
(पहियों पर जिंदगी 25
) (20 अक्तूबर 1993 ) शिविरों में अथवा ऐसे व्यस्त आयोजनों में अक्सर कार्यक्रमों में व्यस्त
होने के कारण तारीखें तो याद रहती हैं दिन (वार) भूल जाता हूं। जैसे आज बुधवार है।
सद्भावना यात्रा स्पेशल ट्रेन
अक्सर रात में ही चलती है। कभी कभी दिन में भी चल पड़ती है। जब दिन में चलती है तो
बाहर का नजारा देखने में आनंद आता है। हर छोटे छोटे स्टेशनों पर जहां ट्रेन का ठहराव नहीं भी है लोग बड़े कौतूहल
से ट्रेन को देखते हैं।
कुछ ऐसा ही नजारा हमें आज देखने को मिला जब अमृतसर से पठानकोट के लिए ट्रेन दिन में ही चल पड़ी है। पंजाब के छोटे छोटे स्टेशन, नहर, नदियां, गांव, खेत खलिहान से गुजरती हुई ट्रेन आगे बढ़ती जा रही है। वेरका, बटाला गुरदासपुर जैसे स्टेशन रास्ते में पड़े। हमने जैसे हरे भरे पंजाब के बारे में सुन रखा था वह दिन में ट्रेन की खिड़की से दिखाई दे रहा है। ट्रेन में बटाला की एक बहन आई थी सतिंदर कौर वे अपने गांव वापस लौट गईं। रास्ते में उनका स्टेशन भी आया। ट्रेन ने दिन में 4 बजे अमृतसर छोड़ा और शाम को छह बजे पठानकोट पहुंच गई। मौसम बदल गया है। गुनगुनी सी ठंड आ गई है।
कुछ ऐसा ही नजारा हमें आज देखने को मिला जब अमृतसर से पठानकोट के लिए ट्रेन दिन में ही चल पड़ी है। पंजाब के छोटे छोटे स्टेशन, नहर, नदियां, गांव, खेत खलिहान से गुजरती हुई ट्रेन आगे बढ़ती जा रही है। वेरका, बटाला गुरदासपुर जैसे स्टेशन रास्ते में पड़े। हमने जैसे हरे भरे पंजाब के बारे में सुन रखा था वह दिन में ट्रेन की खिड़की से दिखाई दे रहा है। ट्रेन में बटाला की एक बहन आई थी सतिंदर कौर वे अपने गांव वापस लौट गईं। रास्ते में उनका स्टेशन भी आया। ट्रेन ने दिन में 4 बजे अमृतसर छोड़ा और शाम को छह बजे पठानकोट पहुंच गई। मौसम बदल गया है। गुनगुनी सी ठंड आ गई है।
पठानकोट में हमारे स्थानीय
आयोजक श्री यशपाल मित्तल जी हैं। वे आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित छह आश्रमों
में से एक प्रस्थान आश्रम पठानकोट के संचालक हैं। कुछ दिन पहले लुधियाना में वे
ट्रेन से स्वागत संबंधी तैयारियों की जानकारी के लिए मिलने आए थे तब उनसे परिचय
हुआ था।
शाम को पठानकोट में रेलवे स्टेशन पर ही हमारी सर्वधर्म प्रार्थना सभा हुई। नगर के प्रमुख सरकारी अधिकारी, विभिन्न राजनैतिक दलों के लोग इस प्रार्थना सभा में मौजूद थे। इस दौरान यशपाल मित्तल साहब ने पठानकोट शहर के बारे में बताया कि यह तीन टी के लिए जाना जाता है। ट्रेड, टिंबर, ट्रूप यानी की पठानकोट।
शाम को पठानकोट में रेलवे स्टेशन पर ही हमारी सर्वधर्म प्रार्थना सभा हुई। नगर के प्रमुख सरकारी अधिकारी, विभिन्न राजनैतिक दलों के लोग इस प्रार्थना सभा में मौजूद थे। इस दौरान यशपाल मित्तल साहब ने पठानकोट शहर के बारे में बताया कि यह तीन टी के लिए जाना जाता है। ट्रेड, टिंबर, ट्रूप यानी की पठानकोट।

पठानकोट भारतीय रेलवे का सीमांत रेलवे स्टेशन है। यहां पर सर्वोदय का एक बुक स्टाल है जो प्रस्थान आश्रम पठानकोट की ओर से संचालित है। यहां से कांगड़ा घाटी के लिए नैरो गेज की ट्रेन भी जाती हैं। ये ट्रेन हिमाचल प्रदेश में जोगिंदर नगर तक जाती है। इस रेल पर आधारित एक खूबसूरत टेली फिल्म मैं देख चुका हूं। उसकी याद ताजा हो आई। खाने के बाद सभी लोग ट्रेन में आकर सो गए।
- vidyutp@gmail.com
( TRADE, TIMBER, TROUPE, PATHANKOT )
सदभावना रेल यात्रा का वृतांत शुरू से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें।
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