दार्जिलिंग के घूम जॉय राइड पर । |
भारत की
गर्मी नहीं बर्दाश्त कर पाने वाले अंग्रेजों ने देश में कई हिल स्टेशन की तलाश की
और उन्हें विकसित किया। उनमें दार्जिलिंग भी एक था। पर सिलिगुड़ी से दार्जिलिंग
जाने के लिए घोड़ागाड़ी से जाना ही तब विकल्प था। इसलिए इस सड़क का नाम दिया गया
था हिल कार्ट रोड। अंग्रेजों ने दार्जिलिंग में स्वास्थ्य लाभ के लिए एक
सेनिटोरियम और एक सैन्य डिपो का निर्माण कराया था।
दार्जिंलिग
से लगातार बढ़ते चाय के व्यापार के कारण यहां घोड़ा गाड़ी के अलावा परिवहन के
दूसरे विकल्प की जरूरत महसूस की गई। इस्टर्न बंगाल रेलवे के फ्रैंकलिन प्रेस्टिज
ने सिलिगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच स्टीम ट्रामवे चलाने का प्रस्ताव रखा। बंगाल के
तत्कालीन गवर्नर सर एस्ली इडेन ने रेलवे नेटवर्क के लिए समिति का निर्माण कराया।

मार्च 1880 तक सिलिगुड़ी से
तीनधारा तक का मार्ग तैयार हो गया। जब वायसराय लार्ड लिटन दार्जिलिंग के दौरे पर
आए तो वे टाय ट्रेन में बैठकर तीनधारा तक गए। सिलिगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच
मार्ग का उदघाटन 4 जुलाई 1881 को हुआ।
तब इस कंपनी का नाम दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे कंपनी रखा गया।
पहले रेल
लाइन का मार्ग भी हिल कार्ट रोड के समांतर रखा गया था। पर बाद में पता चला कि कुछ
इलाके में दूसरे मार्ग से लोकोमोटिव का सफर आसान हो सकेगा। तब 1882 में सुकना और
गयाबाड़ी के बीच चार लूप मार्ग और चार रिवर्स मार्ग का निर्माण किया गया।
साल 1962
में डीएचआर रेल मार्ग का विस्तार सिलिगुड़ी से न्यू जलपाईगुडी तक किया गया। एनजेपी
इस मार्ग का मुख्य और बड़ा स्टेशन है।
इस छह
किलोमीटर के विस्तार से खिलौना ट्रेन एनजेपी जैसे ब्राडगेज के बड़े रेलवे स्टेशन
से जुड़ गई। इसके बाद लोको शेड और कैरिज डिपो को सिलिगुड़ी से न्यू जलपाईगुड़ी में
शिफ्ट किया गया।
तीस्ता वैली रेलवे - दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के
अलावा इस क्षेत्र में सिलिगुड़ी से सेवक पहाड़ियों के बीच होते हुए कालिंपोंग तक
भी नैरोगेज रेल बिछाई गई थी। इसका नाम तीस्ता वैली रेलवे दिया गया था। 1915 से
1915 के मध्य इस लाइन पर सफर संभव था। पर 1950 में आई बाढ़ और प्राकृतिक आपदा के
बीच यह लाइन बर्बाद हो गई। फिर इसका निर्माण नहीं किया जा सका। जब 2009 में ममता
बनर्जी रेल मंत्री बनीं तो उन्होंने तीस्ता घाटी रेलवे को एक बार फिर जीवंत करने
के बारे में विचार किया, पर इस विचार को आगे नहीं बढ़ाया जा सका।
तीस्ता घाटी रेलवे का जो मार्ग
था उस पर सिलिगुड़ी से सेवक तक रेलमार्ग आज भी दिखाई देता है। पर सेवक से
कालिंपोंग के बीच रेलमार्ग का अस्तित्व अब नहीं है। सेवक के बाद इस नैरोगेज लाइन
पर कालीझोरा, रामभी और रियांग स्टेशन हुआ करते थे। बताया जाता है कि इस रेल मार्ग
से कविगुरु रविंद्रनाथ टैगोर रियांग तक सफर किया करते थे। उनका एक आवास मोंगपू में
मैत्रेयीदेवी में हुआ करता था। वहां जाने के लिए वे टॉय ट्रेन का इस्तेमाल करते
थे।
घूम में डीएचआर का संग्रहालय - घूम (GHUM) दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे में सबसे ऊंचाई पर स्थित स्टेशन है, जो कि भारत का भी सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है। समुद्र तल से 2,258 मीटर ( 7,407 फुट) की ऊंचाई पर बना ये स्टेशन दार्जिलिंग से 8 किलोमीटर दूर है। घूम में नैरोगेज रेलवे का रेल
संग्रहालय भी है। घूम रेल
संग्रहालय दार्जिलिंग हिमालय रेलवे के तीन संग्रहालयों में से एक है। यह घूम रेलवे स्टेशन परिसर में स्थित है। संग्रहालय कक्ष घूम रेलवे स्टेशन से ऊपर है। 1999 में जब दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे के प्रसिद्ध नैरो गेज टॉय ट्रेन यूनेस्को
की विश्व धरोहर में शामिल किया गया था, उसके एक साल बाद वर्ष 2000 में, घूम संग्रहालय
की स्थापना की गई। इसके साथ ही रेलवे विरासत को दिखाने के लिए आगंतुकों/पर्यटकों
के लिए खोल दिया गया।
घूम प्लेटफार्म के ठीक उल्टी तरफ संग्रहालय का प्रवेश द्वार है। जैसे ही आप गेट में प्रवेश करते हैं, वहां एक छोटे से बगीचे के साथ एक सुन्दर खुली जगह है। डीएचआर घूम संग्रहालय सुबह 10:00 बजे से शाम 4 बजे तक खुला रहता है। इसमें प्रवेश के लिए टिकट 20 रुपये प्रति व्यक्ति है। इस संग्रहालय में रेलवे से जुड़ी हुई वस्तुओं का अच्छा संग्रह है। इस संग्रहालय में भाप से चलने वाले इंजन, पुराने सिग्नल शामिल है।
घूम प्लेटफार्म के ठीक उल्टी तरफ संग्रहालय का प्रवेश द्वार है। जैसे ही आप गेट में प्रवेश करते हैं, वहां एक छोटे से बगीचे के साथ एक सुन्दर खुली जगह है। डीएचआर घूम संग्रहालय सुबह 10:00 बजे से शाम 4 बजे तक खुला रहता है। इसमें प्रवेश के लिए टिकट 20 रुपये प्रति व्यक्ति है। इस संग्रहालय में रेलवे से जुड़ी हुई वस्तुओं का अच्छा संग्रह है। इस संग्रहालय में भाप से चलने वाले इंजन, पुराने सिग्नल शामिल है।
- vidyutp@gmail.com
( डीएचआर 3) पहली कड़ी यहां पढ़ें
( डीएचआर 3) पहली कड़ी यहां पढ़ें
( DHR, DARJEELING HIMALAYAN RAILWAY )
REMEMBER
IT IS A WORLD HERTAGE SITE
No comments:
Post a Comment