रांची में है योगदा सोसाइटी का मुख्यालय - महान आध्यात्मिक संत परमहंस योगानंद द्वारा स्थापित योगदा सोसाइटी का मुख्यालय भी रांची में है। यह रांची के रेलवे स्टेशन के पास ही स्थित है। मैं अपने
दोस्त मुकेश बालयोगी की सलाह पर थोड़ी देर के लिए इस मुख्यालय में भी गया। योगी की
आत्मकथात्मक पुस्तक योगी कथामृत काफी लोकप्रिय है। कई साल पहले मैंने ये पुस्तक
हरिद्वार से खरीदकर पढ़ी थी। इस पुस्तक का अनुवाद अंग्रेजी, हिंदी संस्कृत के अलावा दुनिया की कई भाषाओं में
हो चुका है। लाखों में बिकने वाली उनका आत्मकथा दुनिया की बेस्टसेलर किताबों की सूची में शुमार है।
दुर्लभ यात्रा वृतांत - इस पुस्तक के
बारे में न्यूयार्क टाइम्स अपनी समीक्षा में लिखता है कि यह एक दुर्लभ यात्रा
वृतांत है। परमहंस योगानंद विवेकानंद के बाद उन संतों में शुमार हैं जिन्होने
हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार विदेशों में किया। पर उनका अपना जीवन और उनकी यात्राएं
कम रोचक नहीं हैं। करीब 735 पृष्ठों की यह पुस्तक पाठकों को लगातार बांधे रखती है
और उन्हे अनवरत यात्रा कराती है। जीवन के कई उलझे हुए पहलुओं को सुलझाने में मदद
करती है। अक्तूबर 2005 में अपनी हरिद्वार यात्रा के दौरान मैंने ये
पुस्तक खरीदी थी हर की पौड़ी के पास स्थित एक पुस्तक दुकान से। जो लोग यात्रा वृतांत में रुचि रखते हैं उन्हे भी ये पुस्तक पढ़नी चाहिए।
दुनिया भर से योगी के भक्त सालों भर रांची पहुंचते हैं। मैं भी योगदा सोसाइटी के परिसर में कुछ घंटे गुजारता हूं। यहां एक प्रार्थना भवन बना हुआ है। श्रद्धालु उस पेड़ को देखने आते हैं जिसके नीचे योगी अपने रांची प्रवास के दौरान घंटों बैठा करते थे। आप परमहंस योगानंद का वह कमरा भी देख सकते हैं जिसमें वे रहा करते थे।
1917 में खुला रांची का केंद्र -
परमहंस योगानंद ने 1917 में रांची में इस केंद्र की शुरुआत की थी। वे अपने भक्तों के क्रिया योग सीखाते थे। यहां उन्होंने बच्चों के लिए एक स्कूल भी शुरू किया था।
नोएडा में भी योगदा सोसाइटी का बड़ा केंद्र - अब योगदा सोसाइटी की शाखाएं दुनिया भर में फैली हैं। दिल्ली एनसीआर में नोएडा के सेक्टर 62 में भी योगदा सोसाइटी का विशाल केंद्र बना हुआ है। वहां भी कई तरह की गतिविधियां चलती रहती हैं।
वैसे
परमहंस योगानंद पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे। छोटी उम्र में ही ज्ञान की तलाश में
उत्तराखंड की तरफ चले गए थे। पर बाद में उन्होंने अपना मुख्य केंद्र रांची में बनाया। वे लंबे समय तक रांची में रहे।
दुनिया भर से लोग आते हैं रांची - दुनिया भर से योगी के भक्त सालों भर रांची पहुंचते हैं। मैं भी योगदा सोसाइटी के परिसर में कुछ घंटे गुजारता हूं। यहां एक प्रार्थना भवन बना हुआ है। श्रद्धालु उस पेड़ को देखने आते हैं जिसके नीचे योगी अपने रांची प्रवास के दौरान घंटों बैठा करते थे। आप परमहंस योगानंद का वह कमरा भी देख सकते हैं जिसमें वे रहा करते थे।
1917 में खुला रांची का केंद्र -
परमहंस योगानंद ने 1917 में रांची में इस केंद्र की शुरुआत की थी। वे अपने भक्तों के क्रिया योग सीखाते थे। यहां उन्होंने बच्चों के लिए एक स्कूल भी शुरू किया था।
नोएडा में भी योगदा सोसाइटी का बड़ा केंद्र - अब योगदा सोसाइटी की शाखाएं दुनिया भर में फैली हैं। दिल्ली एनसीआर में नोएडा के सेक्टर 62 में भी योगदा सोसाइटी का विशाल केंद्र बना हुआ है। वहां भी कई तरह की गतिविधियां चलती रहती हैं।
महान संत पर डाक टिकट - भारत सरकार ने महान संत
परमहंस योगानंद पर एक डाक टिकट भी जारी किया था। 25 पैसे का यह टिकट 1977
में जारी किया गया था।
परमहंस योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 में हुआ था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में हुआ था। शुरुआत के आठ
साल वे इसी शहर में रहे। उनका आठ भाई बहनो का परिवार था जिसमें वे चौथे नंबर पर
थे। परमहंस योगानंद के पिता बंगाल नागपुर रेलवे ( बीएनआर ) में उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे। इस दौरान उनका तबादला देश के कई हिस्सों में होता रहता था।
उनका निधन 7 मार्च 1952 में हुआ। अमेरिका के लासएजेंल्स में भारतीय राजदूत विनय रंजन सेन के सम्मान में आयोजित भोज के बाद परमहंस योगानंद ने अपने दिव्य शरीर को छोड़ दिया था।
योगानंद जी पश्चिम बंगाल
के श्रीरामपुर के स्वामी युक्तेश्वर जी के शिष्य थे। उनके गुरु युक्तेश्वर गिरीजी महाराज काशी के प्रसिद्ध
योगी श्री श्री लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। योगानंद जी ने कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक
तक पढ़ाई की थी। पर परमहंस योगानंद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उन्हें शैशव काल से पूर्व जन्म की कई स्मृतियां बनी रहती थीं। परम तत्व की तलाश ने उन्हे महान यात्री बना दिया।
- विद्युत प्रकाश मौर्य -vidyutp@gmail.com उनका निधन 7 मार्च 1952 में हुआ। अमेरिका के लासएजेंल्स में भारतीय राजदूत विनय रंजन सेन के सम्मान में आयोजित भोज के बाद परमहंस योगानंद ने अपने दिव्य शरीर को छोड़ दिया था।
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