर हरियाणा के भाई नाराज हैं। वहीं अमन भी दुखी है। इसका प्रभाव अगले दिन तक
देखा गया।
22 अक्तूबर
1993 – आज भी रैली पैदल चलकर शहर की सड़कों से होती हुई पठानकोट के आर्य सीनियर
सेकेंडरी स्कूल पहुंची। यहां दोपहर का मुख्य कार्यक्रम था। मंच से भाषण देते हुए सुब्बराव
जी ने विद्युत प्रकाश ( मेरे) चंबल प्रसंग को याद किया। इससे पहले भी वे कई बार मंच
से मेरा नाम ले चुके हैं। इतने महान व्यक्ति द्वारा जब सार्वजनिक रूप से मंच से
मेरा नाम लिया जाता है तब मुझे आत्मिक प्रसन्नता होती है। मैं ये सोचता हूं जीवन
के किसी क्षण में मैं याद करूंगा कि सुब्बराव जी जैसे महान व्यक्तित्व के साथ
मैंने इतना वक्त गुजारा था।
vidyutp@gmail.com ( PATHANKOT, ARMY, AIR, PUNJAB)
सदभावना रेल यात्रा का वृतांत शुरू से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
सदभावना रेल यात्रा का वृतांत शुरू से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
No comments:
Post a Comment