( पहियों
पर जिंदगी 26 )
21 अक्तूबर
1993 – सुबह स्टेशन पर ही नास्ते के बाद हमारी रैली नगर के
प्रमुख शहरों से होती हुई खानपुर में प्रस्थान आश्रम पहुंची। रैली साइकिल से नहीं
निकाली गई। हमने 4 किलोमीटर की पदयात्रा की। रैली में स्थानीय विद्यालय के बच्चे
भी साथ हैं। प्रस्थान आश्रम में पुलिस का प्रवेश वर्जित है। दोपहर का भव्य
कार्यक्रम आश्रम के परिसर में हुआ। स्कूली बच्चों के अलावा समाज के हर वर्ग के लोग
यहां जुटे हैं। मास्टर मोहन लाल जो जिला भाजपा के
अध्यक्ष हैं उन्होंने अपने भाषण के साथ नव तरुणाई का स्वागत किया। उन्होंने कहा
इतने नौजवान जो भारत को जोड़ने निकले हैं ऐसा मैं पहली बार देख रहा हूं। इन्ही
मास्टर मोहनलाल ने पंजाब में बाद में मेरा कई बार सामना हुआ, जब मैं अमर उजाला जालंधर में शिक्षा संवाददाता के
तौर पर कार्यरत था और मास्टर मोहनलाल तब पंजाब में उच्चशिक्षा मंत्री बन चुके थे।
मजे की बात मास्टर मोहनलाल अखाड़े में दांव लगाने वाले पहलवान भी हैं।
डाक्टर रण
सिंह परमार ने सुब्बराव जी और रेल यात्रा का परिचय कराया। प्रस्थान आश्रम के संचालन
श्री यशपाल मित्तल उन चंद गांधीवादियों में से हैं जो सच्चे अर्थों में बापू के
आदर्शों को जीते हैं। मित्तल जी 1969 में चली गांधी रेल प्रदर्शनी में अग्रणी
भूमिका में थे। उस रेल के संचालक सुब्बराव जी थे। पर कई बार उनकी गैरमौजूदगी में
उन्होंने रेल प्रदर्शनी का संचालन किया था। आश्रम में विभिन्न प्रांतों से आए
रेलयात्रियों ने अपने संस्मरण सुनाए। डाक्टर लिसी भरूचा, श्री पाटनकर, मधुसूदन
दास, विशाल दूबे, गगनगीत, राकेश मोहन, सतीश भारती। श्री सतीश भारती ने इतना
लंबा भाषण दिया कि मेरा नंबर कट गया।
यशपाल
मित्तल साहब ने सर्वोदय आंदोलन और आश्रम की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। वे
हर साल पंजाब और हिमाचल में चार महीने पदयात्रा कर सर्वोदय विचार का प्रसार करते
हैं। वे कहते हैं वर्तमान संदर्भ में धर्म तोड़ने का काम कर रहे हैं। इसलिए सबको
आध्यात्म की ओर अभिमुख होना चाहिए। आध्यात्मिकता में सभी धर्मों में साम्यता है।

पहला आश्रम समन्वय आश्रम, बोधगया बिहार
है। इसकी स्थापना 18 अप्रैल 1954 को
हुई। यहां एक विद्यापीठ और समन्वय के शिविर चलाए जाते हैं। दूसरा आश्रम ब्रह्मविद्या मंदिर, पवनार, वर्धा में है। इसकी स्थापना 25 मार्च 1958
को हुई। ये बहनों का आश्रम है। यहां ब्रह्मचारिणी या वानप्रस्थी को
प्रवेश मिलता है। तीसरा आश्रम प्रस्थान आश्रम पठानकोट है
जिसकी स्थापना 1 नवंबर 1959 को हुई।
इसका नाम प्रस्थान आश्रम इसलिए रखा गया क्योंकि यहां से पाकिस्तान कश्मीर, जम्मू और हिमाचल जाने का रास्ता शुरू होता है। यह एक तरह से प्रस्थान
विंदु है। चौथा आश्रम विसर्जन, इंदौर में
है। इसकी स्थापना 15 अगस्त 1960 को
हुई। पांचवां आश्रम मैत्री
आश्रम, असम में है। यह असम के नार्थ
लखीमपुर जिले में अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है। इस आश्रम की स्थापना
पूर्वोत्तर राज्यों में सर्वोदय के विचार को समृद्ध करने के लिए की गई। यह आश्रम 5 मार्च 1962
को आरंभ हुआ।
छठा आश्रम बल्लभ निकेतन बंगलुरू में
है। इस आश्रम को महादेव ताई देखती हैं। इसका संचालन विश्वनीडम ट्रस्ट द्वारा किया
जाता है। इसकी स्थापना 1965 में हुई। इसका उदघाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर
सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था।
यशपाल
मित्तल जी को उनके कार्यों को सम्मान देते हुए साल 2007 में जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बाद में अपने पांच साल
के पंजाब प्रवास के दौरान भी मैं उनसे कई बार मिला और उनका आशीर्वाद मुझे मिलता
रहा। उनके बेटे कीर्ति मित्तल पठानकोट से सदभावना रेल यात्रा में हमारे साथ शामिल हुए। वे
आगे की रेल यात्रा में हमारे साथ तकरीबन 20 दिनों तक रहे।
- vidyutp@gmail.com
(VINOBA BHAVE SIX ASHRAM, PRASTHAN ASHRAM PATHANKOT ) . Maitri Ashram – 787051, North Lakhimpur Block, Assam Telephone: 03752- 22190
सदभावना रेल यात्रा का वृतांत शुरू से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
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