
( पहियों
पर जिंदगी 18)
15 अक्तूबर
की शाम की सभा लुधियाना के फिरोजपुर रोड में बाहरी इलाके में स्थित निष्काम सेवा
केंद्र में हुई। निष्काम सेवा केंद्र पंजाब का प्रसिद्ध वृद्धाश्रम है। यहां वैसे
बुजुर्ग रहते हैं जिनके परिवार के लोगों ने उन्हें छोड़ दिया है।
निष्काम सेवा आश्रम गूंगे, बहरे और कई तरह के विकलांग बच्चों को भी आसरा प्रदान
करता है। उनकी रहन सहन और शिक्षा का इंतजाम करता है। आश्रम में रहने वाले
बुजुर्गों को शानदार आवासीय व्यवस्था, नास्ता, खाना, पुस्तकालय और चिकित्सा व्यवस्था का इंतजाम
आश्रम करता है। अपनी संतान से अलग रहने वाले कई बुजुर्ग यहां विक्षिप्त भी चुके
हैं। हमारे साथ चल रही पुनीत ने एक बुजुर्ग से बात की और बातें करते करते रोने
लगी। बाद में उसने बताया कि उसे अपने दादाजी की याद आ गई जो अब इस दुनिया में नहीं
हैं। कई साल बाद लुधियाना प्रवास के दौरान पता चला कि निष्काम सेवा केंद्र का काम
और आगे बढ़ चुका है। केंद्र अब स्वरोजगार और स्वावलंबन के लिए प्रशिक्षण भी देता
है।
यहां पर
सुब्बाराव जी का अविस्मरणीय व्याख्यान हुआ। सुब्बाराव जी कहते हैं – भारत में निष्काम सेवा केंद्र जैसे आश्रम हैं जहां
बुजुर्गों को निःशुल्क दाखिला मिल जाता है। पर अमेरिका में ओल्ड पर्सन के रहने के
लिए नर्सिंग होम होता है। वहां प्रवेश के लिए 3000 डॉलर
प्रतिमाह जमा करना पड़ता है। अपने अमेरिका प्रवास के दौरान जिस घर में मैं नियमित
मेहमान होता हूं वे हैं श्री कुमार पोद्दार। उनकी एक नौकरानी है शेरान। मोटरकार से
आती है। वैक्यूम क्लीन से घर की सफाई करते हुए और वाशिंग मशीन चलाते समय कोका कोला
पीती रहती है। साथ ही कुछ न कुछ बड़बड़ाती रहती है। एक दिन उसने कहा, सुब्बाराव आप हमारी प्राबल्म बिल्कुल नहीं सुनते। मैंने कहा बताओ- उसने
कहा मेरा एक 13 साल का लड़का जिसने मुझे कल रात भर सोने नहीं
दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मैंने उसके ऊपर पाबंदी लगाई थी कि तुम्हे रात के 11
बजे से सुबह 4 बजे तक घर के बाहर नहीं जाना
है। परंतु इस दौरान न तो वह खुद सोया न मुझे सोने दिया। बार बार मुझे जगाकर कहता
था – मुझे बाहर जाने दो मुझे अपनी गर्ल फ्रेंड से मिलने जाना
है।
सभी अमेरिकी
परिवारों की त्रासदी है बच्चे बिगड़ रहे हैं। वहां मातृ देवो भव और पितृ देवो भव
की भावना खत्म हो गई है। ऐसे ही अमेरिका में एक व्यापारी मित्र ने दूसरे व्यापारी
मित्र को फोन किया कि कुछ व्यापारिक बातों पर बातचीत के लिए दोपहर में किसी
रेस्टोरेंट में मिलते हैं। दोनों रेस्टोरेंट पहुंचे। बातें करते करते अपनी पसंद का
खाना खाते रहे। बातें करते गए। जब बिल की बारी आई तो मेजबान ने कहा, दो अलग अलग बिल लेकर आना। और अतिथि के भोजन का बिल
उसे पकड़ा दिया। तो वहां अतिथि देवो भव जैसी कोई भावना नहीं रह गई है। अपने देश
में इन सब चीजों की जो हमारी संस्कृति का हिस्सा है उसे बचाए रखने की जरूरत है।
निष्काम सेवा
केंद्र ने हमें चलते चलते कई प्रेरक पुस्तकें भी भेंट कीं। झांसी वाले देवेंद्र
गौड़ वापस लौट चुके हैं। भाई तड़ित भी कावेरी कोच में आ गया है। वह आरसी गुप्ता जी
के साथ प्रबंधन देखता है। श्योपुर कलां के विशाल और दिलीप भी हमारा प्रबंधन में
सहयोग करते हैं।
-- vidyutp@gmail.com ( LUDHIANA, NISHKAM SEVA ASHRAM, PAU, LIFE ON WHEELS )
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